धर्म चेतना के जागरण में साधु समाज का विशिष्ट योगदान: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

धर्म चेतना के जागरण में साधु समाज का विशिष्ट योगदान: आचार्यश्री महाश्रमण

मेधावी छात्र सम्मान समारोह

ताल छापर, 3 सितंबर, 2022
तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र पर विवेचना करते हुए फरमाया कि कुछ प्राचीन काल में जो तुंगिया नगरी थी वहाँ की विशेषता यह थी कि वहाँ श्रमणोपासक श्रावक लोग रहते थे। वे धनाढ्य धार्मिक दृष्टि से और संपन्न थे। उस तुंगिया नगरी में एक बार साधुओं का समागम होता है। वे साधु भगवान पार्श्व की परंपरा के थे। वे जाति संपन्न, कुल संपन्न, बल संपन्न, रूपवान थे। उनकी आंतरिक विशेषताएँ भी थीं। वे विनय संपन्न, ज्ञान, दर्शन चारित्र और तप संपन्न थे। बड़े तेजस्वी व निद्राजयी भी थे। जितेंद्रिय और ज्ञानी थे। प्रश्न-जिज्ञासा का समाधान करने वाले थे।
नगर में लोगों को साधुओं के आने का पता लगा तो वे साधुओं के दर्शन करने आए। वंदन नमस्कार किया तो साधुओं ने प्रवचन देना शुरू कर दिया। प्रवचन में चातुर्मास धर्म कथा शुरू की। श्रमणोपासक श्रावकों ने प्रवचन सुना, बड़े प्रसन्न हुए। अब वे जिज्ञासा करते हैं। साधुओं/भगवंतों संयम करने से क्या फल मिलता है? तप करने से क्या फल मिलता है? साधुओं ने उत्तर दिया कि श्रावकों ये संयम जो करता है, उसका फल है, आश्रव का निरोधं कर्म का रास्ता रुकता है। तप से व्यवदान कर्मों की निर्जरा होती है। श्रावकोें ने प्रश्न किया कि देवलोक में देवता किस कारण से पैदा होते हैं? चार स्थविरों ने जवाब दिए। एक साधु कालिकपुत्र ने जवाब दिया कि जीव पूर्व तप के कारण देवलोक में उत्पन्न होते हैं। दूसरे साधु मैथिक ने जवाब दिया कि पूर्व संयम से देवलोक में उत्पन्न होते हैं।
तीसरे साधु आनंद रक्षित ने कहा कि कर्म की सत्ता से देवलोक में उत्पन्न होते हैं। चौथे साधु काश्यप ने जवाब दिया कि आसक्ति के कारण देवलोक में उत्पन्न होते हैं। हमें जो ज्ञान है, उस हिसाब से हमने बताया है। प्रश्न किया गया कि तप और संयम तो आध्यात्मिक की बात है, उससे देवलोक से क्या मतलब है? तप तो व्यवदान है, जवाब दिया कि कुछ ऐसे कर्म हैं, जिनसे आगे के आयुष्य का बंध होता है। साथ में राग और आसक्ति भी है। क्षीण वीतराग कोई बन गया तो फिर देवलोक में नहीं जाता।
तप से निर्जरा होती है, साथ में पुण्य का बंध भी होता है। संयम की अवस्था में जो निर्जरा होती है, वो अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। निर्जरा और संयम से पुण्य का बंध होता है, उसमें राग भी है। इसलिए देव देवलोक में उत्पन्न होते हैं। प्रश्नों का उत्तर पाकर श्रावक प्रसन्न हो वंदन करते हैं। वे स्थविर वहाँ से विहार कर अन्यत्र विचरण करना शुरू कर देते हैं। नगर में साधुओं का आना इस कारण लाभदायी हो सकता है।
