आत्मयुद्ध कर संसार सागर तरने का प्रयास करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आत्मयुद्ध कर संसार सागर तरने का प्रयास करें: आचार्यश्री महाश्रमण

खेड़ब्रह्मा, 23 फरवरी, 2023
भैक्षव शासन के एकादशम महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी 11 किलोमीटर विहार कर उत्तर गुजरात के खेड़ब्रह्मा नगर में दो दिवसीय प्रवास हेतु पधारे। मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए परम वंदनीय ने फरमाया कि हमारी दुनिया में शांति भी रहती है, शांति अभिष्ट भी है, हम सब शांति में रहें। परंतु युद्ध भी दुनिया में कभी-कभी हो जाता है। जिसमें कई लोग मर सकते हैं, संपत्ति का नुकसान हो सकता है। इतनी सब बातें होने पर भी अंत में समझौता होता है, युद्ध-विराम की बात होती है। यह सब बाहर का युद्ध है। जैन आगम आयारों में निःशस्त्रीकरण की बात भी सूक्ष्मता से बताई गई है। छोटे-छोटे प्राणियों की हिंसा से बचने का प्रयास करें। प्राणियों की हिंसा न करना निःशस्त्रीकरण की बात हो जाती है।
परंतु शास्त्रकार ने युद्ध करने की बात भी कही है। आत्मयुद्ध की बात कही है। अपने आप से लड़ो। अपने आपसे लड़ना अध्यात्म की बात होती है। बाहर के युद्ध से हिंसा की बात हो जाती है। हमारे पास युद्ध के साधन के रूप में शरीर और आत्मा ये दो तत्त्व हैं। असंख्य प्रदेश पिंड वाली द्रव्य आत्मा है। भाव आत्मा के रूप में कषाय आत्मा, उपयोग आदि सात आत्माएँ बताई गई हैं। हमें कषाय, अशुभ योग, मिथ्यादर्शन आदि असद् आत्माओं से लड़ना है। असद् से सद् की ओर बढ़ना, असद् का नाश करना, सद् का विकास करना आत्मयुद्ध है। लड़ने वाला भी ताकतवर होना चाहिए। मोहनीय कर्म हमारा शत्रु है। अनुप्रेक्षा, संकल्प-अभ्यास आदि शास्त्र हैं, इससे मोहनीय कर्म को जीता जा सकता है। प्रतिपक्ष भावना से पक्ष को जीतने का अभ्यास करना चाहिए।
ध्यान की साधना भी एक शस्त्र है। प्रेक्षाध्यान से आत्मा के विजातीय तत्त्वों को जीता जा सकता है। राग संसार का मार्ग है। हम राग-द्वेष को जीतें। आत्मयुद्ध में संसार समुद्र से तरने की बात है। एक प्रसंग से समझाया कि जो तैरना जानता है, वह भव-सागर से पार हो सकता है। यही अध्यात्म विद्या है। हमें मनुष्य जन्म मिला है। हम आत्मयुद्ध कर संसार सागर से तरने का प्रयास करें। यह काम्य है। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि मनुष्यों में चक्रवर्ती प्रधान श्रेष्ठ होता है। देवताओं में इंद्र, पशुओं में सिंह और व्रतों में उपशम को श्रेष्ठ माना गया है। पर्वतों में सुमेरू पर्वत और जन्मों में मनुष्य जन्म सबसे महत्त्वपूर्ण एवं श्रेष्ठ है। मनुष्य जन्म प्राप्त करना दुर्लभ है। हमें सौभाग्य से जैन धर्म, तेरापंथ धर्मसंघ और आचार्यश्री महाश्रमण जी जैसे गुरु प्राप्त हुए हैं, जो हमें भवसागर से पार करने का मार्ग बताते हैं।
पूज्यप्रवर के स्वागत में तेरापंथी सभा के अध्यक्ष सुरेश छाजेड़, सभा संरक्षक उपासक शंकरलाल पितलिया, खुशी चावत, हीर छाजेड़, अभिनंदन छाजेड़, प्रेक्षा पितलिया, अर्हम छाजेड़, विपिन पितलिया, तेरापंथ महिला मंडल से हिना, कन्या मंडल, स्थानकवासी समाज से विनोद सूर्या, मूर्तिपूजक समाज से जीतेंद्रभाई मेहता, दिगंबर समाज से परेशभाई मेहता राज्यसभा सांसद रमिला बेन बारां, हरिहर पाठक प्रेक्षाध्यान से नटुभाई पटेल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों ने कंठस्थ महाश्रमण अष्टकम व छः लेश्याओं पर लघु नाटिका की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी द्वारा किया गया।