अर्हम्
बहुश्रुत परिषद के संयोजक मुनि महेंद्रकुमारजी स्वामी का दिनांक 6-4-23 को मध्याह्न में देवलोकगमन हो या। यह संवाद सुनकर ऐसा लगा कि मानो तेरापंथ धर्मसंघ के एक विशिष्ट व्यक्तित्व ‘आगम मनीषी’ संत का स्थान रिक्त हो गया। मोहमयी मुंबई नगरी में जन्मे, प्रतिष्ठित, प्रबुद्ध जवेरी परिवार के संस्कारों को यौवन की दहलीज पर आते-आते उजाकर किया। आश्चर्य की बात तो यह हैµसंभवतः तेरापंथ धर्मसंघ में ग्रेज्युएशन के साथ मुनि महेंद्रकुमारजी स्वामी ने संयम जीवन स्वीकार किया। यह पहला घटना प्रसंग रहा तेरापंथ के इतिहास का।
गुरु-इंगित के प्रति सहज समर्पण था। गुरु की असीम कृपादृष्टि से अल्पकाल में ही विकास के अनेकानेक पायदानों पर आरोहण किया। चतुर्विध धर्मसंघ में अपनी नई पहचान बनाई। आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आपको बहुश्रुत परिषद के संयोजक के रूप में संबोधित कर गौरवान्वित किया। आपकी आचारनिष्ठा, गुरुनिष्ठा, संघनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा, विनम्रता आदि सद्गुण सौरभ से गणाधिपति गुरुदेव तुलसी, प्रेक्षा प्रणेता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी व एकादशम अधिशास्ता परमपूज्य आचार्य महाश्रमणजी के विश्वास को अर्जित कर त्रय गुरुओं के दिल में अपना स्थान बनाया। आपकी अध्यात्म साधना भी विलक्षण थी।
डाॅ0 महेंद्रकुमारजी स्वामी हिंदी, संस्कृत, प्राकृत, इंग्लिश, गुजरात, मराठी आदि अनेक भाषाओं पर अधिकृत वक्ता एवं सुघड़-सुदृढ़ लेखक थे। आगम संपादन के कार्यों में अनेक वर्षों से संलग्न थे। सफल अवधानकार व कुशल प्रवचनकार थे। देश-विदेश की सुदूर यात्राएँ कर धर्मसंघ की खूब प्रभावना की। प्रेक्षाप्राध्यापक के रूप में वे जैन विश्व भारती, लाडनूं में आपश्री की अनन्य सेवाएँ रही। आपकी श्रमनिष्ठा, अप्रमत्तता व ध्यान साधना भी बेजोड़ थी।
अभी-अभी अस्वस्थता के कारण आपका मुंबई में दीर्घकालीन प्रवास रहा, उसमें भी आपकी लेखनी अनवरत चालू रहती। आपके आकर्षक व्यक्तित्व से श्रावक-श्राविका ही नहीं अपितु विद्वत् समाज भी प्रभावित था। वे एक उच्च कोटि के दार्शनिक थे। विज्ञान के क्षेत्र में भी अच्छी सफलता हासिल की। आपने अपने सहवर्ती मुनि अजितकुमारजी आदि संतों के विकास में अहर्निश प्रयत्नशील रहते। ऐसे महान संतों से धर्मसंघ गौरव का अनुभव करता है। दिवंगत आत्मा के ऊध्र्वारोहण की मंगलकामना।