परमपूज्य कालूगणी ने दिया तेरापंथ धर्मसंघ को सबसे युवा आचार्य: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

परमपूज्य कालूगणी ने दिया तेरापंथ धर्मसंघ को सबसे युवा आचार्य: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 20 अक्टूबर, 2022
कालूगणी अभिवंदना सप्ताह का आज चौथा दिन कालूगणी और तुलसी विषय पर आधारित दिवस। तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र की विवेचना करते हुए फरमाया कि भंते! क्या केवली इंद्रियों से जानता-देखता है। उत्तर दिया गया-गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। यह किस अपेक्षा से? केवली पूर्व दिशा में परिमित-अपरिमित को जानता है। यावत् केवली का दर्शन विरावरण है, इस अपेक्षा से।
हम इंद्रियों के द्वारा ज्ञान करते हैं। केवली के पास तो प्रत्यक्ष अतीन्द्रिय ज्ञान होता है। हमारे लिए इंद्रियों का बड़ा उपयोग है। इंद्रियों का उपयोग क्या किया जाता है, वो खास बात है। इंद्रियों का सदुपयोग करने वाला आदमी बढ़िया होता है। हम इंद्रियों का सदुपयोग करने का प्रयास करें। परमपूज्य कालूगणी और आचार्य तुलसी ने अपनी इंद्रियों का कैसा उपयोग किया था। कितना अध्ययन किया था। परमपूज्य कालूगणी के इतने शिष्य थे। उनका अपना-अपना उपयोग हो सकता है। उपयोग करना खास बात है। उपयोग में लेने वालों का भी अपना कौशल होना चाहिए कि क्या उपयोग किया जाए।
कोई ऐसा अक्षर नहीं होता है, जो मंत्र के रूप में प्रणत न हो। कोई ऐसा मूल नहीं जो दवा के रूप में काम न आ सके। कोई ऐसा आदमी नहीं जिसमें सामान्यतया कोई योग्यता न हो। महत्त्वपूर्ण बात है कि उपयोग करने वाला ज्ञानवान हो। परमपूज्य कालूगणी के पास सामग्री थी, मुनि तुलसी जैसे कई संत थे। उन्होंने अपने ढंग से उपयोग किया है। मूर्ति बनाने लायक पत्थर भी हो। कालूगणी को एक शिष्य मिल गया जिसके लिए उन्होंने निश्चय कर लिया कि इस छोटे शिष्य को अपने पीछे दायित्व संभालने के लिए प्रयुक्त कर सकूँ। मुनि तुलसी को 22 वर्ष से भी कम आयु में अपना युवाचार्य बना दिया। मुनि मगनलाल जी ने कालूगणी को मुनि तुलसी के लिए और संतुष्ट कर दिया था। तीन दिन का युवाचार्य काल रहा। मुनि तुलसी को भी गुरुदेव कालूगणी के सान्निध्य में प्रायः रहने का अवसर मिला।
कालूगणी की मुनि तुलसी पर विशिष्ट कृपा थी। छोटी उम्र के आचार्य को मुनि मगनलाल जी का भी विशेष सहयोग मिला था। हमें पूज्य कालूगणी जैसे आचार्य मिले तो आचार्य तुलसी जैसे लंबे आयुष्य वाले आचार्य भी मिले। मैं दोनों आचार्यों को श्रद्धा से वंदन-नमन करता हूँ। पूज्यप्रवर ने सुजानगढ़ की सुश्राविका सुशीला सुराणा से 108 की तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
मुनि योगेश कुमार जी ने पूज्य कालू-तुलसी के संस्मरणों को सुनाते हुए बताया कि पूज्यप्रवर की कृपा से धर्मसंघ को पूज्य कालूगणी की शिक्षाओं को जानने का अवसर मिला है। तेरापंथ में जितने आचार्य हुए हैं, अपने आपमें विलक्षण हुए हैं। पूज्य कालूगणी में लीडरशिप की कुशलता थी। व्यक्तित्व निर्माण की उनमें कला थी। वे कोमल भी थे तो अनुशासन में कठोर थे। वे माता-पिता के समान थे। वे कुंभकार थे। उनकी दृष्टि पैनी थी जो 22 वर्ष के युवा संत को धर्मसंघ का दायित्व सौंप दिया था।
साध्वी जितेंद्रप्रभा जी, साध्वी काम्यप्रभा जी, साध्वी संघप्रभा जी, साध्वी प्रयांशुप्रभा जी ने कालूगणी अभिवंदना में अपनी श्रद्धा भावना अभिव्यक्त की। चमन दुधोड़िया, राहुल दुधोड़िया, उमराव चोरड़िया, सुरेंद्र बैद ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।