भिक्षु स्वामी के ज्ञान से प्रेरणा लेकर ज्ञान का विकास करें: आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक महामना भिक्षु का 220वाँ चरमोत्सव
ताल छापर, 8 सितंबर, 2022
भाद्रव शुक्ला त्रयोदशी आचार्य भिक्षु का वार्षिक महाप्रयाण दिवस भिक्षु चरमोत्सव। आचार्य भिक्षु के परंपर पट्टधर वर्तमान के भिक्षु आचार्यश्री महाश्रमणजी ने फरमाया कि दसवेंआलियं के श्लोकों में भिक्खु-भिक्खु शब्द आता रहता है। भिक्षु एक साधु का पर्यायवाची शब्द है, जो भिक्षाशील होता है। यह भिक्खु नाम हमारे जैन श्वेतांबर तेरापंथ के प्रथम आचार्य का नाम भी भिक्षु के रूप में प्राप्त है। आज भाद्रव शुक्ला त्रयोदशी है। चातुर्मास का पूर्वार्द्ध संपन्न हो रहा है। आज का दिन आचार्य भिक्षु के जीवन का चरम दिन है। जिसका महाप्रयाण हो गया वह दिवस चरम दिवस हो जाता है।
आचार्य भिक्षु के जीवन को हम देखें, दृष्टिपात करें तो उनका जीवन विशिष्ट प्रतीत हो रहा है। मैं भगवान महावीर के जीवन को देखता हूँ। इधर आचार्य भिक्षु के जीवन को देखता हूँ। असमानता तो है ही, पर कुछ समानताएँ भी हैं। उनके जीवन संदर्भ के कुछ पहलू भगवान महावीर के जीवन प्रसंगों में दर्शन होता है। जैसे बाप-बेटे में समानता दिखती है, वैसे भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु में भी समानता का दर्शन होता है।
भगवान महावीर तीर्थंकर थे तो आचार्य भिक्षु को हम तीर्थंकर के प्रतिनिधि कह सकते हैं। आचार्य भिक्षु का जीवन एक सामान्य आदमी के जीवन से हटकर था। लगता है, उन्होंने पिछले जन्मों में तपस्या, साधना, योग, आराधना ऐसा किया है। उनके जीवन में संघर्ष भी आए, पर वे आगे बढ़ते गए। आचार्य भिक्षु ने दर्शन-सिद्धांत भी दिया है।
तेरापंथ को जानने के लिए तेरापंथ के दर्शन-सिद्धांत को जानना भी आवश्यक है। इतिहास व मर्यादा व्यवस्था भी जानना आवश्यक है। तेरापंथ के इतिहास को पढ़ने से अनेक प्रेरणादायक प्रसंग जान सकते हैं। आठ आचार्यों का तो इतिहास उपलब्ध है। आचार्यश्री तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के इतिहास का काम चल रहा है। शासन समुद्र का कार्य भी मुनि जम्बुकुमार जी, सरदारशहर कर रहे हैं।
तेरापंथ का सिद्धांत, तेरापंथ का दर्शन पुराने ग्रंथों से समझा जा सकता है। तेरापंथ के दर्शन का अध्ययन चारित्रात्माएँ करें। तेरापंथ की मर्यादा और व्यवस्था को भी जानने का प्रयास करें। मुनि कीर्ति भी तेरापंथ के नियम के जानकार हैं। इनको पढ़कर अध्ययन कर चारित्रात्माएँ तेरापंथ के प्रवक्ता बनें। साधु-साध्वियों को अध्ययन की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। ज्ञान का विकास होना चाहिए। आचार्य भिक्षु के पास आगम की दृष्टि से कितना ज्ञान था। उनकी बौद्धिक क्षमता विशेष थी। वे बिना डिग्री के विद्वान थे। जयाचार्य तो आचार्य भिक्षु के ज्ञान की दृष्टि से उत्तराधिकारी से लग रहे हैं। जयाचार्य का अपना विशिष्ट ज्ञान वैभव विराट रूप लिए था। गुरुदेव तुलसी व आचार्य महाप्रज्ञ जी भी विभिन्न विषयों के वेत्ता थे।
मंत्री मुनिश्री सुमेरमलजी स्वामी भी तेरापंथ दर्शन के प्रवक्ता थे। तेरापंथ के इतिहास का भी विशेष ज्ञान था। ज्ञान का विकास होना चाहिए। मुनि उदित कुमार जी का भी तेरापंथ दर्शन के बारे में अच्छा ज्ञान है। मुनि कुलदीप कुमार जी, मुनि जिनेश कुमार जी, मुनि मदनकुमार जी को भी तेरापंथ इतिहास का अच्छा ज्ञान है। हम भिक्षु स्वामी के ज्ञान से प्रेरणा लेकर ज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ें, ज्ञान का विकास करें। मुनि महेंद्र कुमार जी का ज्ञान का अच्छा विकास है। प्रखर उनका अध्ययन है। वे विभिन्न भाषाओं और विभिन्न विषयों के वेत्ता हैं। भिक्षु चरमोत्सव पर आचार्यप्रवर ने स्वरचित गीत ‘प्रतिदिन ध्यायें, शुभ सुख पाएँ’ का सुमधुर संगान किया। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। संघ गान से कार्यक्रम का समापन हुआ।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु का जीवन सरसता का जीवन रहा है। उस सरसता के कारण ही वो लोगों के आकर्षण के केंद्र बने हुए थे। लोग उनमें मिलने के लिए लालायित रहते थे। लोग चर्चा करते थे। चर्चा में स्वामीजी की बुद्धि तीक्ष्ण थी। वे हर प्रश्न के अकाट्य उत्तर देते थे। स्वामी जी के साथ चर्चा करना बड़ा महँगा पड़ता था। वे हर बात को सरलता से समझाते थे। मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने कहा कि जैन दर्शन में वही धर्म है, जिसमें आत्मा की विशुद्धि हो। हिंसा-परिग्रह धर्म नहीं है। ब्रह्मचर्य की साधना धर्म है। संसार के सभी कार्य बंध हैं। आचार्य भिक्षु ने कर्तव्य और धर्म की एक नई मीमांसा करके लोगों को एक नया पथदर्शन दिया। आचार्य भिक्षु का सिद्धांत था कि सत्य को सत्य समझो। तेरापंथ का सिद्धांत है कि बंधन को बंधन समझो, मुक्ति को मुक्ति समझो। मुनिवृंद व साध्वीवृंद द्वारा समूह गीत एवं तेयुप छापर की सुमधुर प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।