अभय से अहिंसा और अहिंसा से अभय पुष्ट होता है: आचार्यश्राी महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अभय से अहिंसा और अहिंसा से अभय पुष्ट होता है: आचार्यश्राी महाश्रमण

आत्मरक्षा का मार्ग प्रशस्त करने वाले आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र आगम की व्याख्या करते हुए फरमाया कि बताया गया है कि एवम्भूत एक नय का प्रकार भी है। जब कोई भिक्षा में लगा हुआ हो तो वह भिक्षु है। बाकी समय स्वाध्याय नहीं करे तो वह भिक्षु नहीं। शिक्षक जिस समय पढ़ा रहा है, तब तो शिक्षक है, बाकी समय में वह शिक्षक नहीं है। जब उस प्रवृत्ति में कोई लगा हुआ हो तो वह शब्द उपयोग करना है।
यहाँ एवम्भूत शब्द वेदना के संदर्भ में है। दो प्रकार की वेदना होती हैµएवम्भूत वेदना और अनेवमभूत वेदना। प्राण, भूत, जीव और सत्व ये चार शब्द एकार्यक भी हो सकते हैं, पर चारों में अंतर भी किया गया है। चारों की स्थिति अलग-अलग है। दो, तीन, चार इंद्रिय वाले प्राणी प्राण कहलाते हैं। वनस्पतिकाय भूत, पंचेंद्रिय प्राणी जीव एवं पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजसकाय और वायुकायµये चारों सत्व कहलाते हैं। ये चारों प्राणी के द्योतक भी बन सकते हैं।
एवम्भूत वेदना का अर्थ है कि जिस प्रकार से कर्मों का बंध हुआ है, उसी के अनुसार बाद में फल भोगना। यह अन्य युथिकों का सिद्धांत है। पर यह सिद्धांत भगवान महावीर की वाणी के अनुसार यह बात जो कहते हैं, वे मिथ्या संभाषण करते हैं। इन चार प्रकारों में कुछ तो एवम्भूत वेदना का वेदन करते हैं, कुछ अनेवमभूत वेदना का वेदन करते हैं। बंधन में परिवर्तन भी हो सकता है। कर्मवाद के अनुसार कर्मों का वेदन दोनों प्रकार से हो सकता है। कर्म का संक्रमण भी हो सकता है। कर्म की दस अवस्थाएँ बताई गई हैं।
वैसे कर्मवाद का मूल सिद्धांत यही हैµजैसी करनी, वैसी भरनी, सुख-दुःख वैसा मिलेगा। सभी दर्शनों में कहीं-कहीं समानताएँ हैं, तो कहीं उनमें असमानताएँ भी मिलती हैं। संग्रहनय की दृष्टि से चलें तो अभेद और व्यवहारनय में चलें तो भेद। भेद-अभेद को जानना अच्छा हो सकता है। शास्त्रों से अनेक जानकारियाँ मिल सकती हैं। ज्ञान अच्छा हो, प्रस्तुति अच्छी हो और प्रश्न का उत्तर उचित रूप से दे सकें, वैसा विकास हो। कर्मवाद में क्षयोपशम अच्छा हो।
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का अंतिम सातवाँ दिनµअहिंसा दिवस जो महात्मा गांधी से भी जुड़ा है। परमपावन ने फरमाया कि अहिंसा एक शक्ति है कि आदमी को अभय बना सकती हैं। अभय से अहिंसा और अहिंसा से अभय पुष्ट होता है। अहिंसा तो माता है, सबका कल्याण करने वाली है। ‘जय हे, जय हे जीवन दाता’ गीत का सुमधुर संगान किया। हम जीवन में अहिंसा को आत्मसात रखें। अणुव्रत का कार्य आगे से आगे बढ़ता रहे।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि पूज्यप्रवर नवरात्रा में शक्ति की आराधना करवा रहे हैं। आत्मा में अनंत शक्ति है। जीवन की दो अवस्थाएँ हैंµसुप्त और जागृत। हमें अपनी शक्तियों का जागरण करना है। शक्ति जागरण का स्रोत हैµअभय की साधना। ममत्व का बंधन बहुत बड़ा भय है, वह हमें कमजोर बनाता है। अभय की साधना के लिए हमारा संकल्प बल मजबूत हो। साथ में अनुप्रेक्षा, ध्यान साधना, मंत्र का जप भी हो।
अणुव्रत के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि मनन कुमार जी ने अणुव्रत की प्रगति के विषय में अपनी अभिव्यक्ति दी।
अणुव्रत समिति छापर से प्रदीप सुराणा, व्यवस्था समिति के अध्यक्ष माणकचंद नाहटा, अणुविभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अविनाश नाहर ने अपने विचार प्रस्तुत किए। स्कूली बच्चों ने गांधीजी के जीवन पर झाँकी प्रस्तुत की। अणुव्रत समिति द्वारा 3000 नशामुक्ति संकल्प-पत्र पूज्यप्रवर को समर्पित किए।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।