शासनश्री साध्वी रमाकुमारी जी का देवलोकगमन

शासनश्री साध्वी रमाकुमारी जी का देवलोकगमन

हिसार।
शासनश्री साध्वी रमाकुमारी जी का जन्म राजस्थान के नोहर में हुआ। जवाहरमल और हुलासी देवी चोरड़िया को उनके मामा-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। साधु-साध्वियों की सेवा-उपासना में निरत परिवार की धार्मिक चर्या का प्रभाव आपके बाल मन पर प्रतिबिंबित हुआ। फलतः दस वर्ष की उम्र में ही वैराग्य भाव के अंकुर प्रस्फुटित हो गए। आपसे पूर्व चोरड़िया परिवार से साध्वी हीरांजी (बड़ी माँ), साध्वी भीखांजी, शासनश्री साध्वी जयश्री जी एवं मौन साधिका साध्वी राजकुमारी जी दीक्षित होकर तेरापंथ धर्मसंघ की अंतरंग परिषद की सदस्या बन चुके हैं।
पूज्य गुरुदेव की मंगल सन्निधि में उपस्थित होकर अपनी भावना प्रकट की। स्वीकृति मिलते ही शिक्षण-प्रशिक्षण और परीक्षण की प्रयोग स्थली पारमार्थिक शिक्षण संसथा में प्रविष्ट हुई। उन चार वर्षों में आपने संस्था के पाठ्यक्रम के अंतर्गत हिंदी, संस्कृत एवं प्राकृत भाषा का तलस्पर्शी अध्ययन किया। तत्पश्चात वि0सं0 2010 गंगाशहर में परमपूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के मुख्य कमल से संयम रत्न प्राप्त किया। गुरुदेव ने उन्हें साध्वी हीरांजी (बड़ी माँ) को वंदना करवाई। तीन वर्ष तक उनके सान्निध्य में रहीं। एक वर्ष तक उन्हें गुरुकुलवास में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। फिर संसारपक्षीय चारों बहनों को साध्वी विजयश्री जी (रतनगढ़) के पास अध्ययन हेतु रखा गया। दो वर्ष बाद साध्वी भीखांजी का सिंघाड़ा बनने से चारों बहनें साथ रहने
लगीं तथा वर्तमान में वे मौन साधिका, साध्वी राजकुमारी जी की निश्रा में साधनारत थी। प्रारंभ से ही उनकी बुद्धि कुशाग्र थी। कंठकला अच्छी थी। गीत गाती थी और बनाती थी। लिखने का तो मानो नशा-सा था। कुशल व्याख्यानदात्री थी। लोगों को समझाने में बहुत माहिर थी। मीठा बोलती थी। आगम अध्ययन एवं अन्य ग्रंथों का स्वाध्याय करती रहती थीं। शासनश्री साध्वी जयश्री जी एवं साध्वी रमाकुमारी जी ने मिलकर एक आयुर्वेद ग्रंथ का सृजन किया, जिसका नाम है-निरामया। तेरापंथ धर्मसंघ में इस तरह का साध्वियों के द्वारा सृजित यह पहला ग्रंथ है।
उन्होंने अपने साधनाकाल में पदयात्राएँ-पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जयपुर, उदयपुर, जोधपुर आदि क्षेत्रों की हजारों किलोमीटर की यात्राएँ की। जैन धर्म तेरापंथ, अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान का खूब प्रचार-प्रसार किया तथा अनेक लोगों को सुलभ बोधि, सम्यक्त्वी बारहव्रती, महाव्रती बनाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कंठस्थ ज्ञान के अंतर्गत तीन आगम-दसवेंकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग आदि तथा भक्तांमर, कल्याणक मंदिर, शांतसुधारस, जैन सिद्धांत दीपिका, षड्दर्शन समुच्चय आदि मुखस्थ किए। अग्नि परीक्षा आदि कई व्याख्यान भी उन्हें कंठस्थ थे। परमपूज्य आचार्यश्री तुलसी, परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ एवं परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी की वे कृपापात्र रहीं। महातपस्वी आचार्यप्रवर ने उन्हें ‘शासनश्री’ संबोधन से संबोधित किया। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की मासिक पुण्यतिथि के दिन उपसेवा केंद्र हिसार में 18 मार्च, 2023 को प्रातः लगभग 11 बजकर 5 मिनट पर शासनश्री साध्वी रमाकुमारी जी का देवलोकगमन हो गया।