संबोधि

स्वाध्याय

संबोधि

बंध-मोक्षवाद

मिथ्या-सम्यग्-ज्ञान-मीमांसा
भगवान् प्राह
(41) द्वादशमासपर्याय, आत्मध्यानरतो यतिः।
अनुत्तरोपपातिक-तेजोलेश्यां व्यतिव्रजेत्।।

बारह मास का दीक्षित आत्म-लीन मुनि पाँच अनुत्तर विमान के देवों के सुखों को लाँघ जाता है।
आत्मिक सुख की तुलना में पौद्गलिक सुख निकृष्ट होता है। पौद्गलिक सुख भी सबमें समान नहीं होता। मनुष्यों की अपेक्षा देवताओं का पौद्गलिक सुख विशिष्ट होता है। देवताओं की चार श्रेणियाँ हैंµ
(1) व्यंतर, (2) भवनपति, (3) ज्योतिषी और (4) वैमानिक।
व्यंतर देव आठ प्रकार के होते हैंµ
पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग और गंधर्व।
भवपति देव दस प्रकार के होते हैंµ
असुरकुमार, नागकुमार, तडितकुमार, सुपर्णकुमार, वह्निकुमार, अनिल कुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार और दिक्कुमार।
ये देव भवनोंµआवासों में रहते हैं, अतः इन्हें भवनपति देव कहा गया है।
ये देव कुमार के समान सुंदर, कोमल और ललित होते हैं। ये क्रीड़ा-परायण और तीव्र रागवाले होते हैं।
ज्योतिषी देव पाँच प्रकार के होते हैंµ
चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारक।
वैमानिक देवµ
इनके दो भेद हैंµकल्पोपपन्न और कल्पातीत। कल्पोपपन्न वैमानिक देव बारह प्रकार के हैं। इनके नाम क्रमशः उनतीसवें श्लोक से बत्तीसवें श्लोक तक दिए गए हैं।
ग्रैवेयक और अनुत्तर विमानवासी देव कल्पातीत होते हैं। ग्रैवेयक देवों के नौ और अनुत्तर देवों के पाँच भेद हैं।
आत्मिक सुख की तुलना पौद्गलिक सुखों से नहीं की जा सकती; क्योंकि वे क्षणिक, अशाश्वत और बाह्य-वस्तु सापेक्ष होते हैं। पौद्गलिक सुख में भी तरतमता होती है। साधारण मनुष्य और असाधारण मनुष्य में विभेद देखा जाता है। देव-सुखों की तुलना में मनुष्य के सुख तुच्छ हैं। देवताओं में भी सर्वार्थसिद्ध देवों के सुख सामान्य देवताओं के सुखों से अनंतगुण अधिक हैं। लेकिन आत्मिक सुख की तुलना में सर्वार्थसिद्ध देवों के सुख भी अकिंचित्कर हैं।
इन श्लोकों को प्रतिपाद्य यही है कि साधना ज्यों-ज्यों आगे बढ़ती है, मुनि के आनंद का भी उत्कर्ष होता जाता है। वास्तव में आत्मानंद की तुलना किसी पौद्गलिक पदार्थ से प्राप्त सुख या आनंद से नहीं की जा सकती, किंतु सामान्य बोध के लिए उसकी यह तुलना की गई है।

(42) ततः शुक्लः शुक्लजातिः, शुक्ललेश्यामधिष्ठितः।
केवली परमानंदः, सिद्धो बुद्धो विमुच्यते।।

उसके बाद वह शुक्ल और शुक्लजाति वाला मुनि शुक्ल लेश्या को प्राप्त होकर केवली होता है, परम आनंद में मग्न, सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो जाता है।

(क्रमशः)