जीवन में सदैव करें आध्यात्मिक सेवा का प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन में सदैव करें आध्यात्मिक सेवा का प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण

बस्सी, 29 नवंबर, 2022
जनोपकार के एकमात्र उद्देश्य के साथ आचार्यश्री महाश्रमण जी 15 किलोमीटर का विहार कर बस्सी गाँव स्थित राजकीय विद्यालय पधारे। मुख्य प्रवचन में जन-जन के देवता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी सृष्टि का व्यवस्था क्रम है। दिन-रात। ये क्रम हमारे इस क्षेत्र में चल रहा है। ये प्रकृति का उपहार है कि हमें 24 घंटे फ्री में रोज मिलते हैं। जैसे बादल बरसता है। सूर्य तपता है। हमारी सृष्टि को एक दृष्टि से देखें तो कितनी अच्छी है, कितनी उपकारक है।
हमें प्रकृति से और भी मिलता है। श्वास के लिए हवा मिलती है। प्रकृति में धर्मास्तिकाय नाम का तत्त्व है। इसके द्वारा हमें गति में सहायता मिलती है। अमूर्त, अरूपी है फिर भी कितनी सहायता करता है। नाम की भावना न हो। अगर धर्मास्तिकाय सहयोग करना बंद कर दे तो सारी सृष्टि रुक जाएगी, ये मात्र एक कल्पना है, ऐसा होने वाला नहीं है। वह तो उदासीन भाव से सहयोग करता है। अधर्मास्तिकाय का स्थिति में सहयोग है। आकाश स्थान देने में सहयोग करता है। छः द्रव्यों में एक पुद्गलास्तिकाय मूर्त है, बाकी पाँच अमूर्त है। पुद्गलास्तिकाय का भी कितना हम पर उपकार है। काल से समय की जानकारी मिलती है। जीवास्तिकाय एक-दूसरे का सहयोग-उपकार करती है।साधु गृहस्थों से सेवा लेते हैं, तो वापस गृहस्थों की आध्यात्मिक सेवा करते हैं। हम जीवन में दूसरों को आध्यात्मिक-धार्मिक जो सेवा दे सकें, देने का प्रयास करना चाहिए।
आज नागौर जिले को छोड़ पाली जिले में आ गए हैं। यहाँ तो तेरापंथ के कई ऐतिहासिक क्षेत्र हैं। परमपूज्य आचार्यश्री भिक्षु का विहार क्षेत्र है। यहाँ भी खूब धार्मिक शांति रहे।
पूज्यप्रवर के स्वागत में महावीर बोहरा, कन्हैयालाल सिंघवी, बसंत सिंघवी, माणक, शांताबाई, सुरेंद्र सालेचा (पाली सभाध्यक्ष), प्रमोद, गौतम छाजेड़ आदि ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने स्थानीय लोगों को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति को समझाकर संकल्प स्वीकार करवाए। स्कूल के प्रधानाध्यापक भवानी सिंह ने पूज्यप्रवर का विद्यालय प्रांगण में पधारने पर कृतज्ञता ज्ञापित की। व्यवस्था समिति की ओर से विद्यालय परिवार का सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।