आत्मशुद्धि का साधन है धर्म: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आत्मशुद्धि का साधन है धर्म: आचार्यश्री महाश्रमण

पदमला, 6 अप्रैल, 2023
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी अणुव्रत यात्रा के साथ प्रातः विहार कर पदमला गाँव स्थित ओमकार जैन तीर्थ के परिसर में प्रवास हेतु पधारे। परम पावन ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि धर्म आत्म-शुद्धि का साधन है। धर्म शब्द का अर्थ कर्तव्य के रूप में भी किया जा सकता है कि जैसे राष्ट्र धर्म, ग्राम धर्म। धर्मास्तिकाय को भी धर्म कहा जा सकता है, जो पूरे लोक में फैला हुआ है। एक महाव्रत धर्म और एक अणुव्रत धर्म होता है। गृहस्थ जीवन में भी व्यवहार रूप में धर्म जितना हो सके, रहे। अहिंसा, संयम और तप यही धर्म है, धर्म का सार है। व्रत और त्याग अच्छी चीज हैं। साधु धर्म का बड़े रूप में पालन करने वाला होता है।
सामान्य धर्म की जो बातें गृहस्थ जीवन में उपयोगी हो सकती हैं, वो हैंµपात्र में दान देना एवं शुद्ध साधु को अपेक्षानुसार दान देना। गुरु के प्रति विनय भाव रखें और सब प्राणियों के प्रति दया रखो। न्याययुक्त वर्तन व्यवहार हो एवं परहित करें, दूसरे का आध्यात्मिक कल्याण करने का प्रयास हो। लक्ष्मी-संपत्ति का घमंड नहीं करना चाहिए। सज्जनों-संतों की संगति करनी चाहिए।
¬ अक्षर में पाँच पदों के आधाक्षर आ जाते हैं। पूजनीय आत्माओं का स्मरण करें। भाव शुद्ध रहे। आचार्य तुलसी ने जो अणुव्रत की बातें बताईं, उन सामान्य-सी बातों को कोई भी जैन-अजैन स्वीकार कर अपने जीवन को अच्छा बना सकता है। साधु के तो सर्व हिंसा का त्याग होता है। गृहस्थ जीवन में भी अहिंसा की ओर कदम बढ़ाएँ तो गृहस्थ मोक्ष की दिशा में आगेे बढ़ सकता है। पूज्यप्रवर के स्वागत में बाव पंथक की बहनों ने गीत से अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।