शारीरिक परिवर्तन के साथ जीवनशैली में परिवर्तन अपेक्षित: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 18 सितंबर, 2022
आगम वाणी के व्याख्याता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि ‘भगवती सूत्र’ में प्रश्न किया गया है कि भंते! ओदन होता है। कुलभाष है, सुरा है, ये किन जीवों के शरीर हैं? गौतम! ओदन, कुलभाष, सुरा में जो सघन द्रव्य है, वे पूर्व पर्याय प्रज्ञापन की अपेक्षा से वनस्पति जीवों के शरीर हैं। हमारे सामने जो दृश्य वस्तुएँ हैं, वो या तो जीवित शरीर है या जीव-मुक्त शरीर है। चावल पूर्व पर्याय से वनस्पतिकाय का शरीर है। फिर उनको अग्नि से शोषित कर दिया गया, फिर वे अग्नि जीवों के शरीर कहला सकते हैं। कुलभाष और सुरा में जो सघन पर्याय है, वो वनस्पतिकाय से है। बाद में अग्नि से संस्कारित होने के बाद अग्नि जीवों का शरीर कहा जा सकता है।
सुरा में जो द्रव तत्त्व हैं वो पानी के जीवों का शरीर है बाद में वह अग्नि से संस्कारित हुआ है, इसलिए इसे अग्नि जीवों का शरीर कहा जा सकता है। ये पूर्व पर्याय और उत्तर पर्याय के संदर्भ में शास्त्रकार ने बताया है। इसी प्रकार लोहा, ताँबा, राँगा, शीशा, पाषाण से पूर्व पर्याय की अपेक्षा तो पृथ्वी जीवों के शरीर हैं। बाद में वे अग्नि रूप में परिणित हो जाते हैं, तो अग्नि जीवों का शरीर कहा जा सकता है। इसी प्रकार हड्डी, जली हुई हड्डी, चर्म रोग, सींग, खुर, नख जो बिना जले हुए हैं या जले हुए हैं, इन्हें त्रस प्राण जीवों के शरीर कहते हैं। बाद में जब दग्ध हो जाएँ तो इन्हें पूर्व पर्याय की अपेक्षा तो त्रस व उत्तर पर्याय की अपेक्षा से इन्हें अग्नि प्राण जीवों का शरीर कहा जा सकता है। इस तरह जीवों में परिणमन तो आता है। पदार्थ में स्थायीत्व है, तो परिवर्तन भी है। जीवन को तीन भागों में बाँटा जाता हैµबचपन, जवानी और बुढ़ापा। परिवर्तन को हम रोक भी नहीं सकते हैं। परिवर्तन के साथ आदमी अपनी जीवनशैली का क्रम अच्छा रखे। शरीर में परिवर्तन हो रहा है, तो जीवनशैली में परिवर्तन अपेक्षित है।
शरीर में परिवर्तन आया तो वाणी में भी परिवर्तन आए। समता-शक्ति रखें। कायोत्सर्ग करते रहें। धार्मिक साधना में समय ज्यादा लगाएँ। जीवन में धैर्य भी रखें। पर्याय परिवर्तन का सिद्धांत है, उसके साथ हमारे चैतन्य का परिवर्तन भी यथायोग्य होता रहे। दोनों में सामंजस्य रहे तो गाड़ी अच्छी तरह चल सकती है।
कालूयशोविलास की व्याख्या करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि जब पूज्य कालूगणी लाडनूं पधारे तो बालक तुलसी भी उन्हें देखकर आकृष्ट हुआ। तुलसी ने अपनी माँ से कालूगणी के बारे में कई जिज्ञासाएँ समाहित की। बालक तुलसी फिर माँ से पूछते हैं कि इन पुजी महाराज के बाद कुण पुजी महाराज बनेंगे। माँ ने डाँटते हुए कहा कि खबरदार जो ऐसी बात कभी करी तो। आपणां पुजी महाराज तो क्रोड़ दिवाली राज करो, ऐसी मंगलकामना करें। बालक तुलसी बार-बार पुजी महाराज को देखने की इच्छा व्यक्त करता है तो माँ कहती हैµबेेटा तू हलुकर्मी है, जो थांरी इसी इच्छा हो रही है। बालक बोलाµमैं इनका छोटा सा शिष्य बन जाऊँ तो माँ बोली बेटा ऐसा भाग्य तो भाग्यशाली का होता है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि वृद्धावस्था आते-आते व्यक्ति की कर्मेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रिय कमजोर पड़ जाती है। प्रयोग करने से वे शक्तिशाली रह सकती हैं, पर अगर व्यक्ति जागरूक रहे। जीवन में व्यायाम को अपनाए। जो व्यक्ति वर्तमान में सजग रहते हैं, वो व्यक्ति वृद्धावस्था को रोक सकते हैं। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि हमें समय का सही उपयोग करना है तो हमें धैर्य संपन्न बनना होगा। अधीर न बनें। समय का सदुपयोग करना सीखें तो हम बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं। हम धृति-संपन्न बनें। विपरीत स्थिति में भी हम विकृति में न जाएँ। अपने स्वभाव में रहें। समणी अमलप्रज्ञा जी, समणी जिज्ञासाप्रज्ञा जी ने विदेश यात्रा के अनुभव श्रीचरणों में अभिव्यक्त किए। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।