
संवत्सरी महापर्व महाकुंभ का आध्यात्मिक अनुष्ठान है
रोहिणी, दिल्ली।
साध्वी डॉ0 कुंदनरेखा जी के सान्निध्य में पर्युषण महापर्व की मंगल आराधना का अष्टाह्निक महापर्व के अंतर्गत संवत्सरी महापर्व मनाया गया। इस अवसर पर साध्वी कुंदनरेखा जी ने कहा कि इस महापर्व का अर्थ हैµआत्मा की सुरक्षा हेतु सतत् अप्रमत्त बने। इंद्रिय और मन की चंचलता को रोके बिना आत्मोत्थान संभव नहीं। विभिन्न उपक्रमों के द्वारा हमारा किया गया प्रयास सफल व सार्थक बने।
इस अवसर पर साध्वीश्री ने भगवान महावीर का जन्म बाल्यावस्था दीक्षा के बाद साधना काल में आने वाले कष्टों का वर्णन किया। केवल ज्ञान के पश्चात चंदनबाला के व्याख्यान ने श्रोताओं को भावुक बना दिया। साध्वी सौभाग्ययशा जी ने कहा कि एक वर्ष में आने वाला यह महापर्व भारतीय अन्य पर्वों से हटकर है। इसमें आमोद-प्रमोद अंतः चेतना की गहराई में उतरकर ही किए जा सकते हैं। यह महापर्व संयम, त्याग, समता का प्रेरक है। साध्वी सौभाग्ययशा जी ने भगवान ऋषभ के जीवन को सरल भाषा में प्रस्तुत किया एवं जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों को रोचक शैली में प्रस्तुत कर सबको विमुग्ध कर दिया। आचार्य सुधर्मा, जम्बू, प्रभव, शय्यंभव के जीवन-दर्शन पर विशेष प्रकाश डाला।
साध्वी कल्याणयशा जी ने भगवान मल्लिनाथ, अरिष्टेनेमि एवं भगवान पार्श्व के जीवन पर प्रकाश डाला एवं विस्तृत रूप से उनके स्वरूप को प्रस्तुत कर तीर्थंकर परंपरा को नमन किया। इसके पश्चात निन्हव परंपरा पर अपनी सरस शैली से प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का प्रारंभ साध्वी कल्याणयशा जी ने किया और गीतों के द्वारा सबको विमुग्ध कर दिया। साध्वी कर्तव्ययशा जी ने आगम सूक्तों का विशेष वर्णन किया। भगवान महावीर की वाणी जो कल्याण करती है उसे सुनकर श्रोतागण अभिभूत हो गए। इन्होंने ग्यारह गणधरों के विषय में अपनी सुंदर शैली में प्रस्तुति दी। साध्वी कुंदनरेखा जी ने अंत में तेरापंथ के ग्यारहवें आचार्यों, साध्वीप्रमुखाओं का विस्तार से वर्णन किया।