रोगमुक्त बनने के लिए योग साधना अपेक्षित: आचार्यश्री महाश्रमण
इडर, 26 फरवरी, 2023
महासंकल्प बली आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर इडर पधारे। इडर के पाटीदार पटेल समाज के लोग भी तेरापंथ में आस्था रखते हैं। यहाँ पर जैन समाज के काफी परिवार हैं। पूज्यप्रवर का प्रवास श्यामनगर में राजेश खमेसरा के यहाँ हुआ। शांतिदूत ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि तीन शब्द हैंµयोग, रोग और भोग। हमारी दुनिया में प्राणी-मनुष्य होते हैं, उनके जीवन में पदार्थों का भोग भी चलता है। कई बार शरीर या मन में रोग भी पैदा हो जाता है। भावात्मक रोग भी हो जाते हैं।
प्रश्न उठता है कि इन मानसिक, शारीरिक या भावनात्मक रोगों से छुटकारा कैसे मिले? भोग की अत्यधिकता या आसक्तिपूर्ण भोग ये रोगों के कारण बनते हैं। रोगमुक्त बनना है तो उसके लिए योग की आराधना-साधना अपेक्षित है। योग साधना करना है तो भोग पर भी कंट्रोल करना अपेक्षित होता है। मोक्ष का जो उपाय है, वह योग है। वह सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन और सम्यग् चारित्र के रूप में है। आसन-प्राणायाम को भी योगायोग कहा जा सकता है। इसका अपना महत्त्व हो सकता है। जैन पद्धति में काम-क्लेश एक निर्जरा का प्रकार है। प्रेक्षाध्यान साधना में आसन-प्राणायाम, दीर्घश्वास ये चीजें हैं। पर योग बहुत विस्तृत चीज भी है।
धर्म की सारी की सारी साधना योग है। हमें मोक्ष से जोड़ने वाला धर्म का व्यापार-प्रवृत्तियाँ योग हैं। योग जोड़ने वाला तत्त्व है। पदार्थ के उपभोग और उपयोग में अंतर है। उपभोग आसक्ति के साथ होता है, उपयोग आवश्यकतानुसार होता है। उसमें आसक्ति नहीं है। साधु पदार्थों का उपयोग करे, उपभोग न करे। भोग समस्या-समर्थक हो सकता है। नशा करना बुरी आदत है। भोग क्या भोगें, भोगों ने हमें भोग लिया। काल क्या बीता, हम खुद बीत गए। तप नहीं तपा हम खुद संतप्त हो गए। तृष्णा-लालसा बुढ़ी नहीं हुई पर आदमी बुढ़ा हो गया। आदमी सर्व दुःख और रोग-मुक्त होता है तो आदमी योग की साधना करे, त्याग-संयम के पथ पर चले। राग के समान दुःख नहीं और त्याग के समान कोई सुख नहीं होता है।
जो आनंद गृहस्थों को नहीं मिलता है, हो सकता है, वो आनंद साधु के हो, कारण है कि साधु परिग्रहमुक्त है, त्याग है और राग से दूर है। गृहस्थ भी त्याग-संयम के पथ पर चले। गृहस्थ परिग्रह की सीमा करें। भोग-पदार्थों का संयम करें। हिंसा की सीमा करे। साधु तो सर्व हिंसा के त्यागी होते हैं। गृहस्थ अणुव्रत का मार्ग स्वीकार करे। छोटे-छोटे अच्छे नियम गृहस्थ के जीवन में आएँ तो जीवन अच्छा बन सकता है। साधु ने तो परम को पाने के लिए थोड़े से गृहस्थ जीवन को छोड़ा; पर गृहस्थ थोड़े से सुखों के लिए परम सुख को छोड़ देते हैं। हम परम पर ध्यान दें। दीर्घ को देखो, थोड़े को मत देखो। गृहस्थ के जैसे-जैसे उम्र बढ़े वह त्याग-संयम की दिशा में आगे बढ़े। सामाजिक-साधना करें। भोगों का संयम होगा तो रोगों से भी मुक्ति मिलने की स्थिति में आदमी आ सकता है। भोग पर अंकुश हो, योग की साधना हो तो रोग से मुक्ति मिल सकती है।
संसार में मनोरंजन भी चलता है, पर उससे ऊँचा आत्मरंजन है। राग-द्वेष की मुक्ति की साधना हो। आचार्यश्री ने फरमाया कि उत्तर गुजरात की अणुव्रत यात्रा के अंतर्गत आज इडर आना हुआ है। इडर के सभी समाज में खूब धार्मिक चेतना रहे। हमारा प्रवास राजेश खमेसरा के यहाँ हुआ है। इनके परिवार में भी धार्मिक गतिविधियाँ बनी रहें।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना-स्वागत में राजेश खमेसरा, भाविक खमेसरा, दिगंबर समाज से महावीर डोसी, स्थानकवासी समाज से बाबूलाल, मूर्तिपूजक समाज से अमरीश भाई, ऊमा बंगलोज से डाॅ0 पंकज भाई, सोनू-आरती, स्वीटी भानावत, नव्या-विहाना व कुसुम सुतरिया, विलेश्वर धाम शांति गिरि (बडौली), इडर नगर प्रमुख जयसी भाई तंवर, लक्ष्मीलाल झाबक ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। विमल बोरदिया ने अणुव्रत समिति की घोषणा की। महिला मंडल द्वारा गीत प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।