ज्ञान और ज्ञानी के प्रति विनयभाव रखना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 7 अगस्त, 2021
महान साधक, उदात्त चेतना के धनी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देषणा देते हुए फरमाया कि ठाणं आगम के नौवें स्थान में 23वें सूत्र में कहा गया है कि दो ही चीजें हैंआत्मा और शरीर। इनके सिवाय और कुछ नहीं। जो हैं, वे इन्हीं का मोटा-मोटी विस्तार माना जा सकता है।
जीव हमारे लिए अदृश्य है, परंतु ज्ञेय हो सकता है। ज्ञेय को जानने का प्रयास भी किया जा सकता है।
ज्ञान के विकास का आदमी प्रयास कर सकता है। ज्ञान के लिए प्रतिभा का होना और बाह्य अनुकूल परिस्थितियों का होना आवश्यक है। जिस विषय के ज्ञान में रुचि है, उन ग्रंथों को पढ़ना चाहिए। उस विषय का जानकर ज्ञानदाता भी होना चाहिए। ज्ञान देना भी एक उपकार है। दूसरों को ज्ञान देने का प्रयास करना चाहिए। समय का उपयोग करो
यह चतुर्मास दुर्लभ चतुर्मास है। कितने ठाणों का समवाय यहाँ हुआ है। अनेक विषयों के विज्ञाता साधु-साध्वियाँ मिल सकते हैं। उनके पास ज्ञान है, उसे दूसरों को बताने का प्रयास करें। इसका मुनि हेमराज जी और जीत मुनि उदाहरण बन सकते हैं। जितना मौका मिले ज्ञान ग्रहण का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान और ज्ञानी की आशातना नहीं करनी चाहिए। ज्ञानी के प्रति विनय भाव रखो।
ज्ञान को देने से ज्ञान और बढ़ सकता है, पुष्ट हो सकता है। ज्ञानदान और ज्ञान का आदान अच्छा कार्य होता है। जितनी अनुकूलता हो ज्ञान ग्रहण में और ज्ञान देने में प्रवृत्त होने का प्रयास करना चाहिए। हमारे जीवन में ज्ञान का महत्त्व है। इधर शरीर है और इधर आत्मा।
आत्मा का ज्ञान कह दे या अध्यात्म विद्या का ज्ञान कह दें, एक ही है। हमारे पास कितने ग्रंथ हैं, जिनसे ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। आदमी मनन भी करे। ज्ञान के प्रति हमारा जितना समर्पण का भाव होगा तो ज्ञान भी ज्यादा हमारे भीतर में फैल सकेगा और स्पष्ट हो सकेगा। अवस्था में जो छोटे हैं, वो इस ओर विशेष ध्यान दें। स्वयं के पास ज्ञान है, तो अच्छा काम हो सकता है।
तत्त्व ज्ञान और इतिहास की दृष्टि से ज्ञान का अध्ययन किया जा सकता है। संस्कृत-व्याकरण, हिंदी-अंग्रेजी का भी अच्छा ज्ञान हो। प्रारंभिक समय है, उसमें ज्ञान बढ़ाना चाहिए। जैविभा से कितने कोर्स चलते हैं। ज्ञान से बौद्धिकता, तार्किकता आदि योग्यताएँ बढ़ सकती हैं। ज्ञान से आदमी की चिंतन की क्षमता बढ़ जाती है। अध्यात्म की दृष्टि से चेतना जागरूक बन जाती है।
हम आत्मा और अध्यात्म के बारे में जानने का प्रयास कर सकते हैं। शरीर को भी भाड़ा चाहिए, इसलिए भोजन लेना होता है। भोजन में विवेक की बात वह शास्त्रकार ने बताई है कि खाना भी अपेक्षित है। पर ज्यों-ज्यों उम्र बढ़े भोजन में संयम करना चाहिए। ये साधना और स्वास्थ्य दोनों की दृष्टि से ठीक है।
तपस्या भी आत्मा के लिए ठीक है और शरीर
