प्रेक्षाध्यान कार्यशाला का आयोजन
कटक, ओड़िशा।
मुनि जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में प्रेक्षाध्यान कार्यशाला का आयोजन तेममं द्वारा तेरापंथ भवन में किया गया। कार्यशाला में लगभग 50 साधकों ने भाग लिया। कार्यशाला में मुनि जिनेश कुमार जी ने कहा कि दुनिया में उसने बड़ी बात कर ली, खुद अपने से जिसने मुलाकात कर ली। जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है अपने आप में रहना। जिस प्रकार शरीर में मस्तिष्क का तथा वृक्ष में उसकी जड़ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उसी प्रकार आत्म-धर्म की साधना में ध्यान का प्रमुख स्थान है। ध्यान का अर्थ है-आत्मा में रमण करना।
मुनि जिनेश कुमार जी ने कहा कि जैन धर्म में प्राचीन काल से ध्यान की विधियाँ प्रचलित रही हैं। ध्यान साधक एवं अनुसंधाता आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने विच्छिन्न हुई ध्यान परंपरा को प्रेक्षाध्यान के रूप में आविष्कृत कर मानव जाति पर महान उपकार किया है। प्रेक्षाध्यान पद्धति अध्यात्म व विज्ञान के समन्वय का सुंदर उदाहरण है। प्रेक्षाध्यान तनावमुक्ति की उत्तम प्रक्रिया है। इस अवसर पर मुनि परमानंद जी ने कहा कि प्रेक्षाध्यान कर्म निर्जरा व तनाव मुक्ति का महत्त्वपूर्ण माध्यम है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन ध्यान करना चाहिए। कार्यक्रम का शुभारंभ बाल मुनि कुणाल कुमार जी द्वारा प्रेक्षा गीत के संगान से हुआ। आभार ज्ञापन समता सेठिया ने किया।