मंत्री मुनि सुमेरमल ‘लाडनूं’

स्वाध्याय

मंत्री मुनि सुमेरमल ‘लाडनूं’

धर्म बोध
भाव धर्म

प्रश्न 10 ः भावना और अनुप्रेक्षा में क्या अंतर है?
उत्तर ः मन की मूच्र्छा को तोड़ने वाले विषयों का अनुचिंतन करना अनुप्रेक्षा है। जिस विषय का अनुचिंतन बार-बार किया जाता है या जिस प्रवृत्ति का बार-बार अभ्यास किया जाता है, उससे मन प्रभावित हो जाता है, इसलिए उस चिंतन या अभ्यास को भावना कहा जाता है।

प्रश्न 11 ः भावना के कितने प्रकार हैं?
उत्तर ः भावना के बारह प्रकार हैंµ(1) अनित्य, (2) अशरण, (3) भव, (4) एकत्व, (5) अन्यत्व, (6) अशौच, (7) आश्रव, (8) संवर, (9) निर्जरा, (10) धर्म, (11) लोक-संस्थान, (12) बोधि दुर्लभता।
भावना के चार प्रकार भी मिलते हैंµ
(1) मैत्री, (2) प्रमोद, (3) करुणा, (4) मध्यस्थता।

प्रश्न 12 ः आत्मा के अवस्थारूप भाव के कितने प्रकार हैं?
उत्तर ः भाव के पाँच प्रकार हैंµ
(1) औदयिक µ कर्मों के उदय से होने वाली आत्मा की अवस्था।
(2) औपशमिक µ मोहकर्म के उपशम से होने वाली आत्मा की अवस्था।
(3) क्षायिक µ कर्मों के क्षय से होने वाली आत्मा की अवस्था।
(4) क्षायोपशमिक µ घातिकर्मों के क्षयोपशम से होने वाली आत्मा की अवस्था।
(5) पारिणामिक µ परिणमन से होने वाली आत्मा की अवस्था।

प्रश्न 13 ः पाँच ही भावों का कितने कर्मों से संबंध है?
उत्तर ः उदय, क्षय व परिणमन आठ ही कर्मों का होता है। उपशम केवल मोहकर्म का होता है। क्षयोपशम चार घातिकर्मोंµज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अंतराय का होता है।

प्रश्न 14 ः पाँच भाव जीव हैं या अजीव?
उत्तर ः पाँच भाव जीव, अजीव दोनों हैं। आत्मा की अवस्था विशेष का नाम ही भाव है, अतः जीव है। जिन-जिन कर्म प्रकृतियों के उदय उपशम आदि से आत्मा की अवस्था परिवर्तित होती रहती है, उन-उन कर्म वर्गणाओं की दृष्टि से पाँचों भाव अजीव भी हैं। जैसेµज्ञानावरणीय कर्म का उदय अजीव व उसका उदय निष्पन्न जीव हैं। उदय निष्पन्न के दो प्रकार हैंµ(1) जीवोदय निष्पन्न, (2) अजीवोदय निष्पन्न।


(क्रमशः)