साधुओं से जिज्ञासा कर समाधान पाना विशिष्ट बात होती है। इतनी तपस्याएँ होती हैं, इनके होने में साधु-साध्वियों का योग रहता है। समणियों का भी योग रहता है। कुछ दिनों के लिए उपासकों व मुमुक्षु बहनों का भी योग रहता है। साधु-साध्वियों का गाँव में होना भी अच्छी बात होती है। भगवती सूत्र में भगवान महावीर व उनके शिष्यों की बात भी है। साथ-साथ भगवान पार्श्व की परंपरा के स्थविर अगवंतों की बात भी आती है। कुमार श्रमण केशी जैसे उत्तर देने वाले संत भी हुए हैं।
साधु समाज देश में शांति बनाए रखने में, अच्छे संस्कार देने में, अच्छी धर्म चेतना का जागरण करने में अपना योगदान दे सकते हैं। युवावस्था के साधु अच्छा परिश्रम करके धार्मिक चेतना जगा सकते हैं। हमें तो परमपूज्य कालूगणी की जन्मभूमि में चातुर्मास करने का अवसर मिला है। हम भी धर्म की जागरणा करने का प्रयास करें।
टीपीएफ द्वारा मेधावी छात्र सम्मान समारोह का आयोजन हुआ।
मनोहरी देवी बाफना ने पूज्यप्रवर से 17 की तपस्या के प्रत्याख्यान लिए। पूज्यप्रवर ने उनसे भूतकाल में की गई तपस्याओं की जानकारी ली। टीपीएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवीन पारख एवं पुष्पा जैन ने टीपीएफ की प्रवृत्तियों की जानकारी दी। पूज्यप्रवर ने टीपीएफ के सदस्यों को आशीर्वचन प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में भविष्य के लिए यह बात है कि भविष्य कैसे अच्छा रहे। भविष्य को अच्छा बनाने के लिए वर्तमान को भी अच्छा बनाना होगा। कुछ अच्छा करना चाहिए। मेधावी छात्र समारोह है। जिनके पास अध्ययन है, उनके पास आगे भी अध्ययन का अवकाश हो सकता है। अच्छे भविष्य के लिए शिक्षा भी आवश्यक है। इंटलेक्च्यूवल पॉवर और आई क्यू कितना है। बौद्धिकता, शिक्षा, ज्ञान का भी बहुत महत्त्व है। ज्ञान के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए।
अंक अच्छे मिले बढ़िया बात हो सकती हैं, पर साथ में साधना शुद्धि हो। मेरा ज्ञान अच्छा हो, मेरी योग्यता अच्छी बढ़े। हमारा सुनहरा भविष्य इस जीवन के लिए ही नहीं, आगे के जीवन के लिए भी हो। विद्यार्थी में सच्चाई के प्रति निष्ठा हो। जीवन में संयम भी चाहिए। नशामुक्त जीवन हो। खान-पान शुद्ध हो। नवकार मंत्र का जप हो। अच्छे संकल्प करने की शक्ति हो। 
भविष्य सुंदर बनाने के लिए

शक्ति का जागरण हो: साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा

साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि हम अपना भविष्य सुंदर बनाना चाहते हैं। यह केवल टीपीएफ के लोगों की भावना नहीं है। हर आदमी चाहता है कि मेरा भविष्य सुनहरा बने। सोचना है कि भविष्य सुनहरा कैसे बनेगा। बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों या बड़ी कंपनियों में जॉब करने से या बहुत बड़ा बिजनेसमैन बनने से क्या उनका भविष्य सुंदर बन जाएगा। ये सब एक तरफ की चीजें हैं। भविष्य सुंदर बनाने के लिए आपको अपनी शक्ति की तरफ ध्यान देना होगा। हमें शक्तियों का जागरण करना होगा। एकाग्रता की शक्ति द्वारा हम वर्तमान में रहना सीखें। एकाग्रता ज्ञान की वृद्धि में निमित्त बनता है। खुश रहने के लिए दत्तचितता से काम करें। संकल्पशक्ति मजबूत बनाएँ। सकारात्मक सोच हो। स्मरणशक्ति बढ़े। चरित्र की शक्ति भी बढ़े। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।