कारागृह को सुधार गृह मानो
बालेश्वर, उड़ीसा।
मुनि जिनेश कुमार जी का विशेष प्रवचन कारागृह में कैदियों के मध्य हुआ। जिसमें सैकड़ों कैदियों को संबोधित करते हुए मुनि जिनेश कुमार जी ने कहा कि व्यक्ति जैसा कर्म करता है, वैसा फल मिलता है। समता व पश्चात्ताप के साथ कर्म भोगने वाला व्यक्ति सुखी रहता है, व्यक्ति को आत्म-निरीक्षण करना चाहिए। क्रोध, असत्य, नशा, मोह, गरीबी, अमीरी, प्रतिशोध, वैर, तनाव, अशिक्षा, अपराध के कारण हैं। मुनिश्री ने आगे कहा कि जिस प्रकार बारूद से नगर नष्ट हो जाता है उसी प्रकार क्रोध से जीवन बर्बाद हो जाता है। व्यक्ति गलती का पुतला है। गलती होना स्वाभाविक है। जो गलती पर गलती करता है वह शैतान होता है, गलती करके पुनः गलती नहीं करता वह इंसान होता है। कभी गलती नहीं करता वह भगवान होता है। कारागृह को सुधार गृह मानो। अपने आपको बदलने के लिए सत्संगत, जप, तप, ध्यान, योगासन करना चाहिए। नशामुक्त जीवन जीना चाहिए। कारागृह को मंदिर मानकर आत्मसाधना व स्वाध्याय करना चाहिए। स्वाध्याय से सकारात्मक चिंतन का विकास होता है।
मुनिश्री की प्रेरणा से करीबन 20 व्यक्तियों ने नशामुक्त जीवन जीने का संकल्प लिया। मुनि परमानंद जी ने कहा कि साधु अहिंसा आदि पाँच महाव्रतों की साधना करते हैं। सत् प्रवृत्ति से व्यक्ति अच्छा इंसान बनता है। असत् प्रवृत्ति से बुरा इंसान होता है। मुनि कुणाल कुमार जी ने गीत प्रस्तुत किया। जेलर अविनाश बोहरा ने स्वागत भाषण करते हुए विचार रखे। इस अवसर पर कनकमल धाड़ेवा, सुरेश सिंघी ने विचार रखे व तेरापंथ सभा के अध्यक्ष धीरज धाड़ेवा ने आभार व्यक्त किया। निर्मल बैद, विकास मालू, योगेश सिंघी, पुलिस अधिकारी भूपेंद्र आदि विशेष रूप से उपस्थित थे। मुनि जिनेश कुमार जी ने अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, अहिंसा यात्रा के बारे में भी बताया। मुनिश्री ने कैदियों से वार्तालाप की तथा उन्हें अच्छा जीवन जीने की प्रेरणा दी।