साधना का मौलिक और आधारभूत तत्त्व है सम्यक्त्व: आचार्यश्री महाश्रमण
केसुंबला, 19 जनवरी, 2023
भव सागर तारक आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः फलसूंड से लगभग 16 किलोमीटर का विहार कर केसुंबला पधारे। केसुंबला मुनि ऋषि कुमार जी एवं मुनि रत्नेश कुमार जी के संसारपक्षीय परिवार वालों से संबंधित है। केसुंबला का भी धर्मसंघ में सीर है। युगप्रधान पूज्यप्रवर ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि सम्यक्त्व का बहुत महत्त्व है। सम्यक् दर्शन, सम्यक् दृष्टि, सम्यक्त्व। सम्यक्त्व संवर को एका मान लें, व्रत हो गया तो दुआ हो गया फिर अप्रमाद संवर आ गया तो तीया और लगा दो। फिर अकषाय संवर आ जाए तो चैका लगा दो। फिर अयोग संवर आ जाए तो पाँचा लगा दो। संवर की संख्या 12345 हो गई।
इन पाँच संवरों का कुल बारह हजार तीन सौ पैंतालीस होता है। एक कल्पना से समझने का प्रयास करें कि इस संख्या से एक को निकाल दें तो पीछे संख्या 2345 रहेगी। एक सम्यक्त्व चला गया तो बहुत बड़ा भाग चला गया। सम्यक्त्व का बहुत बड़ा महत्त्व है। सम्यक्त्व नहीं है, तो फिर न व्रत है, न चारित्र, न अप्रमाद, और न अकषाय-अयोग की बात है। एक मौलिक और आधारभूत तत्त्व सम्यक्त्व है। सम्यक्त्व के बिना सब ऊपर की चीजें हैं। सम्यक्त्व के बिना चारित्र मान्य नहीं है। अभव्य को सम्यक्त्व आ नहीं सकता और सम्यक्त्व के बिना मुक्ति नहीं। वही सत्य है, जो जिनों-वीतरागों, केवलियों ने प्रवेदित किया है। सत्य को मेरा समर्थ है। केवली कभी असत्य नहीं बोलते हैं।
आदमी का दृष्टिकोण सही रहे। यथार्थ पर रहे। दृष्टिकोण सही न होने से आस्था बल डोल सकता है। आस्था का इतना महत्त्व है कि आस्था के सहारे आदमी कठिनाइयों को झेलने को भी तैयार हो जाता है। यह एक प्रसंग से समझाया कि खाली समय में मनुष्य राम-राम बोलता है। एक बात से चिंतन बदल सकता है। चिंतन बदला तो दृष्टिकोण-आस्था ठीक हो सकती है। हमारे जीवन में कई बार एक वाक्य या एक घटना-प्रसंग ऐसा आता है कि जीवन की दिशा और दशा बदल जाती है, अच्छी हो जाती है। हमारा सम्यक्त्व अच्छा रहे। ज्ञान-प्रवचन कई बार आदमी के दृष्टिकोण को एक सही दिशा की ओर ले जाने वाले हो सकते हैं। जीवन की अनंत काल की यात्रा में सम्यक्त्व का बड़ा महत्त्व होता है। हमारा सम्यक्त्व सुरक्षित रहे, पुष्ट रहे और क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त हो, यह काम्य है।
आज फलसूंड से चलकर केसुंबला आना हुआ। केसुंबला श्रद्धा का क्षेत्र इकरंगा है। दो बाल मुनि यहाँ से हैं। मूल प्रवासित क्षेत्र व जन्मभूमि गीदम है। पूज्यप्रवर ने दोनों मुनियों को प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। केसुंबलावासियों को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति के संकल्प समझाकर स्वीकार करवाए। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि इस दुनिया में अनेक लोग ऐसे हो हैं, जो विद्वान हैं, जो योगी का जीवन जी रहे हैं। अनेक लोग ऐसे भी हो सकते हैं, जो गुणों के पुंज हैं, अपने आचार से भी अनेक लोग सुंदर हो सकते हैं। अनेक लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपने जीवन में प्रतिष्ठा अर्जित की है। पर वे लोग विरले होते हैं, जो परोपकार करने में अपनी शक्ति का नियोजन करते हैं।
मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने कहा कि जीवन में किसी महापुरुष की संगति का मिलना जीवन की एक अच्छी उपलब्धि एक अच्छा अवसर होता है। जो कंचनकामिनी के त्यागी सच्चे संत होते हैं उनका सान्निध्य मिले तो बड़े भाग्य की बात होती है। परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी एक महान भारतीय ऋषि परंपरा के संत हैं, जिनके भीतर अनुत्तर संयम की चेतना जागृत है। मुनि रत्नेश कुमार जी, मुनि ऋषिकुमार जी ने अपनी संसारपक्षीय पैतृक भूमि पर अपने आराध्य की भावों से अभिवंदना की। पूज्यप्रवर के स्वागत में प्रकाश बुरट, नरपतसिंह महेसा, मंगेखां ने गीत की प्रस्तुति दी। महिला मंडल, कन्या मंडल, ज्ञानशाला, किशोर मंडल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।