हमारे भीतर ज्ञाान की लौ जलती रहे: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

हमारे भीतर ज्ञाान की लौ जलती रहे: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 11 अक्टूबर, 2022
तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल आगम वाणी का रसास्वाद कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि भंते! दिन में उद्योत और रात्रि में अंधकार है, यह बात ठीक है? गौतम! हाँ ऐसा है। प्रश्न किया गया कि ये किस अपेक्षा से? उत्तर दिया गया कि दिन में शुभ पुद्गल होते हैं। पुद्गलों का परिणमन शुभ होता है। रात्रि में अशुभ पुद्गल होते हैं और पुद्गलों का परिणमन अशुभ होता है। उद्योत और अंधकार ये दोनों पुद्गल के परिणमन हैं। दिन में सूर्य रश्मियों के संपर्क से पुद्गलों का परिणमन शुभ होता है। इसलिए दिन में उद्योत होता है। रात्रि में सूर्य रश्मि तथा प्रकाशक वस्तुओं के अभाव में पुद्गलों का परिणमन अशुभ हो जाता है। ये सारी बातें हमारे संदर्भ में हो गई।
नरक में नैरियक होता है, उनमें उद्योत होता है या अंधकार होता है? उत्तर दिया गया नरक में अंधकार होता है। क्योंकि नरक में पुद्गलों का अशुभ परिणमन होने का कारण निरंतर अंधकार बना रहता है। क्योंकि वहाँ शुभ परिणमन के हेतु भूत सूर्य आदि प्रकाशक चीजों का अभाव है। नरक में सौरमंडल सूर्य चंद्रमा आदि नहीं होता। देवलोक में भी सौरमंडल तो नहीं होता है, किंतु वहाँ रत्नों का प्रभा मंडल है, उससे वहाँ निरंतर प्रभास्वरता बनी रहती है। इस कारण शुभ पुद्गल होने से वहाँ निरंतर उद्योत बना रहता है।
नरक और देवलोक में दिन-रात का विभाग नहीं होता। एकेंद्रिय, द्विन्द्रिय और त्रिन्द्रिय प्राणियों के निरंतर अंधकार बना रहता है, कारण इनेे चक्षु होती नहीं है। चतुरिन्द्रिय व तिर्यंच और मनुष्य पंचेन्द्रिय के चक्षुरिन्द्रिय का विकास होता है। वे सूर्य के संपर्क में आते हैं, इसलिए उनमें उद्योत भी होता है। रात्रि का भी अनुभव करते हैं, इसलिए अंधकार भी होता है। हमारी सृष्टि में उद्योत और अंधकार दोनों होते हैं। भारत में भी कहीं उद्योत है, कहीं अंधकार है, ये सूर्य सापेक्ष स्थिति होने से हो सकती है। जहाँ सूर्य है, उद्योत है, वहाँ अंधकार को टिकने का मौका नहीं मिलता है। दीपावली का समय आ रहा है। दीपावली ज्योति पर्व और उल्लास का पर्व होता है। ये बाहर का प्रकाश है।
हमारे भीतर ज्ञान का ऐसा प्रकाश हो जाए कि अज्ञान का अंधकार न रहे। मैं अज्ञान को छोड़ता हूँ, ज्ञान को स्वीकार करता हूँ। हमारे भीतर ज्ञान की लौ जलती रहे। ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम है, साथ में अध्ययन है और भीतर से जाग जाए तो ज्ञान का प्रकाश रह सकता है। जहाँ सूर्य है, वहाँ अंधकार टिक नहीं सकता, यह एक दृष्टांत से समझाया।
साहित्य ज्ञान विकास का साधन है। कितना साहित्य भारत के पास है। गुरुदेव तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने कितने साहित्य का संपादन, सृजन किया था। हमारा ज्ञान का उद्योत बढ़ता है, यह काम्य है। है, यह काम्य है। पूज्यप्रवर ने कालू यशोविलास का विस्तृत विवेचन किया। तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। पूज्यप्रवर ने मुलुंडवासियों को आशीर्वचन फरमाया। मुलुंड में अच्छा काम होता रहे। समणी विनीतप्रज्ञा जी एवं समणी जगतप्रज्ञा जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। अमृतवाणी के नवमनोनीत अध्यक्ष रूपचंद दुगड़ ने अपनी भावना श्रीचरणों में अभिव्यक्त की। उन्होंने अपनी टीम की घोषणा की। पूज्यप्रवर ने अमृतवाणी की टीम को भी आशीर्वचन फरमाया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि सर्वज्ञों की वाणी पर हमारा अटूट विश्वास होना चाहिए। उसी से हमारा कल्याण हो सकता है।