अत्यंत प्रभावशाली और असीम पुण्यवान थे अष्टम आचार्य कालूगणीराज: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 2 सितंबर, 2022
भाद्रवा शुक्ला षष्ठी, परमपूज्य अष्टमाचार्य श्री कालूगणी का वार्षिक महाप्रयाण दिवस। तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन शासन में आचार्य का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। हमारे धर्मसंघ में तो आचार्य का सर्वोच्च स्थान होता है। हमारे धर्मसंघ के प्रथम आचार्य परमपूज्य भिक्षु स्वामी हुए। उनकी उत्तराधिकार परंपरा में अष्टमाचार्य परमपूज्यश्री कालूरामजी स्वामी हुए। आज भाद्रव शुक्ला षष्ठी परमपूज्य कालूगणी का महाप्रयाण दिवस है। मेरे जीवन का पहला अवसर है कि छापर में परमपूज्य कालूगणी के महाप्रयाण दिवस पर कुछ बोल रहा हूँ।
भाद्रव शुक्ला षष्ठी का दिन मेरे साथ विकास के रूप में जुड़ा हुआ है। आज ही के दिन मैंने दीक्षा लेने का अंतिम फैसला किया था। गुरुदेव तुलसी व आचार्य महाप्रज्ञ जी उनके करकमलों से दीक्षित थे। छोटे बालक के रूप में मैंने यह संकल्प किया था कि मुझे जीवन-भर शादी करने का त्याग है। चिंतन से पहले कालूगणी की माला फेरी थी। पवित्र मार्ग पर चलने का संकल्प प्राप्त हो गया। पूज्य कालूगणी द्वारा दो-दो दीक्षित युग प्रधान आचार्य धर्मसंघ को प्राप्त हुए। पूज्य कालूगणी का मघवागणी से इतना लगाव था कि मघवागणी का नाम आते ही उनकी आँखें आद्रता से गीली हो जातीं। ऐसी ही बात गुरुदेव तुलसी की थी कि कालूगणी का नाम आते ही वे उनके बारे में फरमाते। वे कहते कि मैं अगर चित्रकार होता तो कालूगणी का चित्र बना देता। लगभग 27 वर्ष तक कालूगणी ने हमारे धर्मसंघ की डोर संभाली।
कालूगणी कोमल थे तो कभी कड़ाई भी करते थे। उनके जीवन का अंतिम वर्ष स्वास्थ्य की दृष्टि से अनुकूल नहीं रहा। मगन मुनि उनके परम मित्र थे। युवाचार्य चयन के लिए दोनों में चर्चा चली थी। कालूगणी आश्वस्त हो गए थे। भाद्रवा शुक्ला द्वितीया को अपना उत्तराधिकार नियुक्ति का पत्र लिख दिया था। तृतीया को लोच भी करवाया था। छठ के चौथे प्रहर के समय मगन मुनि को याद किया। उनके आते ही कालूगणी के मुँह से दो शब्द निकले अ ब।
मगन मुनि ने संथारा पचखाने का निवेदन करवाया था, कालूगणी ने कहा हाँ पचखा दो। मगन मुनि ने चारों आहार का त्याग करवा दिया। युवाचार्य भी पास में ही थे। छः बजकर दो मिनट पर संथारा पचक्खाया और छः बजकर नौ मिनट पर संथारा सीज गया। साध्वी झमकुजी आदि साध्वियाँ व संत भी पास में थे। कई श्रावक वहाँ थे। देखते-देखते तेरापंथ का वह सूर्य अदृश्य हो गया। कालूगणी का विरह आकाश का सूर्य भी नहीं सह सका, वह भी अस्त हो गया। गंगापुर में महाप्रयाण हुआ था।
छापर की यह धरा जहाँ कालूगणी जैसा सूर्य धर्मसंघ को प्राप्त हुआ। कालूगणी जन्म शताब्दी पर मैं पूज्य गुरुदेव तुलसी के साथ बाल मुनि के रूप में यहाँ छापर में था। मैं कालूगणी को अपनी श्रद्धा भावना अर्पित करता हूँ। उनके महाप्रयाण को जुड़े 86 वर्ष हो गए हैं। कालूगणी के प्रति मेरी मंगलकामना। ‘कालू प्रभु पादाम्बुज अर्पित भाव भीनी वंदना’ गीत का सुमधुर संगान किया। हमारी भक्ति की भावना बड़ी भेंट होती है।
