तेरापंथ समाज की उपयोगी एवं आश्रायदायिनी संस्था है जैन विश्व भारती: आचार्यश्राी महाश्रामण

गुरुवाणी/ केन्द्र

तेरापंथ समाज की उपयोगी एवं आश्रायदायिनी संस्था है जैन विश्व भारती: आचार्यश्राी महाश्रामण

जैन विश्व भारती के 51वें वार्षिक अधिवेशन का शुभारंभ

ताल छापर, 29 सितंबर, 2022
जैन विश्व भारती के 51वें वार्षिक अधिवेशन में पावन पाथेय प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि आज जैन विश्व भारती का अधिवेशन होने वाला है। जैविभा तेरापंथ समाज की एक महत्त्वपूर्ण उपयोगी एवं आश्रयदायिनी संस्था है। गुरुदेव तुलसी के शासनकाल में इसका जन्म हुआ था। इसे कामधेनू व जय कुंजर भी कहा गया है।
जैविभा में समण श्रेणी का मुख्यालय है। समण श्रेणी का विकास हो, योग्यता का विकास हो। इससे जुड़ी हुई पारमार्थिक शिक्षण संस्था भी है। पारमार्थिक शिक्षण संस्था का भी अधिवेशन हो। मर्यादा महोत्सव के पूर्व दिनों में किया जा सकता है। मुमुक्षुओं का भी विशेष विकास हो। तत्त्वज्ञान का विशेष विकास हो। समणियों के मूल में मुमुक्षु बहनें हैं। समणियाँ भी ट्रेंड हों। नवदीक्षित साधु-साध्वी या समणी कुछ समय केंद्र में रहें तो अच्छा शिक्षण प्रदान किया जा सकता है।
आचार्यश्री ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत पर्यावरण विशुद्धि दिवस के अवसर पर प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि पर्यावरण की शुद्धि आवश्यक है। हमारे आसपास पानी, मिट्टी, वनस्पति, आकाश, वायु है। इस धरती पर तीन रत्न बताए गए हैंµजल, अन्न और सुभाषित (अच्छी वाणी)। पानी न हो तो जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। आदमी बिना घर और कपड़े के रह सकता है, लेकिन बिना भोजन के वह कैसे रह सकता है? इसलिए अन्न भी एक रत्न है। अच्छी वाणी अर्थात् सुभाषित को भी एक रत्न कहा गया है। आदमी अपने जीवन में जल का अपव्यय न करे। वृक्षों को अनावश्यक नहीं काटना चाहिए। विद्युत का अनावश्यक उपयोग न हो। अहिंसा और संयम की दृष्टि से भी इन रत्नों के संरक्षण का प्रयास होना चाहिए। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने उपस्थित विद्यार्थियों को विशेष परिस्थिति के सिवाय वृक्षों का उन्मूलन न करने, आजीवन आत्महत्या नहीं करने और द्वेषवश किसी की हत्या नहीं करने का भी संकल्प भी कराया।
मुख्य प्रवचन में आचार्यप्रवर ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जो केवलज्ञानी होते हैं, वे अतीन्द्रिय ज्ञान-केवलज्ञान संपन्न होते हैं। जो भावेन्द्रिय हैं, वो क्षायोपशमिक भावजन्य होती है। क्योंकि केवली तो क्षायिक भाव संपन्न हो गए हैं, क्षयोपशम भाव से ऊपर उठ गए हैं। इसलिए कुछ जानने-देखने के लिए उनको इंद्रियों का उपयोग करने की अपेक्षा ही नहीं रहती। केवली को द्रव्योन्द्रियों की अपेक्षा सइंद्रिय कहा जा सकता है। द्रवेंद्रियाँ जो पौद्गलिक हैं, उस अपेक्षा से वे पंचेन्द्रिय होते हैं। भावेन्द्रियों की अपेक्षा से तो वे अनिन्द्रिय हो जाते हैं। केवली मित और अमित दोनों को जानता है। सब कालों-भावों को वो जानते हैं। छद्मस्थ आदमी इंद्रियों का उपयोग करता है। हम इंद्रियों के उपयोग में सावधानी रखें। हमारे पाँच ज्ञानेंद्रियाँ और पाँच कर्मेंद्रियाँ होती हैं। हम इंद्रियों का सदुपयोग करें। गांधीजी के तीन बंदरµबुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो। चौथी बात है कि बुरा सोचें भी नहीं। हम इंद्रियों का संयम रखें। विद्यार्थियों को भी इंद्रियों का अच्छा उपयोग करना चाहिए। विद्यार्थी का सिर्फ अंक प्राप्त करने का लक्ष्य न हो। ज्ञान अच्छा बढ़े।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि वि0सं0 2005 का छापर का चातुर्मास पूज्य गुरुदेव तुलसी के लिए उपलब्धि भरा चातुर्मास था। वर्तमान में भी छापर चातुर्मास में भी आचार्यप्रवर अनेक कार्य कर रहे हैं। गुरुदेव तुलसी ने समण श्रेणी को जैविभा की अनेक गतिविधियों से जोड़ा था। समणी जी ने भी विदेशों में अपनी साख बनाई है। समण श्रेणी विकास का माध्यम है। मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने कहा कि साधक गुरु प्रसाद की ओर अभिमुख रहे। जैन विश्व भारती कामधेनू है। समण श्रेणी समय की माँग है, यह सब गुरु का ही प्रसाद है। जैविभा में ध्यान साधना अच्छी हो सकती है। जैविभा में अनेक आयाम चलते हैं।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि गुरु दूरदृष्टा होते हैं। तेरापंथ धर्मसंघ में एक से बढ़कर एक दूरदृष्टा होते हैं। आचार्य के चिंतन में रहस्य छिपे होते हैं, वे वर्तमान के साथ भविष्य भी देखते हैं। हम वर्तमान आचार्य की शासना में विकास कर रहे हैं। जैन विश्व भारती के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कीर्ति कुमार जी ने अपने भाव अभिव्यक्त किए। समणी निर्देशिका समणी अमलप्रज्ञा जी, समणीवृंद द्वारा समूह गीत की भी प्रस्तुति हुई। जैविभा के अध्यक्ष मनोज लुणिया ने पूज्यप्रवर को प्रतिवेदन प्रस्तुत किया एवं अपनी भावना अभिव्यक्त की। अणुव्रत समिति, छापर के अध्यक्ष प्रदीप सुराणा एवं माला कातरेला ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।