हमें परमप्रभु पार्श्वनाथ से वीतरागता की प्रेरणा मिले: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

हमें परमप्रभु पार्श्वनाथ से वीतरागता की प्रेरणा मिले: आचार्यश्री महाश्रमण

चतुर्थ आचार्य श्रीमद्जयाचार्य की जन्म भूमि में आचार्यश्री महाश्रमण जी का पदार्पण

रोहट, 18 दिसंबर, 2022
पाली जिले का एक गाँव रोहट, जहाँ हमारे धर्मसंघ के चतुर्थाचार्य जयाचार्य का जन्म हुआ था, जयाचार्य के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी का आज प्रातः पधारना हुआ। जयाचार्य के शासनकाल में तेरापंथ के विकास के नए-नए आयाम जुड़े हैं। कितना उन्होंने ग्रंथों का निर्माण किया था। महामनीषी आचार्यप्रवर ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि जिनों, वीतरागों को नमस्कार है, जिन्होंने भय को जीत लिया है। हमारी दुनिया में अध्यात्म के अधिकृत प्रवक्ता तीर्थंकर होते हैं। जैन शासन में चौबीस तीर्थंकरों की एक व्यवस्था है। हर अवसर्पिणी काल और उत्सर्पिणी काल में 24-24 तीर्थंकर भरत-ऐरावत क्षेत्र में होते हैं।
तीर्थंकर 24 ही क्यों? तो फिर दिन-रात में घंटे 24 क्यों? ऐसा ही क्रम है। कालचक्र के 12 अर ही क्यों तो घड़ी के भी 12 अक्षर क्यों? ये सभी शाश्वत नियम है। इस अवसर्पिणी काल में 23वें तीर्थंकर पुरुषादानीय भगवान पार्श्व हुए हैं। 24 तीर्थंकरों में ये पुरुषादानीय अलंकरण-विशेषण केवल भगवान पार्श्व के लिए ही आता है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि पुरुषादानीय, पुरुषों के लिए ग्रहणीय, लोकप्रिय तीर्थंकर हो जाते हैं। आज भी देखें कि पूरे भारत में 24 तीर्थंकरों के जितने मंदिर भगवान पार्श्व के मिलते हैं, संभवतः और 23 तीर्थंकरों में से किसी के भी उतने मंदिर नहीं मिलते हैं। जनता में भगवान पार्श्व के प्रति विशेष भाव है।
जितने स्तोत्र-मंत्र भगवान पार्श्व से जुड़े हुए मिलते हैं, संभवतः उतने स्तोत्र अन्य तीर्थंकरों से संबंध नहीं मिलते हैं। कल्याण मंदिर स्तोत्र, उवस्सग्गहर स्तोत्र जैसे कितने स्तोत्र-मंत्र हैं। आज पार्श्व तीर्थंकर की जन्म जयंती पौष कृष्णा दशमी है। हम वीतराग परम प्रभु पार्श्व से प्रेरणा लें कि वीतरागता की प्रेरणा हमें मिले। भगवान पार्श्व नागराज से भी जुड़े हुए हैं। कुमार पार्श्व की प्रेरणा से एक नाग-नागिन का जोड़ा धरणेंद्र-पद्मावती के रूप में देवगति में प्रतिष्ठित है।
हमारी दुनिया में तीर्थंकरों अभाव कमी नहीं होता, ये मानो दुनिया का सौभाग्य है। हम प्रभु पार्श्व की अभिवंदना श्रद्धा के साथ करें। ‘प्रभु पार्श्व देव चरणों में शत-शत प्रणाम हो’। गीत का सुमधुर संगान पूज्यप्रवर ने करवाया। अनन्य भक्ति इस गीत में गुरुदेव तुलसी ने उडे़ल दी है। उवस्सग्गहर स्तोत्र का भी पाठ करवाया। आज हम रोहट में आए हैं। रोहट में पहली बार आने की बात है। हमारे धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमद् जयाचार्य के जन्म स्थल के रूप में प्रतिष्ठित हुआ है। जयाचार्य महापुरुष थे। एक श्रुतधर प्रज्ञा पुरुष आचार्य थे। एक छोटा-सा बालक हमारे धर्मसंघ को प्राप्त हुआ। कितने ज्ञानी, आगमज्ञ, सिद्धांतज्ञ बन गए। उनका साहित्य भी कितना है। राजस्थानी भाषा को समृद्ध बनाने में मानो श्रीमद् जयाचार्य का बड़ा योगदान संभवतः माना जा सकता है। वे एक तत्त्ववेत्ता आचार्य और आचार्य भिक्षु के सिद्धांतों के भाष्यकार प्रवक्ता के रूप में थे। भिक्षु स्वामी के महाप्रयाण के एक माह बाद ही जयाचार्य का जन्म हो गया।
पाली जिला तो हमारे धर्मसंघ के लिए ऐतिहासिक है। शेयर, खैरवा, कंटालिया, सिरियारी, बगड़ी आदि कई क्षेत्र हैं। जयाचार्य का स्मृति स्थल भी देखने को मिला। सर्कल भी बना हुआ है। आज हम हमारे धर्मसंघ के परम पूजनीय श्रीमद् जयाचार्य से संबद्ध स्थान में आए हैं। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि रोयट अपने आपमें सौभाग्यशाली है कि इसने एक कोहिनूर दिया, जिसने तेरापंथ की आभा को बढ़ाया। जयाचार्य का जीवन बहुआयामी था। वे सचमुच एक स्थिर योगी थे। जयाचार्य के जीवन के अनेक प्रसंग हैं। उन्होंने जो हमारे धर्मसंघ को दिया है, वो चिरस्थायी बना रहे।