आत्मिक सुख पाने के लिए आत्मा पर अनुशासन करना अपेक्षित: आचार्यश्री महाश्रमण
जसोल में कीर्तिमान-सजोड़े संथारा गतिमान
जसोल, 6 जनवरी, 2023
तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी राणी भटियाणी माजीसा के मंदिर से विख्यात जसोल शहर में धवल सेना संग पधारे। जसोलवासियों ने महातपस्वी का स्वागत तपस्याओं के माध्यम से किया। पदार्पण के साथ ही आचार्यप्रवर ने जसोल भी तेरापंथ का एकरंगा क्षेत्र है। पूज्यप्रवर ने संथारारत पुखराज संकलेचा को दर्शन दिलाए एवं पुखराज की धर्मपत्नी गुलाबीदेवी संकलेचा ने भी तिविहार संथारे का प्रत्याख्यान पूज्यप्रवर से ग्रहण किया। जोड़े से संथारा हुआ है।
भवसागर तारक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि अध्यात्म जगत का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है-आत्मवाद। यह आत्मवाद इतना आधारभूत सिद्धांत है कि लगता है ये साधुत्व की साधना, विशेष धर्माराधना यह सारी तभी सार्थक हो सकती है, जब आत्मवाद का सिद्धांत सही और मान्य हो। आत्मा का त्रिकालिक और शाश्वत अस्तित्व है। आत्मा और शरीर दोनों अलग-अलग बताए गए हैं। कुमार श्रमण केशी और राजा परदेशी को पढ़ा जाए तो उससे नास्तिकवाद की भी जानकारी मिल सकती है। नास्तिकवाद के खंडन को भी समझा जा सकता है।
नास्तिकवाद का सिद्धांत है कि आत्मा-शरीर एक है, पर आस्तिकवाद का सिद्धांत है कि शरीर अलग है, आत्मा अलग है। साधुत्व की साधना का आधार आस्तिकवाद ही है। आत्मा शाश्वत है तो फिर पुनर्जन्म की बात भी सिद्ध हो सकती है। बार-बार जन्म-मरण होता है, इससे छुटकारा पाने के लिए आध्यात्म की साधना की जाती है। कोरी आत्मा जीवन नहीं, कोरा शरीर जीवन नहीं। दोनों का संयोग है तो जीवन है। आत्मा पर अनुशासन करना बड़ा कठिन काम है। जिसने आत्मा पर संयम कर लिया वह सुखी आदमी है। आत्मिक सुख पाने के लिए आत्मा पर अनुशासन करना अपेक्षित है।
शब्द और अर्थ का अपना-अपना महत्त्व है। अर्थ समझने पर शब्द का महत्त्व हो जाता है। आत्मा अमूर्त है पर हम शरीर, वाणी, मन और इंद्रियों को तो जानते हैं। हम शरीर, वाणी, मन और इंद्रियों पर अनुशासन कर लें तो आत्मानुशासन हो जाएगा। आत्मानुशासन के ये चार आयाम हैं, इनका निरंतर अभ्यास हो। समस्या हो सकती है, पर तपस्या की साधना हो तो समस्या होने पर भी शांति में रह सकते हैं। समस्या के साथ भी मैत्री कर लें। समस्या को समस्या न मानें। हम मनोबल से आत्मानुशासन की साधना करने का प्रयास करें। आज दस बरसों बाद जसोल आना हुआ है। साध्वियों के चार सिंघाड़ों ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि यह वही जसोल है, जब मुनि जीत बालोतरा चातुर्मास करने के लिए जसोल पधारे थे। लोग उनको पहचान नहीं पाए थे। पर आज तो श्रद्धा का सैलाब उमड़ रहा है। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी सालेचा परिवार से हैं। सिवांची-मालाणी के छोटे-छोटे क्षेत्रों में पूज्यप्रवर के दीर्घ प्रवास की अर्ज की जा रही है।
अपनी जन्मभूमि पर अपने आराध्य का स्वागत करते हुए साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि हर धर्म में आराध्य की आराधना की जाती है। जब मैं आचार्यप्रवर के व्यक्तित्व को निहारती हूँ तो मुझे महसूस होता है कि आप मर्यादा परम पुरुषोत्तम हैं। आप कोई भी मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करते हैं, मर्यादा के प्रति पूर्ण जागरूक रहते हैं। आप अनुत्तर महायोगी, महा-यायावर हैं। आज मैं दीक्षा, शिक्षण प्रदाता और भाग्य-विधाता का अपनी जन्म-भूमि पर अभिवंदना करती हूँ।
अपनी दीक्षा भूमि पर अभिवंदना व्यक्त करते हुए मुख्यमुनि महावीर कुमार जी ने कहा कि आचार्यप्रवर आज मालाणी की धरा जसोल पधारे हैं। मेरा भी यहाँ से संबंध है। यहाँ मेरे अनंत जन्मों की पुण्याई जागृत हुई थी। परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी द्वारा मुझे संयम जीवन स्वीकार करने का महान अवसर प्राप्त हुआ था। पर मेरा केश लोच उस समय युवाचार्यश्री महाश्रमण जी द्वारा हुआ था। पूज्यप्रवर के स्वागत में सभाध्यक्ष उषभराज तातेड़, महिला मंडल, कन्या मंडल, ज्ञानशाला प्रशिक्षिका समूह गीत, जसोल के रावल किशन सिंह, जसोल से संबंधित साध्वीवृंद द्वारा समूह गीत एवं प्रस्तुति, साध्वीवृंद गीत से पूज्यप्रवर की अभिवंदना की। साध्वीवर्या जी के नातिले सालेचा परिवार ने पंचरंगी तप के प्रत्याख्यान लिए। जसोलवासियों ने 108 उपवास से पूज्यप्रवर का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।