गुरुदेव तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का कालूगणी के प्रति सम्मान का भाव था। मगन मुनि के प्रति भी आदर का भाव प्रकट किया करते थे। कालूगणी का नाम उनके लिए मंत्र जैसा था। कालूगणी की इच्छा तो थी कि मैं उत्तराधिकारी यहाँ छोगांजी के सामने बीदासर के सामने घोषित करूँ पर गंगापुर में स्थिति खराब हो गई। बात मन में ही रह गई। आदमी के मन की हर बात पूरी हो जाए, जरूरी नहीं है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ की परंपरा में अब तक 10 आचार्य हो चुके हैं। ग्यारहवीं परंपरा को हम साक्षात देख रहे हैं। अष्टमाचार्य कालूगणी का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था। जो असीम पुण्यवत्ता को लिए हुए था। विरोधी लोग भी उनके व्यक्तित्व से अभिभूत हो जाते थे। कालूगणी के पास विदेशी लोग भी आए। प्रभावित भी हुए। वे पुण्य परमाणुओं के पुतले थे। मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने कालूगणी के प्रति श्रद्धा भाव अभिव्यक्त करते हुए ‘श्रीकालू गुरुवर को हम ध्यायें’ गीत का सुमधुर संगान किया। साध्वीवृंद द्वारा पूज्य कालूगणी के जीवनवृत्त पर सुंदर प्रस्तुति हुई। कालूगणी के बारे में कुछ जिज्ञासाएँ रखीं। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि संवतसरी चौथ की होने से ये कार्यक्रम हो सका है। साध्वियों ने तैयारी कर अपनी प्रस्तुति दी है। एक प्रश्न मेरे मन में उठ रहा है कि वो ग्लास क्या चीज थीं साध्वियों ने बताया कि वो तो एक विधा थी। मूल तो कर्मों के आधार पर कालूगणी को जानना था। ग्लास में अतीत का दृश्य दिखता है, वैसा प्रयास किया।
डालगणी ने प्रकट रूप में युवाचार्य घोषित नहीं किया उसके बारे में कालूयशोविलास में गुरुदेव तुलसी ने थोड़ी जानकारी दी है कि कोई न कोई कारण रहा होगा पर यह अनभिज्ञता है। डालगणी का चिंतन रहा होगा। क्षयोपशम और पुण्य दोनों ऐसी चीजें हैं जो इन दोनों में कुछ समानता लगती है। घाति कर्म से जो लाभ मिलता है, वो तो क्षयोपशम की स्थिति होती है। जहाँ अघाति कर्म में लाभ की स्थिति होती है, वो पुण्य होता है।
मेरी कालूगणी की माला फेरने की जो बात है, उसमें यह कि मैं अच्छा श्रावक बनना चाहता था। संतों के पास कई बार जाता तो उनसे लगाव था। एक दिन मुनिश्री सुमेरमल जी ‘लाडनूं’ ने कहा कि अब चिंतन करके एक निर्णय स्पष्ट कर लो। आज कालूगणी की छठ है। तुम कालूगणी की माला पहले फेर लेना फिर चिंतन करना कि तुम्हें क्या करना चाहिए। उनके कहे अनुसार माला फेर चिंतन किया। मुझे ऐसा अचानक प्रकाश या ज्ञान सा हुआ। लाभ-हानि का चिंतन हुआ। मैंने सोचा दोनों ओर कठिनाइयाँ हैं। घर में रहोगे तो कठिनाईयों के साथ आगे क्या होगा पता नहीं पर साधु बनोगे तो कठिनाईयाँ तो हैं, पर पंद्रह जन्मों में मुक्ति मिल जाएगी। यह बात बिजली की तरह कोंधी और मैंने निर्णय कर लिया और शादी करने का आजीवन त्याग कर लिया। व्यवस्था समिति अध्यक्ष माणकचंद नाहटा, आलोक नाहटा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। गंगाशहर का विशाल संघ गुरु सन्निधि में चातुर्मास की अर्ज करने अर्जोत्सव के स्वरूप में पहुँचा। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।