धर्म का सर्वश्रेष्ठ फल है त्याग

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धर्म का सर्वश्रेष्ठ फल है त्याग

छापली।
धर्म की आराधना से ही त्याग का विकास होता है। आध्यात्मिक शिक्षा से अपने जीवन का विकास होता है। अज्ञान के कारण व्यक्ति हिंसा करता है। शरीर के साथ अन्याय वही करता है जो असंयमी होता है। त्याग और संयम से जीवन में ऊर्जा का विकास होता है तथा धार्मिक जीवन बनता है। छापली गाँव के श्रावक शंकरलाल खमेसरा के घर पर व्यक्त करते हुए मुनि कोमल कुमार जी ने कहा कि संसार में चार प्रकार के मनुष्य होते हैं-भाग्यशाली, सौभाग्यशाली, महाभाग्यशाली और दुर्भाग्यशाली। जिनके पास धन है वह भाग्यशाली। जिसके पास धन भी है और स्वास्थ्य भी है वह सौभाग्यशाली। जिसके पास धन भी है स्वास्थ्य भी है और धर्म भी है वह महाभाग्यशाली और जिसके पास न धर्म है, न स्वास्थ्य और न ही धर्म है वह दुर्भाग्यशाली। इतना तो विवेक होना ही चाहिए कि हम दुर्भाग्यशाली न बनें। मुनि धीरज कुमार जी एवं मोहनलाल डाकलिया ने भी अपनी भावना व्यक्त की। इस अवसर पर शंकरलाल खवेसरा व सुधा बहन ने मुनिश्री का स्वागत किया और अपनी भावना प्रस्तुत की।