ज्ञानदाता व ज्ञान का सम्मान करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

ज्ञानदाता व ज्ञान का सम्मान करें: आचार्यश्री महाश्रमण

पौर, वड़ोदरा, 9 अप्रैल, 2023
अनंत आस्था के केंद्र आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 9 किलोमीटर का विहार कर पौर ग्राम के श्री पटेल ग्लोबल स्कूल में पधारे। मंगल देशना का रसास्वादन कराते हुए अणुव्रत अनुशास्ता ने फरमाया कि शिक्षा का, ज्ञान प्राप्ति का बहुत महत्त्व है। शिक्षा प्राप्ति के लिए विद्यार्थी विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ते भी हैं। विदेशों में भी पढ़ने के लिए जाते हैं। शिक्षा अपने आपमें एक पवित्र तत्त्व है। शिक्षा लौकिक और लोकोत्तर रूप में होती है। लोकोत्तर-अध्यात्म विद्या जहाँ धर्म शास्त्र है, आगम आदि की भी उपलब्धि होती है। अच्छी चीज को जान लेना एक उपलब्धि है। जानने के बाद उसे जीवन में उतारने का प्रयास होना वह और भी बहुत बढ़िया बात हो जाती है।
ज्ञान का सार है-आचार। जो आध्यात्मिक अच्छी विद्याएँ हैं, उनका आचरण हो वह ज्ञान की निष्पत्ति का तत्त्व है। शास्त्रकार ने शिक्षा प्राप्ति में पाँच बाधाएँ बताई हैं-अहंकार पहली बात है, यह एक प्रसंग से समझाया कि ज्ञान देने वाला गुरु होता है। गुरु का मान-सम्मान रखना चाहिए। गुरु को अपने से उच्च स्थान दें। ज्ञानदाता और ज्ञान के प्रति सम्मान का भाव हो। दूसरी बाधा है-गुस्सा-आक्रोश। तीसरी बाधा है-प्रमाद। व्याकरण तो अलूणी शिक्षा है। व्याकरण का ज्ञान होने से एक आलोक मिल जाएगा। चौथी बाधा है-रोग-बीमारी। पाँचवीं बाधा है-आलस्य। ज्ञान के लिए परिश्रम चाहिए। आलस्य विकास में रिपु है। श्रम हमारा मित्र है। इन पाँच बाधाओं से विद्यार्थी दूर रहे।
साधु हो या गृहस्थ परिश्रम करने से ही विकास हो सकता है। गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञजी ने बहुत ज्ञान कंठस्थ किया था। परिश्रम करो सफल बनो। ज्ञान प्राप्त करने से शास्त्र में चार लाभ बताए हैं-श्रुत मिलेगा, मैं एकाग्रचित्त बन सकूँगा, अपने आपको धर्म में स्थापित कर सकूँगा और स्वयं धर्म में स्थापित हो दूसरों को भी धर्म में स्थापित करूँगा। ज्ञान के लिए समय निकालना चाहिए। सलक्ष्य ज्ञान के क्षेत्र में समय निकालने पर आदमी विकास कर सकता है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।