भिक्षु चरमोत्सव के विविध आयोजन

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भिक्षु चरमोत्सव के विविध आयोजन

साहूकारपेट
तेरापंथ भवन में आयोजित आचार्य भिक्षु चरमोत्सव पर साध्वी डॉ0 मंगलप्रज्ञा जी ने कहा कि गतिशीलता का नाम है-आचार्य भिक्षु। उपनिषद् साहित्य का ‘चरैवेति-चरैवेति’ सूत्र उनके जीवन का लक्ष्य रहा। चरैवेति संकल्प के कारण तेरापंथ तीर्थ बन गया। अनेक कष्टों, विघ्नों को हरण करने वाले महामना भिक्षु आजीवन श्रमशील बनकर साधना करते रहे। साध्वीश्री जी ने भगवान महावीर के जीवन-दर्शन, साधना के साथ आचार्य भिक्षु के जीवन-दर्शन के तुलनात्मक अनेक ऐतिहासिक प्रसंग सुनाए। उन्होंने कहा कि आचार्य भिक्षु कृतज्ञता के विशिष्ट उदाहरण बने। आज आवश्यकता है, कृतज्ञता का यह महान सूत्र घर, परिवार और समाज के सदस्यों में संक्रांत हो। आचार्य भिक्षु ने अपने अंतिम समय तक शिष्य संपदा को शिक्षण, प्रशिक्षण, प्रोत्साहन और बहुमान दिया। उनके द्वारा प्रदत्त सम्मान और विनयभाव की परंपरा हमारे जीवन को सरसब्ज बनाने वाली है।
साध्वी डॉ0 शौर्यप्रभा जी ने भिक्षु-स्तवन प्रस्तुत किया। साध्वी सिद्धियशा जी ने काव्य शैली में आचार्य भिक्षु की अभिवंदना की। तेयुप अध्यक्ष विकास कोठारी एवं भिक्षु स्मृति साधना के संयोजक हरीश भंडारी ने मंच संचालन किया। तेयुप द्वारा प्रायोजक रांका परिवार का सम्मान किया गया।