कषाय और इंद्रिय विजय से होती है आत्म विजय की साधना: आचार्यश्री महाश्रमण
भाण्डू, जोधपुर, 25 दिसंबर, 2022
तेरापंथ के महासूर्य आज प्रातः 12 किलोमीटर का विहार कर जीरावला परिवार के परिसर में पधारे। आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि दुनिया में जय और पराजय का क्रम भी चलता है। कोई जीत जाता है, कोई हार जाता है। जय-पराजय बाहर की दुनिया में होती है, तो भीतर की दुनिया में भी जय-पराजय की बात हो तो सकती है। शास्त्र में कहा गया कि बाहर एक योद्धा युद्ध करता है, दस लाख शत्रुओं को वह पराजित कर देता है, वह विजय तो है, परंतु बहुत बड़ी विजय नहीं है। एक साधक आदमी केवल अपनी आत्मा को जीत लेता है, वह उसकी परम जय हो जाती है। ये भीतर की आत्मा का युद्ध है।
शत्रु कौन है? एक हमारी आत्मा शत्रु है। चार कषाय व पाँच इंद्रियाँ जो अजित हैं, विषयासक्त हैं वे शत्रु हैं। एक आत्मा को जीत लिया तो मानो दस को जीत लिया। कषाय विजय और इंद्रिय विजय की साधना आत्म विजय की साधना है। ये आध्यात्मिक आराधना हो जाती है। प्रश्न हैµकषायों को जीते कैसे? उपाय बताया गया कि गुस्से को उपशम से, क्षमाशीलता और शांति से जीतें। अहंकार को मार्दव-मृदुता के द्वारा ऋजुता के द्वारा माया को और संतोष के द्वारा लोभ को जीतें। पाँच इंद्रियों को अनासक्ति के अभ्यास के द्वारा जीतने का प्रयास किया जा सकता है।
अरिहंत भगवान शत्रुओं का हनन करने वाले होते हैं। गृहस्थ भी कषाय-विजय का अभ्यासी हो। एक शब्द में कषाय या मोह और दो शब्दों में राग-द्वेष कह दें और चार शब्दों में क्रोध, मान, माया, लोभ कह सकते हैं। कषायों से कामना प्रबुद्ध हो सकती है। लोभ तो दसवें गुणस्थान तक रह जाता है, इसे संतुष्टि से निर्मूल करने का प्रयास हो। यह एक प्रसंग से समझाया कि उसके लिए सर्वत्र संपदा है, जिसका मन संतुष्ट रहता है। जो संतोष की भावना में रहता है, वह पूज्य होता है। कषायों को जीतना अध्यात्म की साधना है। मोहनीय कर्म तो आठों कर्मों का राजा है, सेनापति है। ये एक कंट्रोल में आ जाए तो शेष सात तो अपने आप खत्म होंगे ही। इस मोहनीय कर्म पर प्रहार हो यह पतला पड़, क्षय को प्राप्त हो तो यह विजय यात्रा संपन्न हो जाती है।
एक आत्मा को जीत लो तो चार कषाय को जीत लेंगे और चारों कषायों को जीत लेंगे तो माने सारे शत्रु पराजित हो जाएँगे। शत्रु सेना भी सबल हो सकती है। पर हम सबल को निर्बल बनाएँ। आत्म-विजय की दिशा में जो आगे बढ़े हैं, वे कभी बुद्ध-प्रबुद्ध-संबुद्ध बन सिद्धावस्था को प्राप्त हो सकते हैं। हम आत्म विजेता बनने की दिशा में आगे बढ़ें, यह काम्य है। आज यहाँ प्रिंस परिसर में आए हैं। जीरावला परिवार में खूब धार्मिक-आध्यात्मिक भावना रहे। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में बाबूलाल जीरावला, जीरावला परिवार की बहनों ने गीत, खुश, हीरालाल, नितिन, एडिशनल कमीश्नर जीएसटी विनोद मेहता, सरिता बैद, सरदारपुरा ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेयुप, जोधपुर ने 2023 का कैलेंडर श्रीचरणों में अर्पित किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।