मनोनुशासनम्

स्वाध्याय

मनोनुशासनम्

आचार्य तुलसी
पद्मासन के विविध रूप
(1) बद्धपद्मासन
विधि-दायें पैर का बायें ऊरु और बायें पैर को दायें ऊरु पर रखिए। एड़ियों को नाभि के नीचे के भाग से सटा दीजिए। दोनों हाथों को पीछे ले जाकर दायें हाथ की मध्यवर्ती तीन अंगुलियों से दायें पैर का और बायें हाथ की मध्यवर्ती तीन अंगुलियों से बायें पैर का अंगूठा पकड़िए। पेट को थोड़ा-सा अंदर ले जाइए और सीने को कुछ आगे की ओर उभारिए। फिर दीर्घ श्वास लीजिए।
समय-शारीरिक शक्ति के अनुसार आधा घंटा तक इसका अभ्यास किया जा सकता है।
फल-(1) फेफड़ों की शुद्धि। (2) कटि के स्नायुओं की सशक्तता। (3) इसके साथ मूलबंध करने से वीर्य-दोषों की शुद्धि। (4) उदर रोगों का शमन।
(2) योगमुद्रा
विधि-दायें पैर को बायें ऊरु पर रखिए और एड़ी को नाभि से सटा दीजिए। बायें पैर को दायें ऊरु पर रखिए और एड़ी को नाभि से सटा दीजिए। फिर दायें हाथ को पीछे ले जाकर फैला दीजिए और बायें हाथ को पीछे ले जाकर उससे दायें हाथ की कलाई को पकड़िए। ओ झुककर ललाट से भूमि का स्पर्श कीजिए।
समय-एक मिनट से आधा घंटा तक।
फल-(1) कोष्ठबद्धता दूर होती है। (2) ब्रह्मचर्य में सहायक।
(3) सोड्डीयान पद्मासन
विधि-पद्मासन में बैठकर, श्वास का रेचन कर, बहिःकुंभक की स्थिति में उड्डीयान बंध कीजिए-पेट को भीतर ले जाइए और फिर फुलाइए। एक कुंभक में दस आवृत्तियाँ की जाएँ तो दस बार में उसकी सौ आवृत्तियाँ हो जाती हैं। इस क्रिया में नाभि जितनी पृष्ठ-रज्जु की ओर जा सके, उतनी ले जानी चाहिए।
फल-उदर रोगों पर आश्चर्यकारी प्रभाव।
(4) अर्धपद्मासन
विधि-बायें या दायें किसी एक पैर को पद्मासन की मुद्रा में रखने से अर्धपद्मासन हो जाता है।
समय-पद्मासन की तरह।
फल-पद्मासन की तरह।
(5) ऊर्ध्वपद्मासन
विधि-सर्वांगासन या शीर्षासन के साथ पद्मासन करने से ऊर्ध्व पद्मासन हो जाता है।
समय-अभ्यास करते हुए आधा घंटा तक।
फल-(1) वीर्य का ऊर्ध्वाकर्षण। (2) मन की एकाग्रता।
(6) उत्थित पद्मासन
विधि-पद्मासन में बैठकर दोनों हथेलियों को भूमि पर टिकाइए और शरीर को भूमि से ऊपर उठाइए।
समय-दो-तीन मिनट।
फल-(1) पद्मासन के लाभ। (2) हथेली के स्नायुओं की सशक्तता।
इसे दोलासन या लोलासन भी कहा जाता है। कुछ आचार्यों ने पद्मासन को पर्यंकासन और अर्धपद्मासन को अर्धपर्यंकासन माना है।
वीरासन
विधि-बद्ध पद्मासन की तरह दोनों पैरों को रखिए और हाथों को पद्मासन की तरह रखिए।
समय-क्रमशः तीन घंटे तक बढ़ाएँ।
फल-धैर्य, संतुलन और कष्ट सहने की क्षमता का विकास।
कुछ आचार्यों ने कुर्सी पर बैठकर उसे निकाल देने पर जो मुद्रा बनती है, उसे वीरासन माना है।
सुखासन
विधि-किसी एक पैर को वृषण के पास ऊरु के निम्नवर्ती भाग से सटाकर बैठिए और दूसरे पैर को जंघा और ऊरु के बीच में रखिए। दूसरी बार में पैरों का क्रम बदल दीजिए।
समय-यह ध्यानासन है, इसलिए चाहे जितने समय तक किया जा सकता है।
फल- कामवाहिनी नाड़ी पर नियंत्रण।
कुक्कुटासन
विधि-पद्मासन में बैठकर ऊरु और जंघा के बीच में दोनों हाथों को कोहनी तक नीचे ले जाइए और हथेलियों को भूमि पर टिका दीजिए तथा उनके बल पर सारे शरीर को ऊपर उठाइए।
समय-एक मिनट से पाँच मिनट तक।
फल-(1) स्नायविक दुर्बलता के कारण उत्पन्न होने वाला क्रोध और मोह का विकार नष्ट हो जाता है।
(2) स्नायु पुष्ट होते हैं।
(3) मन शक्तिशाली और प्रशांत होता है।
(4) कामवासना पर विजय प्राप्त होती है।
सिद्धासन
