शक्ति की आराधना के साथ हो तप-संयम की साधना: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शक्ति की आराधना के साथ हो तप-संयम की साधना: आचार्यश्री महाश्रमण

नवाह्निक जप अनुष्ठान का शुभारंभ

अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का शुभारंभ

ताल छापर, 26 सितंबर, 2022
शक्ति संपन्न महापुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने नवरात्रा के प्रथम दिन नवाह्निक जप अनुष्ठान ओज वाणी से शुरू किया। आध्यात्मिक अनुष्ठान का अपना महत्त्व है। इससे आत्मा की शुद्धि व ऊर्जा का विकास होता है। अध्यात्म के उत्तम पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि केवली अंतकर और अंतिम शरीरी को जानता-देखता है? उत्तर दिया गयाµहाँ जानता-देखता है।
केवल ज्ञानी मनुष्य अनंत शक्ति संपन्न होता है। अनंत ज्ञान-अनंत दर्शन संपन्न होता है। क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायिक आनंद संपन्न होता है। आज नवरात्र का प्रारंभ हुआ है। आध्यात्मिक नवाह्निक अनुष्ठान का उसी उपलक्ष्य में प्रारंभ हुआ है। नवरात्र में दिन-रात भी काफी समान होते हैं। समशीतोष्ण काल का समय है। कितने-कितने लोग अपने-अपने ढंग से नवरात्रा मनाते हैं। एक शक्ति की आराधना की जा सकती है। हम भी आर्षवाणी के साथ जप करते हैं। तप भी जोड़ा जा सकता है। संयम की साधना हो। शक्तियाँ अनेक प्रकार की हो सकती हैं। ज्ञान बल, श्रद्धा बल, संयम बल हो सकता है। तपस्या भी एक बल है। शरीर बल भी है। वचन बल, मनोबल महत्त्वपूर्ण है। आत्मबल सबसे बड़ा बल है।
केवली के पास आत्मबल सर्वोत्कृष्ट होता है। शक्ति में तो आदर्श पुरुष केवली सबसे बड़े होते हैं। शक्तिशाली बनने से पहले यह इच्छा हो कि मैं शक्ति का दुरुपयोग नहीं करूँगा। दुनिया में शक्ति का महत्त्व है। कमजोर दयनीय रह जाता है। दुर्जन आदमी अपनी शक्ति का उपयोग पर-पीड़न देने में कर लेता है। शक्तिशाली बनने के लिए यह ध्येय रहे कि पर-पीड़ा नहीं पहुँचाऊँगा। अंतकर यानी आठों कर्मों का शेष करने वाला है। अंतिम शरीरी यानी उसका शरीर अंतिम है, वापस दूसरा शरीर धारण नहीं करना पड़ेगा। वर्तमान में जो गृहस्थ हैं, केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में जाने वाला है, अंतिम शरीरी है, पर वर्तमान में वह अंतकर नहीं है। अंतकर बाद में होगा।
अंतिम शरीरी तो जन्म के साथ भी हो सकता है? अंतकर वह मृत्यु के समय हो सकेगा। संभवतः यह अंतर किया जा सकता है। दूसरा प्रश्न है कि केवलज्ञानी अंतकर व अंतिम शरीरी को जानता है, ऐसे छद्मस्थ व्यक्ति भी जानता-देखता है क्या? छद्मस्थ सामान्यतया जानता-देखता नहीं है। जानेगा-देखेगा तो वह सुनकर या प्रमाण के आधार पर जान-देख सकता है। कोई केवलज्ञानी से सुन ले या केवली के जो श्रोता-श्रावक हैं, उनको जान ले। केवली चरम कर्म या अंतिम निर्जरा को जान लेता है। छद्मस्थ प्रत्यक्ष नहीं जानता-देखता है।
गृहस्थ तत्त्व की गहरी बातों को न जान सके तो अणुव्रत को जान ले। आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का भी शुभारंभ हो रहा है। गुरुदेव तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन को चलाया। गृहस्थ के छोटे-छोटे नियम जीवन में उतार लें तो आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकता है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत स्कूली छात्रों द्वारा अणुव्रत गीतों की प्रस्तुति हुई। मौलाना इसलियात खान-इमाम बड़ी मस्जिद छापर ने सांप्रदायिक सौहार्द दिवस पर अपने विचार अभिव्यक्त किए।
सौहार्द दिवस पर पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आदमी के भीतर सद्वृत्ति या दुर्वृत्तियाँ भी होती हैं, हो सकती हैं। आदमी की दुर्वृत्तियाँ जो भीतर में हैं, वो कमजोर पड़ें। जो सद्वृत्तियाँ हैं, वो सशक्त बनें। दुर्वृत्तियाँ दिमाग में युद्ध शुरू करवा देती हैं। प्राणी मात्र के प्रति सौहार्द-मैत्री भाव रखें। इंसान इंसान के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार करे। इंसान पहले इंसान, फिर हिंदू या मुसलमान। इंसानियत रखंे। भारत में भिन्नताएँ भी अनेक हैं। अनेक जातियाँ, भाषाएँ, संप्रदाय और वेशभूषाएँ हैं। अनेकता में एकता रहे। एक संप्रदाय दूसरे संप्रदाय के कार्य में बाधा पैदा न करें। हो सके तो आध्यात्मिक-धार्मिक सहयोग करें। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह संप्रदायों में सौहार्द पैदा करने वाला हो सकता है। आपस में मिलना भी मैत्री को पुष्ट बनाने वाला बन सकता है। अहिंसा धर्म परम धर्म है, इसे हर संप्रदाय मानता है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।