ना कुछ तेरा, ना कुछ मेरा, दुनिया रैन बसेरा: आचार्यश्राी महाश्रामण

गुरुवाणी/ केन्द्र

ना कुछ तेरा, ना कुछ मेरा, दुनिया रैन बसेरा: आचार्यश्राी महाश्रामण

बूगाँव, 11 फरवरी, 2023
ज्योतिपुंज आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः लगभग 10 किलोमीटर का विहार कर बूगाँव के राजकीय विद्यालय में पधारे। जन-जन का कल्याण करने वाले आचार्यप्रवर ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि मानव जाति एक है, यह एक बात है। नय की दृष्टि से विचार करें तो पूरा विश्व एक है, सारे प्राणी समान हैं।
संग्रह नय की दृष्टि से देखें तो एकता ही एकता दिखाई दे सकती है। एक संकीर्णता या उपयोगिता के आधार पर मेरे-तेरे का विचार हो सकता है। और असंकीर्णता की वृत्ति में सोचें तो पूरी धरती, पूरा विश्व हमारा परिवार है। पूरा विश्व एक परिवार है। व्यवहार नय से अनेकता, भेद-भेद देखा जा सकता है। सारांश इतना निकल सकता है कि मैत्री भाव रहे। मैत्री के संदर्भ में सब एक हैं।
ममत्व के आलोक में मेरा-तेरा की बात हो सकती है। परिग्रह की चेतना वाला आदमी सोचता हैµमेरा सो मेरा, तेरा सो भी मेरा। एक उदार दृष्टिकोण वाला कहता हैµतेरा सो तेरा और मेरा सो भी तेरा। एक साधु पुरुष जो अध्यात्म के आलोक में सोचता है, निश्चय नय में सोचता हैµना कुछ तेरा, ना कुछ मेरा, दुनिया रैन बसेरा।
मैत्री के संबंध में एकता की बात भी हो सकती है और कहीं उपयोगिता के आधार पर यह भिन्नता या अनेकता भी हो सकती है। अनेक संदर्भों में एकता-अनेकता को समझा जा सकता है। कौन ऊँचा, कौन नीचा यह विवेचन का विषय हो सकता है, पर घृणा-नफरत के संदर्भ में ऊँचे-नीचे के आधार पर घृणा को प्रश्रय नहीं मिलना चाहिए।
दुनिया में इतने धर्म-संप्रदाय, पंथ हैं, अब उनमें देखें तो भेद भी है और अभेद भी है। अनेक दर्शन-संप्रदाय हैं। भेद हैं, तो लड़ाई-झगड़े का कारण न बनें। जो जैसा है, वैसा मान लेना यथार्थ है। हमारे में पूरा ज्ञान तो है नहीं। अज्ञानता है, इसलिए मिथ्यात्व है। यह भी कहना कठिन है। दृष्टिकोण सही रहे। अगर हमारा सम्यक् दृष्टिकोण है, तो आदमी की गति सही दिशा में हो सकती है।
बाह्य दृष्टि का भी महत्त्व है। दृष्टि खुलने से कुछ काम अपने आप हो सकते हैं। भीतर की कोई आँख खोल दे तो बहुत बड़ी बात हो सकती है। ज्ञानी पुरुष सम्यक् दृष्टिकोण बनाने का कार्य करते हैं। वे आत्मकल्याण की दृष्टि से बहुत बड़ा उपकार का कार्य करते हैं। अध्यात्म ज्ञान के अधिकृत प्रवक्ता तीर्थंकर होते हैं। उनसे बड़ा ज्ञानी दुनिया में मिलना मुश्किल है। वे तो वीतराग-आप्त पुरुष होते हैं, उनकी वाणी यथार्थ होती है।
नशा आदमी के लिए हानिकारक हो सकता है। नशे से चित्त भ्रांत हो जाता है, आदमी पाप कर दुर्गति में चला जाता है। आदमी दुर्व्यसनों से बचे। अच्छे मार्ग पर चले। पूज्यप्रवर ने सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति के संकल्पों को समझाकर स्वीकार करवाया।
पूज्यप्रवर के स्वागत में स्कूल के प्राचार्य रवींद्र कुमार, जसंवतपुरा के एसबीएम राजेंद्र सिंह चांडावत ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। व्यवस्था समिति द्वारा विद्यालय परिवार एवं एसडीएम का सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।