खाद्य संयम का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है - अनासक्ति: आचार्यश्री महाश्रमण
पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व का भव्य आध्यात्मिक शुभारंभ
ताल छापर, 24 अगस्त, 2022
संपूर्ण जैन समाज का पावन पर्व जिसे महापर्व कहा जाता है-पर्युषण महापर्व का आज से शुभारंभ। नवाह्निक पर्व हमें अध्यात्म की प्रेरणा देने वाला पर्व है। तेरापंथ धर्मसंघ में इसे और विशेष रूप से मनाया जाता है। नौ दिनों के अपने-अपने दिवस स्थापित हैं। आज का दिवस है-खाद्य संयम दिवस। तेरापंथ के एकादशम् अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि वर्ष के दो विभाग हो जाते हैं, एक चतुर्मास काल और दूसरा शेष काल। चतुर्मास काल धर्म आराधना की दृष्टि से कुछ विशेष स्थान रखता है। यूँ तो आदमी हर पल हर दिन धर्म-ध्यान कर सकता है। परंतु सामुहिकता की दृष्टि से और समयानुकुल्य की दृष्टि से चतुर्मास का समय धर्माराधना के लिए अधिक संगत और अनुकूल हो सकता है।
चतुर्मास के दौरान तपस्याएँ भी अपेक्षाकृत ज्यादा होती हैं। लंबी तपस्या भी करने वाले करते हैं। श्रावण-भाद्रव महीना जो चतुर्मास का पूर्वार्द्ध है, वो और ज्यादा धर्म-आराधना की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इनमें भी भाद्रव मास तो हमारे जैन शासन में शिरमोर समय है। जहाँ पर्युषण पर्व का पदार्पण होता है। पर्युषण पर्व व दस लक्षण पर्व की आराधना होती है। आज से पर्युषण पर्व का शुभारंभ हुआ है। जगह-जगह हमारे साधु-साध्वियाँ, समणियाँ उपासक आदि अपने ढंग से धर्माराधना करने में और कराने वालों में संलग्न हुए हैं। कम संपर्क में आने वाले भी इन दिनों में आकर प्रेरणा लें, धर्माराधना करें। ये आठ दिन का विशेष समय है। एक सुंदर आयोजन-व्यवस्था की गई है। पर्युषण का कार्यक्रम भी सुव्यवस्थित और गरिमापूर्ण होता है। अध्यात्म से औत-प्रोत होते हैं।
इस अष्टाह्निक पर्व में श्रावक-श्राविकाओं का भी महत्त्वपूर्ण सहभाग होता है। पर्युषण में चारित्रात्माओं को विशेष लाभ संप्राप्त हो सकता है। जैन शासन में आत्मवाद का सिद्धांत है। धर्माराधना-अध्यात्म आराधना का पुष्ट आधार है-आत्मवाद। आत्मवाद है, तो अध्यात्मवाद है। साधु-साध्वियाँ आत्मवाद के आधार पर ही दीक्षित हुए हैं। आत्मा त्रैकालिक और शाश्वत है। इस शाश्वतवाद ने आत्मवाद को टिका रखा है। आत्मवाद के सिंहासन पर अध्यात्मवाद का महाराजा विराजमान होता है। श्रोता अच्छा दर्शक बन सकता है, तो वक्ता अच्छा दृश्य बन जाए। भाषण में वक्ता का भी अपना तरीका होता है। कैसे खड़ा रहे, कैसे बोले? वक्ता जितना सुव्यवस्थित रहता है तो श्रोता को अच्छा लाभ मिल सकता है। साधु-साध्वियों को अलग-अलग जगह जाकर बोलने का मौका मिल सकता है। बोलते-बोलते प्रखर वक्ता बन सकते हैं। प्रवचन देने का सुव्यवस्थित तरीका हो। समयबद्धता भी हो।
प्रवचन प्रारंभ में जल्दी या देरी न हो। समापन में देरी हो सकती है। परिस्थिति को देखकर वक्ता को अपना प्रवचन देना चाहिए। वक्तृत्व में आवाज भी अच्छी हो। कंठों की सुरक्षा का ध्यान रखें। वक्ता तैयारी के साथ बोले। आशुभाषण भी दे सकें यह वक्ता का अभ्यास होना चाहिए। श्रोता को भी सुनने का अभ्यास होना चाहिए। श्रोता वक्ता का प्रवचन नोट भी कर सके तो अच्छी सामग्री मिल सकती है। वक्ता को श्रोता ध्यान से सुनें। वक्ता श्रोता बनने का भी प्रयास करें। ग्रहण करने का प्रयास हो।
आज पर्युषण पर्व का प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में स्थापित है। उपवास करना भी खाद्य संयम है। अनेक तपस्याएँ हो रही हैं। खाद्य संयम की प्रेरणा आगे भी साथ में रहे। भोजन करते-करते भी संयम रखा जा सकता है। प्रातराश व खाने के बाद दो-तीन घंटे का तिविहार-चौविहार त्याग किया जा सकता है।
भोजन करने के मूल दो उद्देश्य होते हैं-साधना-अनुकूल भोजन हो। स्वास्थ्यानुकूल भोजन हो। खूब खा लिया, सो गए तो फिर स्वाध्याय कितना होगा। खाने में बढ़िया लगे और अनुकूल क्या है, इसका ध्यान रखें। भोजन हितकर हो। खाने में भी जल्दबाजी न हो। चबा-चबाकर खाएँ, धीरे-धीरे खाएँ। भोजन और विसर्जन की क्रिया संतुलित रहे। पहले विसर्जन बाद में भोजन की प्रेरणा दी।
तंत्र हमारा ठीक रहे। मेरी साधना भी अच्छी रहे। ज्यादा रसों का प्रयोग न करें। विगय वर्जन भी बहुत बढ़िया है। आलोयणा भी उतर जाती है। गोचरी में भी ध्यान रखें। विवेक रहे, सुचारु हो।खाद्य संयम का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है-अनासक्ति। बाल मुनि खूब फले-फूलें। मन में प्रसन्नता रहे। तपस्या भी हो। भोजन का लाभ उठाएँ, स्वाध्याय, सेवा करें। श्रावक-श्राविकाओं में भी तपस्या चले। तपस्या के प्रत्याख्यान करवाएँ।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि हम माला फेरें तो एकाग्रता से फेरें। मन का संयम करना चाहिए। मन के तीन कार्य हैं-स्मृति करना, चिंतन करना और कल्पना करना। विचारों के प्रवाह को रोका नहीं जा सकता। हमारी स्मृति कर्म निर्जरा का कारण बने, आनंद प्रदान करें। कल्पना भी वो करें जो हमें लक्ष्य तक ले जाए। खेचरीमुद्रा करें, जीभी को अंदर में रखें। इससे मन का संयम होगा, विचार कम होंगे और आनंद का अनुभव होगा। मुमुक्षु बहनों ने गीत का संगान किया एवं साध्वी मुकुलयशाजी ने खाद्य संयम विषय पर गीत का संगान किया। मुनि राजकरण जी व मुनि सत्यकुमार जी ने भी खाद्य संयम के बारे में समझाया। मुनि राजकरण जी ने पुरुषों को पंचरंगी तप की प्रेरणा दी। मुनि हेमराज जी ने कायोत्सर्ग का प्रयोग करवाया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।