अणुव्रत यात्रा: एक नई शुरुआत

अणुव्रत यात्रा: एक नई शुरुआत

अणुव्रत यात्रा पर विशेष
अणुव्रत यात्रा: एक नई शुरुआत

1785-1755 में फ्रांस में क्रांति हुई। उसका उद्देश्य था-मानव और मानवता का विकास हो। उस क्रांति का मकसद था स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना जन-जन में जागृत हो। इस क्रांति से वहाँ के लोगों को कितना लाभ मिला अथवा कितनी संतुष्टि मिली, यह एक चिंतन का अलग मुद्दा है, किंतु आज भी फ्रांस की जनता के कर्णकुहरों में वह घोष अनुगुंजित हो रहा है। परमपूज्य आचार्य महाश्रमण जी ने अहिंसा यात्रा करने का निर्णय लिया। इस यात्रा को सफल और सार्थक बनाने हेतु सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति (Harmony, morality and de addiction) त्रि-सूत्रीय कार्यक्रम प्रस्तुत किया। आचार्यप्रवर नेपाल, भूटान तथा हिंदुस्तान के बीस प्रांतों में परिभ्रमण कर चुके हैं। जिस क्षेत्र में आपका पदार्पण होता, वहाँ की जनता इस सूत्रत्रयी को स्वीकार करने के लिए उद्यत रहती। इसके माध्यम से आचार्यप्रवर एक इंसान को अच्छा बनाने का बोध पाठ दे रहे थे।
वर्तमान परिस्थितियों में अहिंसा यात्रा की प्रासंगिकता को नकारा नहीं जा सकता। चारों ओर हिंसा बढ़ रही है। एक देश दूसरे देश के अस्तित्व को देखना नहीं चाहता। दूरियाँ बढ़ रही हैं, पारिवारिक रिश्ते चरमरा रहे हैं, नकारात्मक चिंतन द्रौपदी की चीर की भाँति वृद्धिंगत हो रहा है। ऐसी स्थिति में ‘सद्भावना ज्योति, को प्रज्वलित करें तो निःसंदेह नकारात्मक भावों के प्रभाव को कम किया जा सकता है। पूज्यप्रवर आचार्यप्रवर ने इस यात्रा में सद्भावना का दीप प्रज्वलन किया। आचार्यश्री अनेक बार अपने प्रवचनों में फरमाते-जाति, वर्ग, क्षेत्र और संप्रदाय को लेकर दंगा-फसाद न हो। कलह-लड़ाई, मारपीट न हो। हिंसा भड़के वैसा कार्य न हो। परस्पर सद्भावना हो, किसी के प्रति दुर्भावना न हो। कटुता और विद्वेष का भाव न हो। विभिन्न व्यक्तियों, वर्गों और समुदायों के अपने-अपने विचार हो सकते हैं, उन विचारों के प्रति उनका समर्पण भी हो सकता है। अपने सही विचारों को छोड़ने की जरूरत नहीं है, पर हमारी सद्भावना सबके प्रति रहे। समभाव रहे न रहे, सद्भाव सबके प्रति रहना चाहिए और मैं तो कहूँगा मानव मात्र के प्रति रहना चाहिए और इससे भी आगे कहूँ तो प्राणिमात्र के प्रति हमारे मन में सद्भावना रहनी चाहिए।
अहिंसा यात्रा में आचार्यप्रवर के सद्भावात्मक व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हर कौम (हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आदि) के लोग उनके पास आते और उनसे मार्गदर्शन भी प्राप्त करते थे। वर्तमान के वातावरण में अनैतिकता का स्वर बुलंद हो रहा है। व्यक्ति असत्य, संभाषण, चोरी और अनपेक्षित संग्रह करने में भी भयभीत नहीं होता। व्यापार में उचित-अनुचित की भेदरेखा को भुला देता है, एक-दूसरे को कुशलता से छल सकता है। अशुद्ध साधनों से धन के अर्जन में भी किसी प्रकार के संकोच की अनुभूति नहीं करता। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनके सामने कैसी भी स्थिति आए, वे अपने उसूलों के साथ समझौता नहीं करते। अहिंसा यात्रा में आचार्य महाश्रमण जी ने इंसानियत को सुरक्षित रखने के उपाय बताए। सन् 2014 में पूज्यपाद आचार्य महाश्रमणजी ने हरियाणा प्रवेश के प्रसंग पर फरमाया था-‘हरियाणा शराब से नहीं, धर्म से हरा-भरा रहे।’ आचार्यप्रवर की तीव्र अभीप्सा है कि हर व्यक्ति व्यसनमुक्त बने। अहिंसा यात्रा में लाखों-करोड़ों लोगों ने नशामुक्त जीवन जीने का संकल्प लिया है।
जो व्यक्ति नैतिकता के आदर्श को अपने सामने रखकर आगे बढ़ता है तो निश्चित रूप से वह चरित्रसंपन्न बन सकता है। वर्तमान में गुजरात की धरती पर कदम रखते हुए आचार्यप्रवर ने अणुव्रत के अभियान को अपना प्रमुख उद्देश्य बना लिया। अणुव्रत यात्रा के रूप में घोषित यह अणुव्रत आंदोलन का अमृत महोत्सव देश और दुनिया को सही इंसान देने का उपक्रम बन सकेगा, ऐसा विश्वास है।