राष्ट्रीय ज्ञानशाला प्रशिक्षक सम्मेलनः दीक्षांत समारोह
छापर।
आचार्यश्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा, ज्ञानशाला प्रकोष्ठ द्वारा राष्ट्रीय ज्ञानशाला प्रशिक्षक सम्मेलन/दीक्षांत समारोह-2022 का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ पूज्य गुरुदेव के मंगलपाठ व आशीर्वाद से हुआ। कार्यक्रम में देशभर से लगभग 300 संभागियों की उपस्थिति रही। प्रथम दिवस-प्रथम सत्र में साध्वी शरदयशा जी ने ज्ञानशाला की प्रासंगिकता समझाते हुए बताया कि हर बार कुछ नया सिखाने का प्रयास करें, केवल रटाएँ नहीं, बल्कि समझाने का प्रयास करने का प्रशिक्षण दिया। द्वितीय सत्र में साध्वी समताप्रभा जी ने लक्ष्य के प्रति निष्ठा के विषय में बताया। लक्ष्य प्राप्ति के लिए उपयुक्त श्रम व प्लानिंग की प्रेरणा दी।
दीक्षांत समारोह-पूज्यप्रवर के सान्निध्य में ज्ञानशाला दीक्षांत समारोह आयोजित हुआ। महासभा के महामंत्री विनोद बैद ने महासभा की गतिविधियों का विशेषकर ज्ञानशाला के प्रति कार्य दायित्व की जानकारी दी व उन्होंने ज्ञानशाला के आगे गति-प्रगति में आधुनिकता व नए पाठ्यक्रम पर बल दिया। राष्ट्रीय संयोजक सोहनराज चोपड़ा ने स्वागत किया। इस कार्यक्रम में उपस्थित 142 स्नातकोत्तीर्ण प्रशिक्षकों का एवं 33 चयनित श्रेष्ठ प्रशिक्षक, श्रेष्ठ ज्ञानार्थी, श्रेष्ठ ज्ञानशालाओं व सभाओं व आंचलिक संयोजकों को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संयोजन मुंबई के डॉ0 प्रो0 रत्ना कोठारी ने किया। कार्यक्रम में छापर व मुंबई के कार्यकर्ताओं का भी विशेष सहयोग रहा।
तृतीय सत्र-सायंकालीन सत्र में साध्वी स्वस्तिकप्रभा जी द्वारा ‘संघीय संस्कारों का बीज वपन’ के अंतर्गत बच्चों में आस्था व संयम के संस्कार जगाने की प्रेरणा दी गई। रात्रिकालीन सत्र में परिचय के साथ ज्ञानशाला के राष्ट्रीय संयोजक सोहनराज चोपड़ा द्वारा ज्ञानशाला प्रकोष्ठ की विभिन्न जानकारियाँ दी व बाल संस्कार के इस उपक्रम में प्रशिक्षकों की भूमिका व महत्त्व को बताया। द्वितीय दिवस-प्रथम सत्र में साध्वी आरोग्यश्री जी ने ‘कैसे बढ़े कार्य क्षमता’ इस विषय पर विस्तृत जानकारी दी व प्रशिक्षकों को अपने कार्य क्षेत्र में कार्यक्षमता बढ़ाने के सूत्र दिए।
द्वितीय सत्र में साध्वी समन्वयप्रभा जी ने ‘समय प्रबंधन के महत्त्व’ को बताते हुए ज्ञानशाला के क्षेत्र में प्रशिक्षकों के समय प्रबंधन के सूत्र बताते हुए कहा कि सभी संभागियों को अपने-अपने कार्य के क्षेत्र में अच्छे नियोजन हेतु अपनी एक कार्य नोटबुक बनानी चाहिए एवं महत्त्वपूर्ण कार्यों को प्राथमिकता देते हुए प्राइम टाइम में कार्य को पूर्ण करना चाहिए।
महासभा-ज्ञानशाला प्रकोष्ठ का मंचीय कार्यक्रम
पूज्यप्रवर की सन्निधि में आयोजित इस कार्यक्रम में ज्ञानशाला राष्ट्रीय संयोजक सोहनराज चोपड़ा द्वारा इस त्रिदिवसीय कार्यक्रम की जानकारी दी व ज्ञानशाला के नेटवर्क, विस्तरण व पूज्यप्रवर द्वारा प्रदत्त सूत्र ‘ज्ञानशालाएँ बढ़ें, ज्ञानार्थी बढ़ें’ व उनमें गुणवत्ता का विकास हो पर आगामी योजनाबद्ध रूप से कार्य करने का आह्वान किया। तत्पश्चात थली ज्ञानशाला अंचल की प्रशिक्षिकों द्वारा सुमधुर गीतिका की प्रस्तुति दी गई।
