श्रुत संपन्न आचार्य थे परम पूज्य कालूगणी: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

श्रुत संपन्न आचार्य थे परम पूज्य कालूगणी: आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यप्रवर ने करी ‘कालूगणी अभिवंदना सप्ताह’ मनाने की घोषणा

ताल छापर, 10 अक्टूबर, 2022
महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आज भाद्रव शुक्ला पूर्णिमा है। भाद्रव महीना जैन शासन में अध्यात्म की साधना की दृष्टि से दिगंबर और श्वेतांबर दोनों परंपराओं के संदर्भ में अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। पर्युषण महापर्व, संवत्सरी और दस लक्षण पर्व इस भाद्रव मास में अवतरित होते हैं। यह महीना चार आचार्यों के महाप्रयाण के साथ जुड़ा हुआ है। भाद्रव कृष्णा द्वादशी को जयाचार्य का महाप्रयाण हुआ। भाद्रव शुक्ला छठ को परमपूज्य कालूगणी का महाप्रयाण हुआ। भाद्रवा शुक्ला द्वादशी को पूज्य डालगणी का महाप्रयाण हुआ। भाद्रवा शुक्ला त्रयोदशी के दिन परमपूज्य हमारे धर्मसंघ के प्रथम आचार्य भिक्षु स्वामी का महाप्रयाण हुआ।
हम पदोन्नति की दृष्टि से देखें तो भाद्रवा शुक्ला तृतीया के दिन मुनि तुलसी को परमपूज्य कालूगणी ने अपना उत्तराधिकारी युवाचार्य प्रगट रूप में मनोनीत किया था। भाद्रव शुक्ला नवमी को परम वंदनीय आचार्य तुलसी का औपचारिक रूप में गंगापुर में आचार्य पदारोहण हुआ था। इसी दिन आचार्य तुलसी ने मुझे महाश्रमण पद पर प्रतिष्ठित किया था। साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी को महाश्रमणी पद पर प्रतिष्ठित किया था। भाद्रव शुक्ला पूर्णिमा को परमपूज्य कालूगणी का आचार्यपद पर आरोहण हुआ था। आज उनका 114वाँ आचार्य पदारोहण दिवस है। हम छापर में चातुर्मास कर रहे हैं जो कालूगणी प्रवर की जन्मभूमि है। आचार्य पद पर आरूढ़ होना और वह भी जैन श्वेतांबर तेरापंथ के आचार्यपद पर आरूढ़ होना एक विशेष बात है।
एक आचार्य के अनुशासन में पलने वाला, चलने वाला जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ है। आचार्य द्वारा भावी आचार्य का मनोनयन होता है। णमो आयरियाणं नमस्कार महामंत्र में मध्य तीसरा पद है। आचार्य स्वयं आचार का पालन करें व दूसरों को पालने में सहयोग दें। सारणा-वारणा करें। आचार्य अपने सिद्धांतों को जानने वाले हों, साथ में पर सिद्धांत को भी जानने वाले हों। यह श्रुत संपदा आचार्य में हो। पूज्य कालूगणी भी आचार पालन में जागरूक थे। श्रुत संपन्नता थी। संस्कृत भाषा का ज्ञान था। शरीर-संपदा भी आचार्य की अच्छी रहे। यात्रा कर सके, प्रवचन दे सके। इंद्रियाँ सक्षम रहनी चाहिए। श्रावकों की संभाल कर सकें। कालूगणी का जीवनकाल लगभग 60 वर्ष का था। अनेक यात्राएँ की थीं।
आचार्य की वचन संपदा भी अच्छी हो। गुरुदेव तुलसी से पूज्य कालूगणी के व्याख्यानों के बारे में सुना था। आचार्य अध्यापन भी करा सकें। तार्किकता-तर्कशीलता हो। आचार्य की शिष्य संपदा भी हो। पूज्य कालूगणी ने कितनी दीक्षाएँ प्रदान करवाई थी। आचार्य में व्यवस्था करने का भी कौशल हो। मौके पर कड़ाई भी कर सकें। आवश्यकता पड़े तो फूल से भी कोमल हो जाएँ। धर्मसंघ की सुरक्षा और विकास कर सकें। पूज्य कालूगणी पूर्ण चंद्रमा की कलाओं के समान भाद्रवी पूनम को हमारे धर्मसंघ के अष्टम आचार्यपद पर सुशोभित हुए थे। मैं परमपूज्य कालूगणी का श्रद्धा भाव के साथ स्मरण और उनको वंदन करता हूँ। हम उनकी जन्मभूमि में एक सप्ताह कालूगणी का मनाएँ ऐसा प्रयास करें। कालूगणी अभिवंदना सप्ताह भी मनाएँ। उनके जीवन के अलग-अलग विषय बनाकर उन पर विवेचना हो। हमारे संयोजक मुनिजी तारीख देख लें।
पूज्यप्रवर ने तपस्याओं के प्रत्याख्यान करवाए। मुनि खुश कुमारजी, मुनि अर्हम कुमारजी ने ग्यारह की तपस्या के प्रत्याख्यान लिए। प्रेक्षा अधिवेशन चल रहा है। प्रेक्षा फाउंडेशन के संयोजक अशोक चिंडालिया ने प्रेक्षावाहिनी की जानकारी दी। केंद्र प्रभारी विजयश्री ने भी अपनी भावना रखी। आचार्यप्रवर ने शिविरार्थियों को पावन पाथेय एवं आशीर्वचन फरमाया। कन्या मंडल द्वारा गीत की प्रस्तुत हुई। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि जो जीव अशुभ लेश्या में मृत्यु को प्राप्त करता है, उसे बोधि प्राप्त होना दुर्लभ है।