संबोधि

स्वाध्याय

संबोधि

बंध-मोक्षवाद

मिथ्या-सम्यग्-ज्ञान-मीमांसा
भगवान् प्राह

(34) स्वयं बुद्धा भवन्त्येके, केचित् स्युर्बुद्धबोधिताः।
केचित् प्रत्येकबुद्धाः स्युः, बोधिर्नानायना भवेत्।।
संसार का अंत करने वालों में कुछ जीव ‘स्वयंबुद्ध’ होते हैं, कुछ ‘बुद्धबोधित’ होते हैं और कुछ ‘प्रत्येक-बुद्ध’ होते हैं। इस प्रकार बोधि की प्राप्ति के अनेक मार्ग हैं।

बोधि का अर्थ है रत्नत्रयीµसम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चारित्र। इन तीनों का योग संसार का अंत करने वाला है। सम्यग् दर्शन सबका मूल है। बोधि-प्राप्ति सहज नहीं है। वह कुछ व्यक्तियों को बिना उपदेष्टा के प्राप्त हो जाती है। वे ‘स्वयंबुद्ध’ कहलाते हैं। सभी तीर्थंकर स्वयंबुद्ध होते हैं। यह पूर्व कर्म की अल्पता पर और वर्तमान की महान् तपस्या पर आधारित है।
कर्म-क्षय के बिना आत्मा की शुद्धि नहीं होती। अशुद्ध आत्मा में धर्म (बोधि) का अंकुर फूटता नहीं। दूसरी श्रेणी में वे व्यक्ति आते हैं जो किसी उपदेष्टा के द्वारा धर्म को स्वीकार करते हैं। स्वयंबुद्ध कम होते हैं, अधिकांश व्यक्ति उपदेश से सत्य-मार्ग प्राप्त करते हैं। सत्यासत्य का निर्णय करने में वे स्वतंत्र होते हैं। उपदेशक उन्हें तत्त्व-दर्शन देते हैं। तत्त्व-ज्ञान को पाकर वे मुक्ति की ओर अपने आप ही प्रेरित होते हैं और दुःखों का अंत करते हैं। वे बुद्ध-बोधित होते हैं।
तीसरी श्रेणी के व्यक्तियों को बोधि के लिए बाहरी निमित्त मिलता है। वे कोई एक विशिष्ट घटना से प्रतिबुद्ध हो जाते हैं। वे ‘प्रत्येक बुद्ध’ कहलाते हैं। मिट्टी कुंभकार, चाक आदि निमित्त को पाकर घड़े आदि प्रकारों में रूपांतरित हो जाती है, इसी प्रकार अंतश्चेतना बाहरी कारणों से प्रबुद्ध हो जाती है। वे हैं निमित्त, न कि उपादान। निमित्त का कोई अस्तित्व नहीं रहता। महात्मा बुद्ध रोगी, वृद्ध और शव का योग पाकर संसार से विरक्त बन गए। महाराज भर्तृहरि अमरफल को देख संसार से उद्विग्न हो गए। जैन आगमों में ऐसी कई घटनाएँ हैं। भरत चक्रवर्ती शरीर-प्रेक्षा करते-करते अनित्य-भाव में लीन हो गए। नमि राजर्षिµ‘एक चूड़ी का शब्द नहीं होता, अनेक होती हैं तब होता है’, यह सोच एकत्व-भावना में लीन हो गए। ‘जो वृक्ष प्रातः फूल और पत्तों से सुशोभित था, वही अब असुंदर-सा प्रतीत होता है। जीवन का भी यही क्रम है। पहले सरस लगता है और बाद में नीरस-µइसी भावना से नग्नति नृप बोधि को प्राप्त हो गए। ये घटनाएँ प्रत्येक-बुद्धत्व की हैं। (क्रमशः)