आचार्यप्रवर ने अपने उद्बोधन में फरमाया कि ज्ञानशालाएँ अच्छा कार्य कर रही हैं, उनका एक सुंदर नेटवर्क है व जगह-जगह चल रही ज्ञानशाला के माध्यम से बच्चों को अच्छी तरह तैयार किया जा रहा है व उनमें संस्कार निर्माण का अच्छा काम हो रहा है, ऐसा देखने को मिल रहा है। ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाएँ ज्ञानशाला में सेवा के क्रम में अच्छा कार्य कर रही हैं व बच्चों में संस्कार निर्माण कर रही हैं। आचार्यप्रवर ने उदाहरण देते हुए कहा कि ज्ञानशाला का उपक्रम किसी हॉस्पिटल से कम नहीं है। जिस तरह हॉस्पिटल को सुचारु रूप से चलाने के लिए प्रशिक्षित और अनुभवी डॉक्टर की आवश्यकता रहती है वैसे ही ज्ञानशाला की सभी प्रशिक्षिकाएँ प्रबुद्ध हों, जिससे ज्ञानशाला के बच्चों को सुसंस्कारी बनाया जा सके।
पूज्यप्रवर ने प्रशिक्षकों में उच्चारण शुद्धि के महत्त्व को भी बताते हुए कहा कि प्रशिक्षकों का स्वयं का उच्चारण शुद्ध होगा तो बच्चों को भी शुद्ध उच्चारण से सीखा पाएँगे। इसी क्रम में पूज्य गुरुदेव ने सभी को चौंकाते हुए प्रशिक्षक बहनों की उच्चारण शुद्धि परखने के लिए लोगस्स का पाठ करवाया व उनसे भरे पंडाल में प्रश्न-उत्तर भी किया जिसका प्रशिक्षकों ने संतोषप्रद उत्तर भी दिया। इस प्रकार परमश्रद्धेय आचार्यप्रवर ने ज्ञानशाला के इस कार्यक्रम में अतिरिक्त समय सन्निधि देते हुए महती कृपा करवाई।
दोपहर को साध्वीप्रमुखाश्री प्रवास स्थल पर उपस्थित ज्ञानशाला परिवार को सेवा कराते हुए साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आज के समय में ज्यादा युवती प्रशिक्षिकाएँ प्रशिक्षण का कार्य कर रही हैं यह खुशी की बात है। वर्तमान समय में बच्चों को नई तकनीक के साथ पढ़ाया जाए। प्रशिक्षिकाएँ पढ़ाने से पहले स्वयं अध्ययन करें व उद्बोधन देते हुए कहा कि जब प्रशिक्षक को बच्चों को एक पेज पढ़ाना होता है तब उससे पहले स्वयं को गहन अध्ययन करके इसकी तैयारी करनी होती है, क्योंकि आज के समय में बच्चे तार्किक होते हैं। प्रशिक्षिकाएँ रोज की सामायिक के अलावा एक सामायिक अतिरिक्त करें, जिसमें केवल और केवल स्वाध्याय ही करें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि बच्चे पढ़ने और सुनने की बजाय देखकर ज्ञान का आचरण जल्दी करते हैं, इसलिए सभी प्रशिक्षिकाओं का जीवन संस्कारों के आचरण से भरा हुआ होना चाहिए। बच्चों को पढ़ाते समय मनोवैज्ञानिक तरीके से पढ़ाते हुए सकारात्मक ऊर्जा का स्त्रोत बहाना चाहिए। आपकी वाणी मधुर व स्पष्ट होनी चाहिए।
तृतीय सत्र-समापन सत्र में सोहनराज चोपड़ा, सुरेंद्र लुणिया, जितेंद्र छाजेड़, प्रोफेसर डॉ0 रत्ना कोठारी, सरोज छाजेड़ सभी ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी एवं आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में थली अंचल की आंचलिक संयोजिका कांता चिंडालिया व उनके आह्वान पर थली क्षेत्र के कार्यकर्ता व छापर के कार्यकर्ता चमन दुधोड़िया, ज्योति दुधोड़िया एवं उनकी कार्यकर्ता टीम ने अथक श्रम किया।
इस कार्यक्रम में महासभा के संपूर्ण सहयोग व छापर चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति द्वारा प्रदत्त आवास व्यवस्था, भोजन व्यवस्था के साथ सभी व्यवस्थाओं में पूर्ण सहयोग मिला व छापर प्रवास व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों विशेषकर नरेंद्र नाहटा का विशेष सहयोग रहा।