विधि-बायें पैर की एड़ी को गुदा और सीवज के बीच में रखिए और दायें पैर की एड़ी को इंद्रिय के ऊपर स्थापित कीजिए। हाथों की मुद्रा पद्मासन की भाँति कीजिए।
समय-एक मिनट से तीन घंटा।
फल-वीर्य-शुद्धि।
भद्रासन
विधि-दोनों पैरों को सामने फैलाकर बैठिए। बाद में पैरों के तलों को संपुटित कीजिए-परस्पर मिलाइए। फिर उन्हें उपस्थ के समीप रखिए जिससे पैरों के अंगूठे भूमि पर और एड़ियाँ नाभि के समीप आ जाएँ। फिर पैरों को धीमे-धीमे घुमाइए जिससे पैरों की अंगुलियाँ नितंबों के नीचे चली जाएँ और एड़ियाँ वृषण-ग्रंथियों के नीचे सामने की ओर दीखें। दोनों हथेलियों को घुटनों पर टिकाइए।
समय-पाँच मिनट से आधा घंटा।
फल-कार्य करने की रुचि उत्पन्न होती है।
वज्रासन
विधि-घुटनों को मोड़कर पीछे की ओर ले जाइए जिससे दोनों ऊरु और जंघाएँ ऊपर-नीचे हो जाएँ। घुटने से अंगुलियों तक का भाग जमीन को छूते हुए रहना चाहिए।
समय-दस-पंद्रह मिनट किए बिना इसका परिणाम प्राप्त नहीं होता। विशेष लाभ के लिए इसे लंबे समय तक करना चाहिए।
फल-(1) भोजन के पश्चात् पंद्रह मिनट तक वज्रासन करने से पाचन शक्ति बढ़ती है।
(2) अपानवायु की शुद्धि।
(3) वीर्य-दोष की शुद्धि।
(4) घुटनों और पैरों के स्नायुओं की सशक्तता।
मत्स्येन्द्रासन
विधि-बायें पैर का पंजा दायें ऊरु के मूल में रखिए और एड़ी को पेडू से सटाइए। फिर दायें पैर को बायें घुटने से आगे ले जाइए। बायें हाथ को दायें हाथ को पीठ की ओर ले जाकर उससे बायें पैर की एड़ी पकड़िए। मुँह और पीठ के भाग को जितना मोड़ सकें, उतना पीछे की ओर ले जाइए। धीमे-धीमे श्वास लीजिए। दूसरी आवृत्ति में पैरों और हाथों का क्रम बदल दीजिए।
समय-एक या दो मिनट।
फल-पृष्ठ-रज्जु के स्नायुओं की शुद्धि।
अर्धमत्स्येन्द्रासन
जब बायें पैर की एड़ी को गुदा और सीवन के बीच रखकर दायें पैर को पूर्ववत् बायें घुटने से आगे ले जाकर रखा जाता है, दायें हाथ को पीठ के पीछे ले जाकर बायें ऊरु के मूल में स्थापित किया जाता है और शेष क्रिया पूर्ववत् की जाती है तब अर्धमत्स्येन्द्रासन हो जाता है। दूसरी आवृत्ति में पैरों और हाथों का क्रम बदल देना चाहिए। अर्धमत्स्येन्द्रासन का समय और फल पूर्ववत् है। मत्स्येन्द्रासन की अपेक्षा फल की मात्रा इसमें कम होती है।
पश्चिमोत्तानासन
विधि-सीधे बैठकर दोनों पैरों को आगे की ओर समरेखा में फैलाइए। फिर श्वास का रेचन कर शरीर को आगे की ओर झुकाते हुए दोनों हाथों की अंगुलियों से पैरों के अंगूठों को पकड़िए और सिर को दोनों घुटनों के बीच में टिका दीजिए।
समय-इस आसन की सिद्धि आधा घंटा तक करने से होती है।
फल-(1) मन्दाग्नि आदि उदर रोगों का शमन।
(2) हर्निया की बीमारी में लाभकारी।
महामुद्रा
विधि-किसी एक पैर की एड़ी सीवन और गुदा के मध्य भाग में लगाइए तथा दूसरे पैर को सीधा फैला दीजिए। श्वास बाहर निकालिए। उड्डीयान बंध कीजिए। सिर घुटने पर टिकाइए। दूसरे पैर से भी वैसी ही पुनरावृत्ति कीजिए।
समय-एक या दो मिनट।
फल-वीर्याशय तथा पाचनयंत्र की दृढ़ता।
संप्रसारण भूनमनासन
विधि-सीधे बैठकर पैरों को यथाशक्ति फैलाइए। हाथों से पैरों के अंगूठे पकड़कर सिर को भूमि पर रखिए।
समय-एक या दो मिनट।
फल-वीर्याशय की दृढ़ता।
कन्दपीड़नासन
विधि-सीधे पैर के पंजे को जमीन पर टेक एड़ी को सीवन तथा गुदा से सटाइए। बाएँ पैर को दाएँ घुटनों पर रखिए। दोनों हाथों से दोनों कमर के पार्श्वों को पकड़िए।
समय-एक या दो मिनट।
फल-वीर्य-वाहिनी नाड़ियों की शुद्धि। (क्रमशः)