गृहस्थ भी जीवन में रखे नैतिकता: आचार्यश्री महाश्रमण
फलसूंडवासियों पर बरसी गुरुकृपा, एक दिवस पूर्व युगप्रधान का पदार्पण
मानसर, 17 जनवरी, 2023
मंगलवार का दिन फलसूंडवासियों के लिए मंगल ही मंगल लेकर आया। एकादशम आचार्यश्री महाश्रमण जी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 18 तारीख को फलसूंड पदार्पण संभावित था परंतु फलसूंडवासियों के भक्ति भाव भरे निवेदन पर एक दिन पूर्व ही मुख्य मुनि महावीर कुमार जी के पैतृक गाँव आचार्यप्रवर फलसूंड पधारे। आचार्यप्रवर ने रात्रि प्रवास मुख्य मुनिश्री के संसारपक्षीय पिताजी सवाईचंदजी कोचर के निवास पर किया। भारतीय ऋषि परंपरा के महान संत आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः जाखल से लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर मानसर के राजकीय विद्यालय में पधारे। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में परम पावन ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन दर्शन में 18 पाप बताए गए हैं। प्राणातिपात, मृषावाद आदि अठारह पाप हैं।
इनमें तीसरा पाप है-अदत्तादान यानी अदत्त-आदान। जो वस्तु नहीं दी गई है, उसे ले लेना। हड़पने की भावना से दूसरों की चीज ले लेना, अदत्तादान है। यह चोरी है, पाप है। साधु के तो सर्व अदत्तादान विरमण महाव्रत होता है। गृहस्थ भी नैतिकता, ईमानदारी का प्रयत्न रखे। चोरी की भावना से लेना अदत्तादान की कोटि में आ सकता है। गृहस्थ में संयम का भाव आ जाता है, तो वे बहुत ऊँचे हो जाते हैं कुछ अंशों में साधु जैसे हो जाते हैं। संतों के प्रवचन देने से गृहस्थों के जीवन में परिष्कृत की भावना आ सकती है। साधु ज्ञान दे सकता है। दुःख में थोड़ी चित्त समाधि दे सकते हैं। मंत्र-जाप बता सकते हैं। अध्यात्म का दान या अध्यात्म रूप में साधु गृहस्थों की सेवा कर सकता है।
साधु के जो त्याग हैं, वो बड़ी बात हैं। वो त्यागी है, त्यागी को भिक्षा लेने का अधिकार है। गृहस्थ के लिए माँगना शर्म की बात हो सकती है। जो काम आम आदमी नहीं कर सकता वो साधु कर सकता है। माँगना भी परिषह है, यह एक प्रसंग से समझाया कि सफेद बाल सिर में आता है, वो दूत के समान है, अब आत्म-कल्याण में लगना चाहिए। साधु घर में आए और गृहस्थ दान देने से बचे तो वह अवांछनीय बात हो सकती है। गृहस्थ चोरी करता है, उसके दो कारण हो सकते हैं-एक अभाव और दूसरा संग्रह की भावना। चोरी करने की अपेक्षा तो माँगना ठीक है। चोरी करने से गृहस्थों को ज्यादा से ज्यादा बचने का प्रयास करना चाहिए।