
जरूरी है मानसिक और शारीरिक संतुलन
चंडीगढ़।
संतुलन दुनिया के तमाम तत्त्वों, व्यक्तियों, स्थलों और परिस्थितियों के लिए नितांत जरूरी है, तभी सभी अपने अस्तित्व और गुणवत्ता को बरकरार रख सकते हैं। इसी प्रकार इंसान के मन-मस्तिष्क और शरीर में संतुलन जरूरी है। पुरुषार्थ चतुष्ट्य के चार पाएµधर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं और इनमें भी आनुपातिक संतुलन बने रहना जरूरी है। अपना कर्म करते रहें, इसके लिए यह जरूरी है कि इनकी शक्तियों और प्रवाह में आवश्यक संतुलन हर क्षण बना रहे। यह शब्द मनीषी संत मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने अणुव्रत भवन, तुलसी सभागार में सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। मुनिश्री ने आगे कहा कि इंसान के लिए जितना बैठकर काम करना जरूरी है, उतना चलना भी जरूरी है। जो लोग बैठे ही रहते हैं, अपनी कुर्सियों और व्हीलचेयर्स में धँसे ही रहते हैं, उन लोगों को भी चलना-फिरना, हिलना-डुलना जरूरी है। इनके संचालन की आनुपातिक निरंतरता होने पर ही व्यक्ति स्वस्थ और मस्त रह सकता है।