शब्द रत्न मंजुषा को सुरक्षित रखने का हो प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 27 अगस्त, 2022
पर्युषण महापर्व का चौथा दिनµवाणी संयम दिवस। अर्हम् वाणी के व्याख्याता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवान महावीर के पूर्व भवों का विवेचन करते हुए फरमाया कि आदमी को पद, पैसा, प्रतिष्ठा, प्रशंसा आदि भौतिक उपलब्धियों के आधार पर घमंड नहीं करना चाहिए। ज्ञान का उपयोग किया जा सकता है, पर ज्ञान का भी घमंड नहीं करना चाहिए। पांडित्य है तो उसका प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। शक्ति होने पर भी क्षमा का भाव रखना चाहिए। दान और त्याग में श्लाघा-प्रशंसा की भावना नहीं होनी चाहिए। मरीचि गर्व करता है कि मेरा कुल कितना उच्च है। मैं खुद प्रथम वासुदेव बनूँगा। मेरे पिता प्रथम चक्रवर्ती और मेरे दादा प्रथम तीर्थंकर बने हैं। मैं तो वासुदेव, चक्रवर्ती और अंतिम तीर्थंकर वर्तमान अवसर्पिणी काल का बनूँगा। घमंड आ गया। घमंड का सिर नीचा व कर्म का बंध कराने वाला होता है।
सेवा एक धर्म है। बीमार या सेवा अपेक्षा की सेवा करनी चाहिए। माता-पिता को धार्मिक सेवा का सहयोग देना चाहिए। उनके चित्त समाधि रखने का प्रयास करना चाहिए। अंतिम समय में त्याग-प्रत्याख्यान में कैसे सहयोगी बनें, प्रयास करना चाहिए। मरीचि बीमार पड़ता है, एक शिष्य भी बनाता है और उसका जीवन पूरा होता है। मरीचि के जीवन से यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि कोई किसी स्थिति को लेकर साधुपना न भी पाल सके तो भी पूरा गृहस्थ तो न बने। साधक का जीवन जीए, संयम का कुछ पालन करे।
नयसार की आत्मा के पंद्रह भव तक को संक्षेप में समझाया। सोलहवें भव में भगवान की आत्मा ने चारित्र ग्रहण किया पर निदान भी कर लिया कि अगले भव में मैं प्रबल बलशाली बनूँ। संयम-शील, चारित्र ग्रहण करने वाले को मोक्ष के सिवाय और कोई कामना नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने वाला करोड़ रुपये देकर एक कांकिणी को खरीदता है, पर कर्मों का योग है। प्रबल बल के लिए साधुपन बेच देना छोटी बात है।
अठारहवें भव में भगवान की आत्मा मनुष्य रूप में जन्म लेती है। पोतनपुरा नाम का नगर राजा प्रजापति। दो रानियाँ थी, दो पुत्र थे। नाम था राजकुमार अचल त्रिपृष्ठ। दोनों विद्याओं में पारंगत हो गए। पारंगत होने के लिए खपना पड़ता है। व्याकरण तो अलूणी शिला है, पर उसका ज्ञान महत्त्वपूर्ण है। स्वाध्याय में तो रस आ सकता है। संस्कृत भाषा में तो व्याकरण के ज्ञान बिना आदमी अंधा है। शब्दकोष नहीं होने पर वह बधिर है। साहित्य के बिना पंगु है। तार्किक शक्ति के बिना आदमी गूँगा है। ज्ञान में तर्क भी होना चाहिए। तर्क विकास का साधन है। आज्ञा पालन में सतर्क रहो। ज्ञान में पारंगत बनने का प्रयास करें। राजा के दोनों पुत्र सहयोगी बन गए। अगली पीढ़ी तैयार हो जाए तो आदमी को अन्य कार्य करने का मौका मिल सकता है।
आज वाणी संयम दिवस है। वाणी हमारे जीवन व्यवहार का एक सक्षम साधन है। वाणी एक उपलब्धि है, लब्धि है। जैसे चाकू से ऑपरेशन भी किया जा सकता है और किसी की हत्या भी की जा सकती है। चलना कहाँ और कैसे वो खास बात है। इसी तरह हम वाणी का सदुपयोग भी कर सकते हैं और दुरुपयोग भी कर सकते हैं। वाणी का जहाँ आवश्यक नहीं है, वहाँ अनावश्यक उपयोग न करें। हमारे शब्द भी रत्न हैं, इनका मौके-मौके पर उपयोग करें, अन्यथा होठ कपाट बंद रखें। परिमितभाषिता वाणी संयम का महत्त्वपूर्ण सूत्र है। मितभाषी बनें। दोष रहित भाषा बोलें। विचार कर बोलें। हर बात हर कहीं न बोलें। भाषा समिति के प्रति जागरूक रहे। दूसरे को कष्ट पहुँचे ऐसी बात न बोलें। बोलने में उदारता-विनय भाव है। मौन भी किया जा सकता है। शब्द रत्न मंजुषा को सुरक्षित रखने का प्रयास करें।
पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। बहनों में नवरंगी व भाईयों में पचरंगी चल रही है। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि वाणी का अनावश्यक प्रयोग न करें। अहंकार की भाषा न बोलें, विनम्रता से बोलें। ओछे शब्द का भी प्रयोग न करें। शब्दों से व्यक्ति जाति का पता लग सकता है। हम सत्ययुक्त वाणी बोलें। मुख्यमुनि महावीर कुमारजी ने कहा कि भाषा का विवेक रखना चाहिए। परीक्षा करके बोलो। पहले तोलो फिर बोलो। हितकारी और मितकारी वचन की साधना करनी चाहिए। हमारी भाषा मित्यायुक्त व कठोर न हो। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने कहा कि लाघव धर्म और सत्य धर्म। लाघव यानी हमें हल्का बनना है। आत्मा को हल्का बनाने के लिए हमें कषाय मंद करने होंगे। हम आत्मा को पापों से बचाने का प्रयास करें। सत्य आत्मशुद्धि का सुंदर पथ है। मुनि मृदुलजी, मुनि नमन कुमार जी, मुनि सत्यकुमार जी ने प्रेरणादायक अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।