
दूसरों पर झूठे आरोप लगाने से बचने का करें प्रयासः आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 5 अक्टूबर, 2022
आगमवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र की विवेचना करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में एक प्रश्न किया गया कि भंते! जो पुरुष मिथ्या, असद्भूत, अभ्याख्यान, दोषारोपण के द्वारा किसी दूसरे को आरोपित करता है, उसके किस प्रकार के कर्मों का बंध होता है? जीवन में आदमी कभी झूठ बोलकर दूसरे पर मिथ्या अभियोग लगाने का प्रयास भी कर लेता है। अट्ठारह पापों में यह एक पाप है-अभ्याख्यान। कई बार आदमी ऐसा आरोप लगा देता है कि दूसरे को फँसना पड़े। गृहस्थों के संपत्ति आदि होती है, उसके लिए कितने लोग न्यायालय में जाते होंगे। परिवार की बात परिवार में ही समाहित हो जाए तो अच्छी बात है। न्याय, न्याय के तरीके से पाएँ। झूठा आरोप न लगाएँ। न्याय का रास्ता ईमानदारी का है।
जो पुरुष मिथ्या, असद् अभ्याख्यान के द्वारा दूसरों को आरोपित करता है, उसके उसी प्रकार के कर्मों का बंध करता है। वह जहाँ उत्पन्न होता है, वहाँ उसी प्रकार के कर्मों का प्रतिसंवेदन कर वेदन कर निर्जरण करता है। अगर प्रायश्चित कर लें तो पाप शुद्ध हो सकते हैं। आत्मा निर्मल बन सकती है। यह एक घटना से समझाया। साधु पर तो झूठा आरोप लगाएँ ही नहीं। पाप कर्म किया है, तो फल तो भोगना ही पड़ेगा। कर्म के दरबार में छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं है। कंकड़ आकाश में फैंका है तो वह तो नीचे आएगा ही। सीताजी पर भी झूठा आरोप लगाया गया था। साधु हो या गृहस्थ, यह संकल्प रहे कि जिंदगी में किसी पर भी झूठा आरोप नहीं लगाना। इससे राग-द्वेष बढ़ सकता है।
आज विजयादशमी दशहरा है। रावण का जैसे रामायण में वर्णन है, तो रावण का वर्चस्व-पुण्य भी था। जैसे सूर्य उदय होता है, तो न रात्रि रहती है, न रात्रिपति चाँद ग्रहगण दिखते हैं। एक समय में रावण चरित्रवत्ता पुरुष था। जैन रामायण के हिसाब से लक्ष्मणजी ने रावण को मारा था। सुदर्शन चक्र का लक्ष्मणजी ने उपयोग कर रावण के सिर को धड़ से अलग कर दिया था। वासुदेव प्रतिवासुदेव को मारकर सत्ता में आते हैं। राम ने भी रावण की प्रशंसा की थी। हम तो अध्यात्म को मानने वाले हैं। दस लाख योद्धाओं को जीतने वाला आदमी इतना बड़ा विजयी नहीं है, जो अपनी आत्मा को जीत ले वो परम विजयी होता है। हम आत्मविजय की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें। साध्वी गुरुयशा जी को आज साठ वर्ष पूरे हो रहे हैं। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आगम के अनुसार साठ वर्ष का जाति स्थविर हो जाता है। अपनी शक्ति का उपयोग करती रहो। जितनी सेवा-स्वाध्याय हो सके करती रहो। चित्त समाधि रहे।
साध्वी गुरुयशा जी ने अपनी भावना श्रीचरणों में अर्पित की। आचार्यप्रवर की सन्निधि में साध्वी अणिमाश्री जी , साध्वी मंगलप्रज्ञा जी और साध्वी सुधाप्रभा जी के न्यातिलों ने (महादानी शुभकरण चौरड़िया) परिवार के 25 सदस्यों ने एक साथ पचरंगी तपस्या का प्रत्याख्यान किया एवं आशीर्वाद प्राप्त किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।