जितना शांत होंगे उतना जीवन में आनंद आएगा
चंडीगढ़।
जितना शांत अपने को कर पाएँगे उतना ही आपके जीवन में आनंद आएगा। उल्लास से भरपूर होने के लिए आपकी सुबह अच्छी होनी चाहिए और इसके लिए आपकी शाम का अच्छा होना बहुत जरूरी है। सुख-दुःख, लाभ-हानि, हारना-जीतना भी स्वाभाविक है। यह तो आता-जाता रहेगा। जब आप ऐसा स्वभाव बनाकर सोचेंगे, समझेंगे, जिएँगे, तब आप आनंदमय जीवन अवश्य जिएँगे। ये विचार मनीषी मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने अणुव्रत भवन, तुलसी सभागर में व्यक्त किए। मनीषी संत ने आगे कहा कि इंसान सोचता है कि वह ऊँचाइयों के शिखर को चूमे बिना संघर्ष कर बैठे-बिठाए मुझे हर वस्तु मिल जाए कोई संघर्ष और कर्म ना करना पड़े पर ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि यह संसार कर्मभूमि है, जो जैसा बोता है वैसा ही काटता है। मुनिश्री ने अंत में कहा कि अगर किसी को सेवा में आनंद न मिले तो इसका मतलब यह नहीं कि सेवा में आनंद नहीं है, बल्कि इसका सीधा-सा अर्थ है कि आपकी सेवा में कहीं कमी है, मन के किसी कोने में स्वार्थ है सेवा के भाव में कमी है निष्ठा में कमी है, आप अपनी सेवा के बदले में सम्मान चाहते, इसलिए आनंद का अनुभव आपको नहीं हो पा रहा है।