के लिए भी ठीक है, विषय का सेवन और वर्जन इन दोनों का विवेक के साथ उपयोग होता रहे तो
वह स्वास्थ्य और साधना की दृष्टि से अनुकूलता की बात हो सकती है।
पूज्यप्रवर ने चतुर्दशी के उपलक्ष्य में मर्यादावली का वाचन किया। आचार साधु की बहुत बड़ी संपत्ति है। जिसमें एक नंबर धनवान का धन भी इसके सामने फीका है। आचार-संपदा हमारी सुरक्षित रहे और इसे और ज्यादा बढ़ाने का प्रयास करें। मूल के साथ ब्याज भी बढ़ता रहे। जितना शुभ योग में रहेंगे वह ब्याज है। तेरह नियम हमारी एफ0डी0 है, मूल है। दोष लगे तो प्रायश्चित लेकर इसका निर्वहन कर लें। चारित्र निर्मल रहे।
प्रतिलेखन भी हमारी अहिंसा का एक तत्त्व है। लेते व रखते समय पूरा ध्यान रखो। ईर्या समिति का ध्यान रखो। चलते समय साधु बात न करे। सिद्धांत और व्यवस्थाओं को समझाया। मर्यादाओं को विस्तार से समझाया। नव दीक्षित साध्वियों ने लेख पत्र का वाचन किया। पूज्यप्रवर ने 21-21 कल्याणक बख्शीष करवाए।
शासनश्री साध्वी गुणश्री जी की स्मृति सभा
पूज्यप्रवर ने साध्वीश्री जी का संक्षिप्त परिचय बताया। साध्वी गुणश्री जी गुरुदेव तुलसी के हाथों हिसार में दीक्षित हुई थी। उन्होंने सेवाएँ भी की हैं। 5 अगस्त को मध्याह्न बीदासर में कालधर्म को प्राप्त हो गई। हम उनकी आत्मा के प्रति मध्यस्थ भावना से मंगलभावना करते हैं, उनकी आत्मा मोक्ष की ओर अग्रसर हो। उनकी स्मृति में चार लोगस्स का ध्यान करवाया।
साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने भी साध्वी गुणश्री जी के बारे में कहा कि वे साधु-साध्वियाँ धन्य होते हैं जो बढ़ते-चढ़ते परिणामों के साथ संयम स्वीकार करते हैं और संयम की आराधना करते हुए, जागरूक अवस्था में वर्धमान परिणामों के साथ अपनी संयम-यात्रा संपन्न कर लेते हैं।
मुख्य मुनिप्रवर ने साध्वी गुणश्री जी के बारे में बताते हुए कहा कि संघ साधक के लिए शरण है। उसकी साधना का आधार है। साध्वी गुणश्री जी 17 वर्ष की अवस्था में ही धर्मसंघ में दीक्षित हो गई। उनमें लिपि कला का विशेष विकास था। मैं उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना व्यक्त करता हूँ।
साध्वी शुभप्रभा जी ने बताया कि साध्वी गुणश्री जी हमारे गण की गौरव थी। शासन गौरव साध्वी कल्पलता जी ने बताया कि समाधी केंद्र में लंबे काल तक रहने वाली साध्वी थी। साध्वी कार्तिकयशा जी द्वारा आए संवाद का वाचन किया। साध्वी संवरयशा जी ने बताया कि उन्होंने मुझे संयम मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि साध्वी गुणश्री जी की उनकी आत्मा मंजिल पहुँचने तक विकासशील बनी रहे और शीघ्र मंजिल का वरण करे, मंगलकामना। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
मुख्य नियोजिका जी ने मनुष्यों के भेदों के बारे में विस्तार से समझाया। जीवों के भेद-प्रभेदों के बारे में समझाया।
साध्वी सुषमाश्री जी ने 3 सितंबर से शुरू होने वाले नवरंगी तप जो जानकारी दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।