साध्वी ज्ञानप्रभाजी (सरदारशहर) का देवलोकगमन
सुजानगढ़।
साध्वी ज्ञानप्रभा जी का जन्म सरदारशहर के सेठिया गोत्र में संवत् 1998 माघ कृष्णा-4 को हुआ। (सा0वि0 में भाद्रव महीना है) उनका मूल नाम गट्टूकुमारी था। पिता का नाम आसकरण और माता का नाम भंवरी देवी था।
वैराग्य एवं दीक्षा: वैराग्य उत्पत्ति के बाद गट्टू कुमारी ने पा0शि0 संस्था में लगभग चार वर्ष रहकर शिक्षा एवं साधना का अभ्यास किया। फिर साधिक 17 वर्ष की अविवाहित वय में संवत् 2017 आषाढ़ शुक्ला-15 को आचार्य तुलसी द्वारा केलवा में दीक्षा ग्रहण की। उस दिन कुल 13 दीक्षाएँ हुईं।
सान्निध्य: दीक्षित होने के बाद 33 वर्षों तक साध्वी मालूजी (चूरू) के सिंघाड़े में रही। संवत् 2052 में उनके दिवंगत होने के बाद आचार्यप्रवर ने साध्वी सुप्रभाजी (श्रीडूंगरगढ़) का सिंघाड़ा बनाया। तब से अब तक वे उनके साथ है। दोनों सिंघाड़ों के साथ लगभग 27 वर्ष गुरुदेव की सेवा में रहने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। लगभग 60 वर्ष तक उन्हें एक ही सिंघाड़े में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
शिक्षा: दसवैकालिक सूत्र व थोकड़े आदि कंठस्थ, कुछ आगम व ग्रंथों का वाचन किया।
कला: सिलाई, रंगाई आदि।
तपस्या: उपवास, बेला, तेला आदि। आयंबिल, एकाशन।
साधना: प्रतिदिन प्रायः 300 गाथाओं के स्वाध्याय का क्रम, एक वर्ष में दो, तीन लाख का जप चलता है।
चाकरी बक्शीष: वि0सं0 2004 सिरियारी चातुर्मास में आचार्य महाप्रज्ञ जी द्वारा सेवाकेंद्र की चाकरी की बक्शीष की गई।
शासनश्री संबोधन: युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी के द्वारा सन् 2017 सिलीगुड़ी मर्यादा महोत्सव पर शासनश्री संबोधन से संबोधित किया गया।
वर्तमान में गुरुदेव के निर्देशानुसार सुजानगढ़ तेरापंथ भवन में विराजमान थे। अचानक हृदय गति रुकने के कारण दिनांक 26 फरवरी, 2023, सायं लगभग 4ः40 पर वे कालधर्म को प्राप्त हो गए।