शक्ति जागरण का शुभ अवसर है नवरात्रि पर्व
मुनि कमल कुमार
जैन धर्म एक अध्यात्मिक धर्म है। यह अहिंसा, संयम और तप पर स्थित है। तीर्थंकरों ने गहन साधना करके केवलज्ञान ही नहीं बल्कि मुक्ति को भी प्राप्त किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को भी इसी का प्रतिरोध दिया। उन्होंने दो प्रकार के धर्म की व्याख्या की आगार और अणगार अर्थात् आगार धर्म की परिपालना करने वाले श्रावक-श्राविका कहलाए और अणगार धर्म की पालना करने वाले साधु-साध्वी कहलाए। गृहस्थावास में रहने वाला पूर्ण अहिंसक नहीं बन सकता, क्योंकि उसे खेती, व्यापार, विवाह-शादियाँ, मकान-दुकान ही नहीं प्रतिदिन भोजन-पानी की आवश्यकता रहती है। ये सब सावद्य काम हैं, इसमें हिंसा का होना स्वभाविक है, परंतु इसमें भी ग्रहस्थ पूरा ध्यान रखता है और अनावश्यक हिंसा से बचने का प्रयास करता है। जो आवश्यक हिंसा होती है उसका भी प्रायश्चित प्रतिक्रमण करके अपने आपको शुद्ध बना लेता है। जैन अपनी प्रत्येक क्रिया में पूरी यातना रखता है। उसके दिल-दिमाग में अहिंसा, संयम और तप की भावना रहती है। इसलिए जैन कहलाने वाले मांस-मछली, अंडे का पूर्ण निषेध करते हैं, क्योंकि इसमें त्रस जीवों की हिंसा होती है। भोजन बनाने, मकान-दुकान, संस्थान बनाने में जो हिंसा होती है वह स्थावर जीवों की हिंसा होती है अर्थात् त्रस हिंसा से पूर्ण बचना भी बड़ी साधना है।
गुरुदेव श्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के हम सदा-सदा आभारी रहेंगे। जिन्होंने ग्रहस्थों के मांगलिक कार्यों में भी जैन संस्कार विधि का निष्पण करके हिंसा से अहिंसा की ओर और असंयम से संयम की ओर कैसे बढ़ा जाए, इसका बोध करवाया। आज सैकड़ों ही नहीं हजारों परिवारों में मांगलिक कार्य जैन संस्कार विधि से संपादित होने लग गए। जिससे अनर्थ हिंसा का मानो विराम सा लग गया।
उन्हीं की देन है कि नवरात्रि के पावन प्रसंग पर 9 दिनों तक विविध मंत्रों का जाप करके व्यक्ति शक्तिवान, ऊर्जावान बन सकता है। पूज्यप्रवर की पावन प्रेरणा से प्रारंभ हुआ क्रम पूर्ण निर्वद्य और आध्यात्मिक है। इसे केवल ग्रहस्थ ही नहीं अनेक साधु-साध्वी भी पूज्यप्रवरों द्वारा प्रदत्त पद्धति के अनुसार विधिवत् मंत्र जाप करके आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करते हैं। जिन लोगों को पद्धति की पूरी जानकारी नहीं है वे आज भी नवरात्रि के समय फूल, धूप, दीप आदि की हिंसा से लिप्त देखे जाते हैं, आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति नवरात्रि के समय इस अध्यात्मिक पद्धति की आराधना करके अपने आपको पूर्ण शक्ति संपन्न बनाए। जिससे वह अपने प्रत्येक कार्य में सफलता को प्राप्त कर सके, सभी मंत्र जयतिथि पत्रक, अमृतकलश, ज्ञानकिरण आदि अनेक पुस्तकों में प्रकाशित हो चुके हैं। स्वयं भी इसका प्रयोग करें औरों को भी प्रेरित करें, जिससे अज्ञान और हिंसा का निवारण हो सके और आप जैन होने का गौरव प्राप्त कर सकें।