मोहनीय कर्म पर विजय प्राप्त कर महावीर बन सकते हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मोहनीय कर्म पर विजय प्राप्त कर महावीर बन सकते हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

वडाली, 24 फरवरी, 2023
जंगम तीर्थ आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः खेड़ब्रह्मा से 12 किलोमीटर का विहार कर वडाली तीर्थ क्षेत्र में पधारे। तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि दुनिया में जय-पराजय की बात होती है। युद्ध होता है, कोई जीत जाता है, कोई हार जाता है। चुनाव में न्यायालय में भी ये जय-पराजय हो सकती है। ये हार और विजय की बात है। एक युद्ध में एक योद्धा शत्रु सेना के दस लाख योद्धाओं को जीत लेता है, वह जय है, विजय है, परंतु परम विजय नहीं है। परमजय पर शास्त्रकार ने कहा कि जो अपनी आत्मा को जीत लेता है, वह परम जय हो जाता है। स्वयं को जीतना परम जय की बात होती है।
खुद की आत्मा को जीतना कठिन कार्य होता है। जो आदमी कठिन कार्य करने वाला होता है, अच्छे संदर्भों में वह बड़ा होता है। यह एक प्रसंग से समझाया गया। कठिन काम करने का उत्साह होना विशेष बात होती है। सहन करना कठिन काम है। गाली देना, गुस्सा करना, झूठ बोलना सरल हो सकता है। हम चिंतन कर सकते हैं कि विजेता बनना चाहेंगे या परम विजेता बनना चाहेंगे। हम सब परम विजेता बनने के पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास करें। जो वीर पुरुष होते हैं, वे महान विधि पर समर्पित हो जाते हैं। एक मार्ग होता है, एक राजमार्ग होता है। हम राजमार्ग पर आगे बढ़ें। राजमार्ग पर सावधानी से चलें और संयम रखें।
हमारे जीवन का पथ राजपथ बने। अध्यात्म के मार्ग पर मोहनीय कर्म के प्रति जागरूकता होनी चाहिए। अपने मन को वश में करें। राग-द्वेषरूपी साम्राज्य को आत्मा से दूर कर आत्मा पर अपना साम्राज्य स्थापित करें। मन, वचन, शरीर और इंद्रियों को संयम कर लेने पर परम विजय पर गति हो सकती है। भगवान महावीर ने अनेक जन्मों में साधना की थी तब परम विजयी बने थे। मनुष्य जन्म हमें प्राप्त है। इस मनुष्य जन्म में हम परम विजय की साधना के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं। हमें जैन शासन अध्यात्म का मार्ग मिला है और आगे भी मिलता रहे भिक्षु शासन का साया मिलता रहे। चोट करने का मूल केंद्र मोहनीय कर्म है। इसका ज्ञान हो। हम तभी परम विजयी बन सकते हैं। मोहनीय कर्म को जीतने से ही परम जय की बात हो सकती है। हम भी महावीर बनने की दिशा में आगे बढ़ें। हम भी परमजयी बन जाएँ।
आज यहाँ तीर्थ में आए हैं। साधु, साध्वी, श्रावक-श्राविका भी चलता तीर्थ हैं। पूज्यप्रवर के स्वागत में वडाली तीर्थ ट्रस्ट से राजेशभाई मेहता, प्रवक्ता उपासक अशोकभाई उपासक शंकरलाल पितलिया, अंश छाजेड़, पुष्प छाजेड़, छाजेड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। छाजेड़ परिवार की बहनों एवं ज्ञानशाला के बच्चों ने गीत प्रस्तुत। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।