अर्हम्

अर्हम्

अर्हम्

जय हे जय शासनमाता।
समता, ममता, क्षमता की मूरत चार तीर्थ की त्राता।।

गुरुवर तुलसी हाथों से दीक्षित शिक्षित और परीक्षित,
गुरुवर की दैविक नजरों में चट साध्वीप्रमुखा चयनित,
तुलसी युग की अरुणिम आभा गाएँ गौरव गाथा।।

गुरुदृष्टि सदा सुससृष्टि समझ हरपल उसको आराधा,
गुरुआज्ञा मंत्र अनूठा सद्यावेद्य मानकर साधा,
विनय, समर्पण, सेवा, संयम की संस्कार प्रदाता।।

अनुशासनप्रियता, कार्यकुशलता, चिंतन की गहराई,
बौद्धिकता, चारित्रिक, निर्मलता, अनासक्ति वरदायी,
अप्रमत्त जीवनशैली चेहरा हर पल मुस्काता।।

लेखक शिक्षक संपदा चिंतक प्रवचनकार प्रवक्ता,
काव्य कला निष्णात लेखनी में देखी गतिमयता,
मानो लक्ष्मी सरस्वती से जोड़ा गहरा नाता।।

साध्वी समाज महिला समाज युग-युग होगा आभारी,
श्रम की बूँदों से सींच सींच विकसित की है फुलवारी,
जो आता उलझन लेकर वह समाधान पा जाता।।

कितनों को हस्तालंबन देकर तुमने पथ दिखलाया,
कितनों की अंधियारी रातों में तुमने दीप जलाया,
वत्सलता का दरिया अविरल नयनों में लहराता।।

सदियों तक गूंज रहेगी कनकप्रभा व्यक्तित्व निराला,
स्वर्ण काल वह अर्धसदी का बाँटेगा उजियाला,
¬ हृीं श्रीं क्लीं शासनमात्रे नमः जाप सुखदाता।।

मार्च महीने की छः तारीख बनी आज इतिहासी,
तृप्त किया उन आँखों को जो गुरुदर्शन की प्यासी,
उग्रविहारी प्रभुवर की जन-जन बलिहारी जाता।
ज्योतिचरण जय महाश्रमण की चिहुं दिशि में यशगाथा।।

आजीवन गुरुकुलवास और गुरुदिलवासी बन रहना,
एक तान से एक ध्यान से गुरु इंगित में बहना,
ऐसा दुर्लभ अवसर कोई भाग्यवान ही पाता।
वात्सल्यपीठ वातायन वत्सलता का पाठ पढ़ाता।।

लय: जय हे-जय जीवनदाता---