परंपरा से ऊपर परमार्थ होता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

परंपरा से ऊपर परमार्थ होता है: आचार्यश्री महाश्रमण

प्रेक्षा विश्व भारती में जैन दीक्षा समारोह का भव्य आयोजन
मुमुक्षु राहत बनी साध्वीश्री राहतप्रभा

प्रेक्षा विश्व भारती, कोबा, गांधीनगर, 10 मार्च, 2023
संयम प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी द्वारा सन् 2023 की प्रथम जैन भागवती दीक्षा का समारोह और वो भी मूर्तिपूजक श्वेतांबर परिवार से तेरापंथ की दीक्षा का आयोजन। मुमुक्षु राहत ललवानी जो लगभग ढाई वर्ष पूर्व पारमार्थिक शिक्षण संस्था में आई थी। परम पावन की असीम अनुकंपा से प्रेक्षा विश्व भारती में उनकी दीक्षा होने जा रही है।
संयम के सुमेरु आचार्यश्री महाश्रमण ने फरमाया कि त्याग का बड़ा महत्त्व है। राग से दुःख उत्पन्न होता है और त्याग से सुख प्राप्त होता है। दुनिया में जितना भी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक दुःख होता है, उसके पीछे राग होता है। राग न हो तो दुःख को पैदा होने का मौका ही नहीं मिलता है।
राग दुखों का मूल है, जो वीतराग बन जाता है, वह दुखों का अंत प्राप्त कर लेता है। राग को जीतने का एक उपाय है-त्याग। दीक्षा त्याग स्वीकार करना है। दीक्षा व्रतों का संग्रह है। भौतिकता के युग में त्याग स्वीकार करना बड़ी बात होती है। छोटी उम्र में संयम ग्रहण करना विशेष बात हो सकती है। महासती गुलाबांजी तेरापंथ धर्मसंघ में सबसे कम उम्र में दीक्षा लेने वाली थी। तेरापंथ का कीर्तिमान है कि वह 8 वर्ष से भी कम उम्र में दीक्षित हो गई थीं। हमारे धर्मसंघ में 10 वर्ष से भी कम उम्र के दीक्षित, शिक्षित और विकसित हुए हैं। मुमुक्षु प्राप्त होना अपने आपमें एक विशेष बात हो जाती है। तीनों अवस्थाओं में दीक्षा हो सकती है। आज मुमुक्षु राहत की दीक्षा होने जा रही है।
दीक्षा संस्कार से पूर्व आचार्यप्रवर ने पारिवारिकजनों से लिखित व मौखिक आज्ञा की स्वीकृति ली। मूर्तिपूजक परिवार से ये तेरापंथ में दीक्षा हो रही है। परंपरा से ऊपर परमार्थ होता है। ‘णमोत्थुणं समणस्स भगवो महावीरस्स’ की स्मृति से भगवान महावीर, परम पावन आचार्य भिक्षु एवं उनकी उत्तरवर्ती परंपरा को याद करते हुए पूज्य गुरुदेव तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की स्मृति की। दीक्षार्थिनी मुमुक्षु से सहमति ली। नमस्कार महामंत्र आर्ष वाणी से दीक्षा संस्कार कराते हुए सामायिक पाठ से मुमुक्षु राहत को यावज्जीवन के लिए तीन करण, तीन योग से सर्व सावद्य प्रवृत्ति का त्याग कराते हुए सामायिक चारित्र ग्रहण करवाया। नवदीक्षित ने पूज्यप्रवर की तीन बार वंदना की।
पूज्यप्रवर ने आर्ष वाणी से अतीत की आलोचना करवाई। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने नवदीक्षित साध्वी का केश लुंचन किया। ज्ञान केंद्र के बाल चोटी के हैं। शिष्य की चोटी गुरु के हाथ में आ जाती है। ज्ञान बढ़े और आचार की विशुद्धता बढ़े। पूज्यप्रवर ने आर्ष वाणी से आशीर्वाद फरमाया और साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने नवदीक्षिता को रजोहरण प्रदान करवाया। पूज्यप्रवर ने नामकरण संस्कार करते हुए मुमुक्षु राहत का नया नाम साध्वी राहतप्रभा रखा। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आहत को राहत देने वाली बनो। इसके साथ ही पूज्यप्रवर ने शिक्षण के रूप में प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। श्रावक समाज ने नवदीक्षित साध्वी को वंदना की। प्रेक्षाध्यान का प्रयोग सभी को करवाया गया।
हम त्याग-संयम को बढ़ाने का प्रयास करें ताकि आत्मकल्याण हो सके। आध्यात्मिक भीतरी आनंद की प्राप्ति हो सके। कल अनेक साधु-साध्वियों से कई बार मिलना हुआ। मुनि मदन कुमार जी, मुनि सिद्धार्थ कुमार जी एवं साध्वी रतनश्री जी की सहवर्ती साध्वियाँ, साध्वी सरस्वती जी, साध्वी मंजुयशा जी, साध्वी अर्हतप्रभा जी, साध्वी कीर्तिलता जी, साध्वी सोमयशा जी एवं साध्वी कार्तिकयशा जी आदि से मिलना हुआ। पूज्यप्रवर ने फरमाया सब साधु-साध्वियाँ खूब आनंद में रहें। तेरापंथ की दीक्षा समर्पण की दीक्षा: साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा दीक्षा संस्कार से पूर्व साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि दही, शहद, दाख और चीनी मधुर होते हैं, पर जहाँ मन लग जाता है, वही मीठा लगने लग जाता है। वर्तमान में आकर्षण के अनेक साधन हैं। पर मुमुक्षु राहत इन आकर्षणों से मुक्त हो दीक्षा ग्रहण करने जा रही हैं। संयम और अध्यात्म के प्रति इसका आकर्षण है। अध्यात्म की संपदा पारस पत्थर से भी अधिक मूल्यवान है। अध्यात्म का प्रवेश द्वार है-दीक्षा। व्रत सुरक्षारूपी छत है। दीक्षा ग्रहण करने वाला मोक्ष की ओर अग्रसर हो जाता है यानि प्रस्थान करता है। तेरापंथ की दीक्षा समर्पण की दीक्षा है।
दीक्षा संस्कार से पूर्व मुमुक्षु रक्षा ने मुमुक्षु राहत का परिचय करवाया। पारमार्थिक शिक्षण संस्था से धनराज भंसाली ने लिखित आज्ञा पत्र का वाचन किया। पारिवारिकजनों ने आज्ञा पत्र श्रीचरणों में अर्पित किया। मुमुक्षु राहत ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। मुनि मदन कुमार जी, मुनि सिद्धार्थकुमार जी, साध्वी सरस्वती जी आदि साध्वियों ने अपनी भावना पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में अर्पित की। महाप्रज्ञ विद्या निकेतन के विद्यार्थियों ने गीत से पूज्यप्रवर की अभिवंदना की। योग के प्रयोग किए। तेरापंथ महिला मंडल ने गीत की प्रस्तुति दी। पूज्यप्रवर ने प्रेक्षाध्यान शिविर के शिविरार्थियों को उपसंपदा ग्रहण करवाई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।