कर्म फल का नियम सब पर लागू: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कर्म फल का नियम सब पर लागू: आचार्यश्री महाश्रमण

शाहीबाग-अहमदाबाद, 21 मार्च, 2023
अणुव्रत अमृत महोत्सव, के अंतर्गत मंगलवार को संयम दिवस पर अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन वाङ्मय में कर्मवाद का संदेश देने वाला श्लोक है, जिसमें कहा गया है कि जो किए हुए कर्म हैं, उनसे छुटकारा नहीं मिलता। जैन दर्शन के अनेक सिद्धांत हैं, उनमें आत्मवाद एक सिद्धांत है कि आत्मा अलग है, शरीर अलग है। आत्मा सभी प्राणियों और सिद्धों की शाश्वत है। अनंत काल से आत्माएँ थीं, हैं और रहेंगी। एक भी आत्मा न कम होगी और न ही बढ़ेगी। अनंत काल की यात्रा में अनंत समय बीत जाने पर भी एक भी आत्मा नई पैदा नहीं होगी। जबकि मनुष्यों में तो नैन्युन या आधिक्य हो सकता है। हर आत्मा के असंख्य प्रदेश होते हैं। प्रदेश भी न एक भी कम होता है या न ही एक भी बढ़ता है। आत्मवाद आस्तिकवाद का एक सिद्धांत है।
जैन दर्शन का दूसरा सिद्धांत है-कर्मवाद। वर्तमान में संसारी जीवों के आत्मा के साथ कर्म भी हैं। सिद्धों की आत्मा अकर्ण होती है। केवली की आत्मा के भी चार अघाती कर्म रहते हैं। कर्मवाद का छोटा-सा प्राणतत्त्व है-जैसी करणी, वैसी भरणी, दुःख-सुख स्वयं मिलेगा। कर्मवाद का सिद्धांत आदमी को गलत कार्य करने से रोकने में सहायक बन सकता है कि कृत कर्म का फल भोगना होगा। इसलिए पाप का काम न करूँ। कर्मवाद निष्पक्षता की पराकाष्ठा है। कर्म का फल नियम सबके लिए लागू होता है। कर्मवाद से कोई बच नहीं सकता। पाप कर्म से बचने के प्रति जागरूक रहें। अणुव्रत से तो पशु भी श्रावक बन सकता है। दूसरे का अहित हो जाए, ऐसा पाप न करें। सभी गृहस्थ एवं नास्तिक आदमी भी अणुव्रती बन सकते हैं।
आचार्य तुलसी ने मानव कल्याण के लिए अणुव्रत आंदोलन का अवदान दिया था। संयम दिवस पर जितना हो सके संयम करें। जीवन में बुरा काम करने से बचने का प्रयास करें, यह एक प्रसंग से समझाया कि मन में खराब भाव आने से आदमी खराब काम करने लग जाता है। आदमी पाप कर्मों से बचने का प्रयास करे, यह काम्य है। पूज्यप्रवर ने अहमदाबाद प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष गौतम बाफना के स्टॉफ के लोगों को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति के संकल्पों को समझाकर स्वीकार करवाए। पूज्यप्रवर ने देशना से पूर्व अणुव्रत गीत का सुमधुर संगान किया। गौतम बाफना ने संकल्प पत्र पूज्यप्रवर को उपहृत किए। पूज्यप्रवर ने मुनि सिद्धार्थ कुमार जी जो पहले समण श्रेणी में रह चुके हैं, वर्तमान में वर्षीतप साधना में अग्रसर हैं, को 13 की तपस्या के प्रत्याख्यान करवाकर आशीर्वचन फरमाया।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि अणुव्रत अमृत महोत्सव पूज्यप्रवर की सन्निधि में शुरू हो चुका है। वर्षभर मंगलवार के दिन को प्रायोगिक दिन बना दिया है। आज नैतिक मूल्यों और समता की बात की जाती है, पर आदमी चाहते हुए भी अधर्म से निवृत्त नहीं हो रहा है। मोहकर्म के कारण वह धर्म का कार्य नहीं कर पाता है। हम कहाँ हैं, किसके पास रह रहे हैं, चिंतन करें। अज्ञान, प्रमाद, ज्ञान का अहंकार और बुरी संगत से आदमी बुराई में चला जाता है। हम अपनी बुरी आदतों को श्रद्धा एवं दीर्घकालीन प्रयोग से दूर कर सकते हैं। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि सुख की प्राप्ति भौतिक जगत और आध्यात्मिक जगत दोनों में हो सकती है। भौतिक जगत में क्षणिक सुख है, तो आध्यात्मिक जगत में दीर्घकालीन सुख प्राप्त होता है। इसके लिए संयम की साधना करनी होगी। कषायों का शमन करना होगा। नशामुक्त जीवन जीने का प्रयास करें। ‘मन निर्मलता को प्राप्त करो, तुम्हें आनंद मिल जाएगा’ गीत का सुमधुर संगान किया। 
उपासक श्रेणी द्वारा सुमधुर गीत की प्रस्तुति हुई। अणुव्रत विश्व भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष अविनाश नाहर ने अणुव्रत पर अपनी भावना रखी। गौतम बाफना, चिकित्सा प्रभारी अशोक सेठिया, कोषाध्यक्ष नरेंद्र सुराणा, विजयराज संकलेचा ने अपनी भावना श्रीचरणों में अभिव्यक्त की। स्थानीय अणुव्रत समिति द्वारा गौतम बाफना का सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि जीवन में दुःख-सुख का कारण कर्म है। कर्म का कारण है-राग और द्वेष।