विचार को व्यवहार में लाने में पुल का काम करते हैं संस्कार: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

विचार को व्यवहार में लाने में पुल का काम करते हैं संस्कार: आचार्यश्री महाश्रमण

सरदारपुरा, जोधपुर, 23 दिसंबर, 2022
पूज्यप्रवर का जोधपुर प्रवास का तीसरा दिन। आज प्रातः लगभग 3 किलोमीटर का विहार कर परम पावन जोधपुर की अंतर्यात्रा करते हुए अमरानगर पधारे। तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। शुद्ध आचार का भी महत्त्व है। ज्ञान और आचार दो तट हैं, कोरा ज्ञान है, आचरण में वह नहीं आता है, तो ज्ञान अधूरा है। कुछ लोग तत्त्व को जान तो लेते हैं, पर आचरण की क्षमता नहीं है। कईयों में आचरण की क्षमता है, पर उनको ज्ञान नहीं है तो दोनों में अधूरापन है। कुछ लोग होते हैं जो तत्त्व को जान भी लेते हैं और आचरण में समर्थ होते हैं, करते हैं। ज्ञान आचरण में कैसे आए। ज्ञान और आचरण दोनों तट हैं, इसके लिए पुल चाहिए वो पुल है-दर्शन, भक्ति, आकर्षण।
दूसरे शब्दों में कहूँ तो एक विचार तट है, एक व्यवहार तट है, विचार को आचार-व्यवहार में लाने के लिए पुल है-संस्कार। इससे विचार-व्यवहार में परिमित हो सकता है।भक्ति में अहंकार न हो। अपने आराध्य, सिद्धांत के प्रति भक्ति हो। भक्ति और समर्पण निःशर्त होती है। वह समर्पण विशुद्ध-उच्च कोटि का हो सकता है। मैं और तुम अलग-अलग न हों। जैन शासन में नवकार मंत्र हर संप्रदाय में प्रतिष्ठित है। नवकार मंत्र में जैन एकता है। भक्तामर और तत्त्वार्थ सूत्र में लगभग जैन एकता है। नवकार मंत्र भक्ति का पाठ है। किसी के सामने हमारा उत्तमांग-मस्तक झुकता है, तो उसके प्रति हमारी भक्ति है।
त्यागी साधु के चरणों में व्यक्ति अपना मस्तक लगाता है। यह भी उनके प्रति भक्ति है। हमारे आराध्य भगवान महावीर हैं, उनके प्रति हमारी भक्ति है। भक्ति से शक्ति प्राप्त होती है। वीतराग सिद्ध भगवान, आचार्य-गुरु के प्रति भी हमारी भक्ति हो। आचार्य तो साक्षात् होते हैं। उपाध्याय व साधु-साध्वी के त्याग-संयम को नमन नमस्कार महामंत्र में किया गया है। इससे बड़ा कोई मंत्र जैन धर्म में प्रतिष्ठित नहीं है। नवकार मंत्र का जप करने वाला जैन है। भक्ति भी अंतर्मन में होती है, तो ज्यादा बलवान होती है, यह एक प्रसंग से समझाया कि गुरु के सामने बुरा काम न करें। गुरु तो हमारे अंतर्मन में विराजते हैं। गुरु भक्ति वाला पाप का काम नहीं कर सकता। हम निर्वद्य-शुद्ध भक्ति का प्रयोग नवकार मंत्र पाठ से भी कर सकते हैं। आज अमरनगर आए हैं। यहाँ पिछला चातुर्मास साध्वी सत्यवती जी का हुआ था, यहाँ के लोगों में धर्म की भावना रहे।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि रात्रि में सघन अंधकार हो, उस समय दीपक का मिलना दुर्लभ है, समुद्र में यात्रा करते समय द्वीप मिले, मरुस्थल की यात्रा में वृक्ष मिले, सर्दी के समय अग्नि मिले ये दुर्लभ तो है पर असंभव नहीं। हमारे जीवन की प्रलंब यात्रा में गुरु की सन्निधि दुर्लभ हो सकती है, पर असंभव नहीं है। वे लोग धन्य होते हैं, जिन्हें गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में महिला मंडल अध्यक्षा सरला कांकरिया, तेयुप से महावीर चौधरी, तेरापंथ समाज गीत, सभा से महावीर चौपड़ा, टीपीएफ गीत, कन्या मंडल प्रस्तुति, सुरेश जीरावला, शहर की विधायिका सूर्यकांता, तेरापंथ महिला मंडल व जीरावला परिवार संयुक्त गीत, किशोर मंडल से विकास, कवीश जैन, ऋषभ सामसुखा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कन्या मंडल ने पूज्यप्रवर से नशामुक्ति के संकल्प स्वीकार किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।