आगम वाणी के महान मर्मज्ञ थे जयाचार्य
टी-दासरहल्ली।
शासनश्री साध्वी कंचनप्रभाजी के सान्निध्य में तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ अधिशास्ता प्रज्ञापुरुष जयाचार्य का 142वाँ महाप्रयाण दिवस समारोह साध्वीवृंद द्वारा नमस्कार महामंत्रोच्चार एवं प्रभु पार्श्व स्तुति संगान से प्रारंभ हुआ। शासनश्री साध्वी कंचनप्रभाजी ने कहा कि तेरापंथ धर्म के द्वितीय आचार्य श्री भारमल जी की आज्ञा से मुनि रायचंदजी द्वारा मात्र 9 वर्ष की लघुवय में दीक्षित जीत मुनि महान प्रज्ञा संपन्न बने। श्री जयाचार्य में बचपन से ही बुद्धि वैभव, एकाग्रता तथा स्वाध्याय तथा गुरुचरण में सहज समर्पण भाव था। आपने आगे कहा कि आप आगम वाणी के महान मर्मज्ञ थे। जैन शासन में विशाल आगम भगवती सूत्र पर आपने 60 हजार पद्यों में राजस्थानी भाषा में रचना की।
शासनश्री साध्वी मंजुरेखा जी ने कहा कि प्रज्ञापुरुष जयाचार्य ने अपने 30 वर्षीय आचार्य काल में आचार्य भिक्षु द्वारा बांधी मर्यादाओं को मूल्यवत्ता प्रदान करने हेतु अनेक उपक्रम धर्मसंघ को दिए। उन व्यवस्थाओं की हर सफल परिणति तेरापंथ धर्मसंघ की चारित्रात्माएँ, ज्ञान, दर्शन, चारित्र आराधना के साथ बहुआयामी विकास कर रहे हैं।साध्वी उदितप्रभा जी, साध्वी निर्भयप्रभा जी व साध्वी चेलनाश्री जी भी जयाचार्यप्रवर के जीवन के विविध संस्मरण सत्र में प्रस्तुत किए। इस अवसर पर तेरापंथ सभा ट्रस्ट, तेममं, तेयुप एवं सकल जैन समाज के श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति रही। संचालन सभा मंत्री द्वारा किया गया।