जीवन के कल्याण के लिए अणुव्रत के नियम स्वीकार करें: आचार्यश्राी महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन के कल्याण के लिए अणुव्रत के नियम स्वीकार करें: आचार्यश्राी महाश्रमण

ताल छापर, 28 सितंबर, 2022
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत तीसरे दिन आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अणुव्रत प्रेरणा दिवस का समायोजन हुआ। इस संदर्भ में अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने उपस्थित जनता को मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन का शुभारंभ किया। साधु का जीवन तो पंच महाव्रतों से भावित होता है, किंतु आम आदमी तो महाव्रती नहीं बन सकता है, इसलिए वह अपने जीवन के कल्याण के लिए अणुव्रतों का स्वीकरण करे।
अणुव्रतों के छोटे-छोटे नियमों को स्वीकार करे तो वह अपने वर्तमान जीवन के कल्याण के साथ आगे के जीवन को भी अच्छा बना सकता है। अणुव्रत के नियमों को स्वीकार करने के लिए किसी का जैनी बनना आवश्यक नहीं है और यहाँ तक कि आस्तिक होना भी अपेक्षित नहीं है। जैसे किसी निरपराध की हत्या नहीं करना, प्रमाणिक बनना, अनैतिकता का त्याग कर नैतिक बनना आदि-आदि अनेक छोटे-छोटे नियमों का स्वीकरण कर आदमी अपने वर्तमान जीवन के साथ-साथ अपने परलोक भी अच्छा बना सकता है। इन नियमों को जीवन में जितना संयम आता है, जीवन भी अच्छा बनता चला जा सकता है। मुख्य प्रवचन में महामनीषी ने आगम आधारित प्रवचन में फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि भंते! क्या अनुत्तरोपपातिक देव अपने विमान में रहते हुए मनुष्य लोक में स्थित केवली के साथ आलाप अथवा संलाप करने में समर्थ है? उत्तर दिया गया हाँ समर्थ है। चार प्रकार के देव निकाय होते हैं। भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक।
वैमानिक में बहुत सबसे उच्च कोटि के देव अनुत्तरोपपातिक देव होते हैं। वे बहुत ज्यादा दूर हैं। वे तीर्थंकर या केवली के पास यों आते नहीं हैं। उनके में कोई जिज्ञासा हो तो वे वहाँ बैठे ही केवलज्ञानी से सीधा संपर्क कर अपना प्रश्न का उत्तर पूछते हैं। केवलज्ञानी उनके मनोभावों को जानकर प्रश्न का उत्तर दे देते हैं। दूर से ही मनुष्य के भी उपयोग लगा रहता है, तो ग्रहण कर सकता है। चित्त की एकाग्रता एक विशेष चीज होती है। अनुपयुक्त और उपयुक्त यह एक दिशा-निर्देशक तत्त्व बन सकता है। प्रेक्षाध्यान पद्धति में एक शब्द हैµभाव क्रिया। यह इस भगवती सूत्र उपयुक्तता से जुड़ी है। भावक्रिया से इर्या समिति अच्छी हो सकती है। श्रावक के भी सामायिक में उपयुक्तता रहे। सामायिक में निर्वद्य योग रहे। हमारी धार्मिकता में उपयुक्तता-दत्तचित्तता अच्छी रहे तो उसका अच्छा फल प्राप्त हो सकता है।
पूज्यप्रवर ने आध्यात्मिक अनुष्ठान का प्रयोग कराया। आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत जीवन-विज्ञान दिवस है। अणुव्रत अनुशास्ता पूज्यप्रवर ने फरमाया कि हर प्राणी जीवन जी रहा है। जीवन जीना सामान्य बात है। जीवन का विज्ञान अगर किसी के पास है, वो एक विशेष बात हो जाती है। गृहस्थ के जीवन में अर्थ काम तो है, पर धर्म व मोक्ष की साधना है कि नहीं। अधर्म युक्त जीवन तो लौहार की धोंकणी की तरह है।
जीवन का विज्ञान यानी विशेष ज्ञान हो। जीवन में अहिंसा का प्रयोग करें। अध्यात्म के प्रयोग, महाप्राण ध्वनि, श्वास प्रेक्षा के प्रयोग जीवन में हों। विद्यार्थियों के लिए ये लिए ये विशेष उपयोगी हो सकता है। उनके जीवन में जीने की कला आ जाए। विद्यार्थी में अच्छे संस्कार आएँ। शारीरिक विकास, बौद्धिक विकास के साथ मानसिक और भावनात्मक विकास भी हो। इस संदर्भ में महाप्राण ध्वनि का प्रयोग बताया गया है। आचार्यप्रवर ने उपस्थित श्रद्धालुओं को महाप्राण ध्वनि का प्रयोग भर कराया।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि दोहरे लक्ष्य की संपूर्ति एक साथ कैसे हो सकती है। लक्ष्य तक पहुँचने के लिए व्यक्ति लक्ष्य के विपरीत जाने वाले मार्गों को छोड़कर एक ही मार्ग पर चलने का प्रयास करे तो सफलता मिल सकती है। लक्ष्य के साथ निर्धारित करें कि शांति की राह पर चलना है या अलग राह पकड़नी है। मुनि वर्धमान कुमार जी आज जीवन-विज्ञान सप्ताह पर प्रातः मरुधर स्कूल गए, वहाँ के कार्यक्रमों की जानकारी श्रीचरणों में अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।