दीक्षा ग्रहण करना जीवन यात्रा का महत्त्वपूर्ण अवसर होता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

दीक्षा ग्रहण करना जीवन यात्रा का महत्त्वपूर्ण अवसर होता है: आचार्यश्री महाश्रमण

अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मभूमि छापर में भव्य जैन भगवती दीक्षा समारोह

ताल छापर, 9 अक्टूबर, 2022
तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मभूमि छापर में आयोजित द्वितीय दीक्षा समारोह में प्रेरणा प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि आज परमपूज्य कालूगणी की सांसारिक जन्मभूमि छापर में यह दूसरा दीक्षा समारोह हो रहा है। हमारे साहित्य में आता है-आदि मंगल, मध्य मंगल और अंत मंगल। चातुर्मास लगने से पहले दीक्षा होगी आज मध्य में हो रही है। मध्य में ये त्याग-संयम ग्रहण का समारोह हो रहा है।
दीक्षा प्राप्त होना, मुनि-साध्वी दीक्षा होना अनंत काल की हमारी यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण अवसर होता है। आज तीन दीक्षार्थिनी बाईयाँ और एक दीक्षार्थी भाई, चार दीक्षार्थी उपस्थित हैं। दीक्षा के लिए ज्ञातियों की आज्ञा लेना भी आवश्यक है, मौखिक का और ज्यादा महत्त्व हो जाता है। ज्ञाती जनों की मौखिक आज्ञा ली। दीक्षार्थियों से भी सहमति ली। पूज्यप्रवर ने आर्षवाणी के साथ श्रमण भगवान महावीर को नमस्कार करते हुए, आचार्य भिक्षु एवं उनकी उत्तरोत्तर परंपरा को वंदन करते हुए दीक्षार्थियों को तीन करण तीन योग से सर्व सावद्य योग का सामायिक पाठ से त्याग करवाए। आर्षवाणी से अतीत की आलोचना करवाई।
पूज्यप्रवर ने नवदीक्षित मुनि की एवं साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने नवदीक्षिता साध्वियों का केश लोच किया। यह केश लोच इस बात का प्रतीक है कि चोटी गुरु के हाथ में रहनी चाहिए। अनुशासन का बड़ा महत्त्व है। पूज्यप्रवर ने आर्षवाणी के साथ नवदीक्षित को एवं साध्वीप्रमुखाश्री जी ने नव दीक्षिताओं को रजोहरण एवं प्रमार्जनी प्रदान करवाई। आचार्यप्रवर ने आगे फरमाया कि मुमुक्षुओं की संख्या बढ़े पर मुमुक्षुओं की संख्या वृद्धि में पारिवारिकजनों का भी सहयोग चाहिए। नामकरण संस्कार कराते हुए पूज्यप्रवर ने नवदीक्षित अश्विन का नाम मुनि आगम कुमार, मुमुक्षु रोशनी का नाम साध्वी रोशनीप्रभा, मुमुक्षु तारा का साध्वी तीर्थप्रभा एवं मुमुक्षु दीक्षा का साध्वी दीक्षाप्रभा प्रदान किया।
दीक्षा के उपक्रम के दौरान आचार्यश्री ने फरमाया कि आज के दिन ही मेरी भी दीक्षा हुई थी। मुझे दीक्षा लिए हुए 48 वर्ष 4 महीने हो गए। मेरी दीक्षा सरदारशहर में गुरुदेव तुलसी की आज्ञा से मुनि सुमेरमल जी स्वामी के द्वारा हुई। आज साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी की अर्द्धवार्षिक पुण्यतिथि है। हमारे नए साध्वीप्रमुखाजी को साध्वीप्रमुखा पद पर आसीन हुए दो महीने हो गए। आज के दिन आचार्यश्री ने अपने संसारपक्षीय ज्येष्ठ भ्राता सुजानमल दुगड़ सहित बहनों और अन्य लोगों को याद करते हुए अनेक घटना प्रसंगों का वर्णन किया। सुजानमल दुगड़ व साध्वी जिनप्रभाजी ने उस समय के घटना प्रसंगों का वर्णन किया।
वहीं दूसरी ओर पूर्व मंत्री सावित्री जिंदल ने आचार्य महाश्रमण जी के दर्शन किए तो आचार्यश्री ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि राजनीति में होने के बावजूद भी सावित्रीजी एक श्राविका हैं, जो सामायिक भी करती हैं। सावित्री जिंदल ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि आज मुझे आपश्री के दर्शन कर अपार प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है। आपश्री उदार चिंतन वाले और विश्व का कल्याण करने वाले हैं। हरियाणा के लिए यह गौरव की बात है कि आज हरियाणा से भी दीक्षा हुई हैं और मैं भी इस अवसर पर उपस्थित हो सकी।

साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि आदमी को भीतर के सौंदर्य के आनंद का अनुभव करना चाहिए। भीतर का सौंदर्य ही दीक्षा है। असीम सुख का अनुभव करना, असीम सौंदर्य की अनुभूति करना, असीम शांति का अनुभव करना ही दीक्षा है-आज ये चारों मुमुक्षु इन सबको पाने के लिए एक नए मार्ग अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर हो रहे हैं। मुनि धर्मरुचि स्वामी ने अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त की। दीक्षा से पूर्व मुमुक्षु भाविका ने चारों मुमुक्षुओं का परिचय दिया। पारमार्थिक शिक्षण संस्था के संयोजक बजरंग जैन ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। चारों मुमुक्षुओं ने अपनी भावना पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में अर्पित की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।